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मां की तलाश में स्वीडन से सूरत तक का सफ़र

स्वीडन के खूबसूरत नज़ारों के बीच अपने भाई-बहन के साथ खेलते हुए बड़ी हुई हैं किरण गस्ताफ्सों. वो ये बखूबी महसूस करती हैं कि उनकी छोटी बहन एलन और भाई ब्यॉर्न के उनके साथ संबंधों में वो गर्माहट नहीं है, जैसे कि उन दोनों की आपस में है. किरण के माता-पिता ने उनकी ज़िंदगी में […]

स्वीडन के खूबसूरत नज़ारों के बीच अपने भाई-बहन के साथ खेलते हुए बड़ी हुई हैं किरण गस्ताफ्सों.

वो ये बखूबी महसूस करती हैं कि उनकी छोटी बहन एलन और भाई ब्यॉर्न के उनके साथ संबंधों में वो गर्माहट नहीं है, जैसे कि उन दोनों की आपस में है.

किरण के माता-पिता ने उनकी ज़िंदगी में खुशियों के तमाम रंग भरे हैं फिर भी उन्हें कुछ कमी सी लगती है.

ब्रेस्टफ़ीडिंग को छोड़ ये ‘मां’ हर काम कर सकती है

‘लड़की की मां से मुझे ये नहीं पूछना चाहिए था’

किरण को उनके माता-पिता ने बचपन में ही बता दिया था कि उन्हें गुजरात के सूरत के एक अनाथालय से गोद लिया गया था.

स्वीडन के माल्मो में मौजूद किरण ने बीबीसी गुजराती सेवा से फ़ोन पर बात की.

उन्होंने बताया , " जब मैं स्वीडन गई तो मेरी उम्र करीब तीन साल थी. मेरे साथ भारत और अपने बचपन की कोई याद नहीं है."

" गोद लेने वाले माता-पिता से मेरी मुलाक़ात स्वीडन एयरपोर्ट पर हुई. तारीख थी 14 मार्च 1988. मुझे एक वकील और उनकी पत्नी स्वीडन ले कर गए थे और कोर्ट में मेरे गोद देने की कानूनी प्रक्रिया पूरी हुई."

किरण बतती हैं कि उनका बचपन सामान्य था और उन्होंने कभी खुद को बाहरी महसूस नहीं किया. उनकी मां मारिया वर्नांट एक रिटायर्ड टीचर हैं और पिता चैल ऑक्या गस्ताफ्सों एक व्यापारी और फोटोग्राफर हैं.

वो कहती हैं, "मेरे माता-पिता ने कभी मुझे अलग महसूस नहीं होने दिया. वो हमेशा मुझे कहते है कि तुम जो हो उस पर गर्व करो."

फिर भी किरण गोद लेने वाली मां में अपना अक्स नहीं तलाश पाती थीं. "हमेशा लगता था कि कुछ कमी सी है. दो साल में ये भावना और मजबूत हुई है."

मां की तलाश

शायद खून के रिश्ते वाले परिवार से जुड़े सवाल ही थी जो उन्हें बेचैन कर देते थे.

किरण इन सवालों की तलाश के लिए स्वीडन के अपने परिवार के साथ साल 2000 में सूरत आईं. किरण को गोद लेने वाला परिवार खुद की पहचान की उनकी तलाश में मददगार था.

सूरत को हीरों का शहर कहा जाता है. किरण यहां के नारी संरक्षण गृह पहुंचीं. यहीं से उन्हें गोद लिया गया था.

किरण कहती हैं कि उनकी जड़ें समझने के लिए ज़रूरी था कि उनका परिवार उनसे साथ उनकी इस तलाश का हिस्सा बने. 2005 में किरण वापस सूरत आई. लेकिन इस बार वो समाजशास्त्र और मानवाधिकारों की अपनी पढ़ाई के सिलसिले में यहां आई थीं.

इस यात्रा ने उनके लिए और भी सवाल पैदा कर दिए क्योंकि अनाथालय ने उन्हें ज़्यादा जानकारियां नहीं दीं .

स्वीडन लौटने पर उन्होंने अपने गोद लिए जाने के बारे में अधिक पड़ताल की और अनाथालय के बारे में भी जानकारी जुटाने लगीं. 2010 तो किरण ये फ़ैसला कर चुकी थीं कि वो अपनी मां की तलाश करेंगी लेकिन उन्हें ये समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा होगा किस तरह.

किरण गोद लेने वाले माता-पिता इस फ़ैसले में उनके साथ थे और उन्होंने कहा कि वो उन पर गर्व करते हैं और उनसे प्यार करते हैं.

वक्त बीतने के साथ मां की तलाश के ख्याल पर धुंध जमने लगी लेकिन उनसे मिलने की चाहत किरण के मन से कभी नहीं मिटी.

पढ़ाई पूरी करने के बाद किरण स्वीडन में एक कंपनी में करियर काउंसलर बन गईं.

किरण ने 2016 में कोपनहेगन में अरुण दोहले के एक लेक्चर में भाग लिया. दोहले नीदरलैंड में बाल तस्करी के ख़िलाफ़ काम करने वाले एक एनजीओ के सह-संस्थापक हैं. उन्हें जर्मनी के एक दंपति ने गोद लिया था. उनका जन्म भी भारत में हुआ था.

बच्चों की अवैध तस्करी के खिलाफ अभियान चलाने वाले दोहले ने बताया कि कोई अपनी जड़ों की जानकारी कैसे हासिल कर सकता है.

वो जानते थे कि जन्म देने वाली मां के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी.

