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सिद्धारमैया : जनता परिवार के एक नेता का कांग्रेस तक का कैसा रहा है सफर?

बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी को जोरदार टक्कर दी है. मजबूत भाजपा के लिए कर्नाटक के चुनावी रण में यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बनाने का श्रेय सिद्धारमैया को जाता है.निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया स्वाभाविक रूप सेकांग्रेसके मुख्यमंत्री पद के चेहरे थे और उन्होंनेपूराचुनाव […]

बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी को जोरदार टक्कर दी है. मजबूत भाजपा के लिए कर्नाटक के चुनावी रण में यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बनाने का श्रेय सिद्धारमैया को जाता है.निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया स्वाभाविक रूप सेकांग्रेसके मुख्यमंत्री पद के चेहरे थे और उन्होंनेपूराचुनाव अभियान खुद के हाथ में रखा औरकर्नाटकचुनाव का पूरा एजेंडा स्वयं सेट करते हुए दिखे, चाहे वह लिंगायतकोअलगधर्म का दर्जा देना हो, कर्नाटक गौरवकी बात हो.

सिद्धारमैया मूल रूप से कांग्रेसी नहीं हैं,वे तो परिस्थितिवश कांग्रेस में आये, जब समाजवादीपरिवार जनता दल में बिखराव हो गया और अन्य राज्यों कीतरहसमाजवादी नेताओं द्वारा कमान अपने बेटे को सौंपनेकाही अहसास उन्हें हुआ.एचडीदेवेगौड़ासिद्धारमैया के पॉलिटिकल मेंटर रहे हैं, लेकिन उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी से सिद्धारमैया की कभी पटी नहीं. दोनों में हमेशा 36 का आंकड़ा रहा.

कर्नाटक के मैसूर से 20 किलोमीटर दूर बीड़ी हुंडी गांव में 12 अगस्त 1948 के जन्मे सिद्धारमैया पिछड़ा वर्ग में आने वाले कुरुबा परिवार में पैदा हुआ.यहजाति परंपरागत रूप से गड़ेरिए का काम करता है. सिद्धारमैया के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थीऔर वेभी अपने परिवार केपशुओं कोगांवमेंचरातेथे और दोस्तों के साथतासखेलना उन्हें पसंद था. हालांकि पढ़ाई में उनकी रुचि थी और वे अपने गांव से पहले ग्रेजुएट हुए, फिर लॉ की पढ़ाई की और युवावस्था में एक सीनियर वकील की छत्रछाया में नजदीकी शहर में वकालत की प्राइक्टिस करने लगे. पढ़ाई के दौरान उनके कमरे में काफी संख्या में किताबें होती थीं.

अब शहरी माहौल में रह रहे सिद्धारमैया का संपर्क राजनीतिक तबके से हुआ. 1978 में मैसूर तालुका बोर्ड के लिए वे चुने गये जो एक तरह से उनके राजनीतिक कैरियर की औपचारिक शुरुआत थी. 1983 में उन्हें चामुंडेश्वरी से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ने का मौका मिला और वे विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो गये. इसके बाद वे सत्ताधारी जनता परिवार में शामिल हो गये और कन्नड़ वॉचडॉग कमेटी के पहले अध्यक्ष बने. इस कमेटी का गठन कन्नड़ को आॅफिशियल लैंग्वेज बनाने के लिए किये जा रहे काम की निगरानी के लिए किया गया था.

सिद्धारमैया के राजनीतिक कैरियर में एक अहम मोड़ 1994 में आया. वे चुनाव जीते और एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व में बनी सरकार में उन्हें वित्त जैसा बड़ा मंत्रालय दिया गया. उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया और जब 1996 में देवेगौड़ा मुख्यमंत्री पद छोड़ देश के प्रधानमंत्री बने तो नये मुख्यमंत्री जेएच पटेल की कैबिनेट में उन्हें सीधे नंबर दो का दर्जा हासिल हुआ और वे राज्य के उपमुख्यमंत्री बनाये गये. 2009 में जब एन धर्म सिंह के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस व जनता दल सेकुलर की सरकार बनी तो एक बार फिर सिद्धारमैया डिप्टी सीएम बने.

2006 आते-आते सिद्धारमैया के देवेगौड़ा से मतभेद उभर आये और सिद्धा कांग्रेस में शामिल हो गये. इस समय वे अपनी परंपरागत सीट से भाजपा-जनता दल सेकुलर के साझा उम्मीदवार से मात्र 257 वोटों से चुनाव जीत सके. 2008 मेंहुए राज्य विधानसभा चुनाव में वे वरुणा सीट से पांचवी बार चुनाव जीते. इसी चुनाव में पहली बार राज्य में भाजपा ने बीएसयेदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनायी थी.

सिद्धारमैया को बचनपन में सिद्धु और फिर युवावस्था सिद्धरामा के नाम से लोग पुकारते थे. सिद्धरामा शब्द का अर्थ है कि वह व्यक्ति जो खुद के द्वारा तय लक्ष्यों को हासिल कर सकता है और सिद्धारमैया के सामने इस बात भाजपा को सत्ता से दूर रखने का कठिन लक्ष्य हासिल करना है.

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