किरण के मन में भी दोबारा एक उम्मीद की किरण जाग उठी कि वो भी अपनी मां को तलाश सकती हैं.

साल 2017 में उनका दोहले से संवाद शुरू हुआ. दोहले ने किरण को सलाह दी कि वे पुणे में रहने वाली अंजली पवार से संपर्क करें, जो बाल संरक्षण के लिए काम करती हैं.

भारत में वापसी, लेकिन एक हैरानी के साथ

अंजली पवार ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने किरण और दोहले से सारी जानकारी लेने के बाद सबसे पहले सूरत के अनाथालय से संपर्क किया. शुरुआत में उनकी कोशिशों का कोई नतीजा नहीं निकला.

अंजलि के मुताबिक, "तब मुझे उन्हें सीएआरए (सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) के दिशानिर्देशों बारे में बताना पड़ा, जो मुझे इस जानकारी को जुटाने का अधिकार देता है."

उन्होंने बताया, "दस्तावेजों के मुताबिक, किरण जब एक साल और 11 महीने की थी तब उनकी मां ने उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया था, लेकिन वो किरण से मिलने के लिए लगातार आती थीं. वो किरण को गोद दिए जाने के बारे में जानती थी. इसलिए उन्होंने उस जगह का पता अनाथालय को दिया हुआ था, जहां वो काम करती थीं."

अंजलि पवार को पता चला कि किरण की मां सिंधु गोस्वामी नाम की महिला हैं जो सूरत में घरेलू सहयोगी के तौर पर काम करती थीं. अंजलि अनाथालय से मिले पते पर पहुंचीं लेकिन उन्हें वहां सिंधु नहीं मिलीं.

किरण इस साल अप्रैल में एक दोस्त के साथ वापस भारत आईं. उनकी मां जहां काम करती थीं, वो उनसे मिलीं. स्थानीय प्रशासन और एक सामाजिक कार्यकर्ता के दबाव बनाने के बाद उन लोगों ने थोड़ी जानकारियां दीं, लेकिन ये सूचनाएं उनकी तलाश के लिए काफी नहीं थीं. वो ये नहीं बता पाये कि किरण की मां कहां हैं और वो ज़िंदा भी हैं या नहीं.

किरण के लिए वो दिन भावुक करने वाले थे. जानकारियां जुटाने के लिए तमाम जगहों पर जाने के दौरान वो कई बार फूट पड़ती थीं.

इसी बीच अंजलि के हाथ अनाथालय के जन्म प्रमाणपत्र वाला रजिस्टर लगा. प्रमाणपत्र से मिली जानकारी ने उन्हें हैरान कर दिया. उन्हें जानकारी हुई कि किरण का एक जुड़वा भाई भी है.

उस दिन को याद करते हुए किरण कहती हैं, " ये अविश्वसनीय था. मैं हैरान थी."

उन्हें गोद लेने वाले माता-पिता को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

मिलना और बिछड़ना

किरण, उनकी दोस्त और अंजलि ने एक स्थानीय कार्यकर्ता की मदद से उनके भाई तलाश शुरू की. उन्हें ज़्यादा दूर नहीं जाना पड़ा. उन्हें पता लगा कि किरण के भाई को सूरत के एक परिवार ने गोद लिया हुआ है और वो एक व्यापारी है. हालांकि ये मुलाक़ात आसान नहीं थी.

पता ये लगा कि किरण के भाई को गोद लेने वाले परिवार ने उन्हें ये जानकारी ही नहीं दी थी कि उन्हें गोद लिया गया है.

अंजलि ने बीबीसी को बताया कि उन्हें गोद लेने वाले पिता इतने बरस के बाद ये जानकारी जाहिर नहीं करना चाहते थे. काफी मानमुनव्वल के बाद माता-पिता अपने गोद लिए बेटे को ये तथ्य बताने के लिए तैयार हुए और साथ ही ये भी कि उनकी बहन उनसे मिलना चाहती है.

किरण को वो दिन आज भी अच्छी तरह से याद है जब 32 साल में पहली बार वो अपने भाई से मिलीं. जो पता दिया गया था, वहां तक चलकर जाना, वो बाईं तरफ का मोड और फिर ख़ुद भाई का दरवाज़ा खोलना.

जब उन्होंने एक-दूसरे को देखा तो पूरी तरह खामोशी छाई रही.

किरण के भाई ने घर के अंदर उन्हें आइसक्रीम परोसी.

किरण याद करती हैं, "उन्होंने मुझे एक घड़ी दी. वो बहुत ही उदार था. उनकी आंखे बिल्कुल मेरी तरह हैं लेकिन उनमें उदासी है. अंजलि के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि वो अकेला महसूस करते हैं."

अगले दिन वो किरण के होटल में मिले, जहां वो फूट फूटकर रोने लगीं. विदाई का पल मुश्किल था.

किरण ने बताया, "हमने एकदूसरे को तलाश लिया लेकिन अब भी कई सवाल बाकी हैं. अभी भी उदासी है. मेरा भाई बहुत उदार है. मुझे उस पर गर्व है और मैं उससे प्यार करती हूं".

किरण को जिस भाई के अस्तित्व की जानकारी भी नहीं थी, वो उससे मिल चुकी हैं लेकिन मां को लेकर उनकी तलाश जारी है.

सूरत के जिस घर में उनकी मां काम करती थीं, वहां से किरण को उनकी एक तस्वीर मिली, वो ही तस्वीर उन्हें आगे जाने का हौसला देती है.

वो कहती हैं, "हम एक दूसरे की तरह दिखते हैं.’

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