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मामलों के अनुसंधान में तेजी से ही जुर्म पर अंकुश संभव

II सुरेंद्र किशोर II राजनीतिक विश्लेषक आपराधिक मामलों के अनुसंधान में तेजी आ जाये और अदालतों में देरी न हो तो जुर्म पर काबू पाना संभव है. यह अच्छी बात है कि बिहार के पुलिस प्रमुख केएस द्विवेदी ने इसकी पहल की है. यह सूचना चिंताजनक है कि पटना और नालंदा के डीएसपी के पास […]

II सुरेंद्र किशोर II
राजनीतिक विश्लेषक
आपराधिक मामलों के अनुसंधान में तेजी आ जाये और अदालतों में देरी न हो तो जुर्म पर काबू पाना संभव है. यह अच्छी बात है कि बिहार के पुलिस प्रमुख केएस द्विवेदी ने इसकी पहल की है.
यह सूचना चिंताजनक है कि पटना और नालंदा के डीएसपी के पास सुपरविजन के लिए करीब दो हजार मामले लंबित हैं. डीजीपी ने अधीनस्थ अफसरों को निर्देश दिया है कि वे जिम्मेदारी तय करें कि केस के सुपरविजन में अनावश्यक देरी क्यों होती है. उन्होंने अनुसंधान में तेजी लाने व उसकी गुणवत्ता बढ़ाने की भी जरूरत बतायी है.
हाल में यह भी पता चला है कि बिहार के अनेक पुलिस अधिकारियों में अनुसंधान क्षमता का भी अभाव है. कानून की जानकारी भी नहीं है. जबकि, दारोगा-डीएसपी की ट्रेनिंग में कानून की किताबें भी पढ़ाई जाती हैं. अब तो सरकार जरा इस बात की भी समीक्षा कर ले कि ट्रेनिंग संस्थान में पढ़ाने वालों की क्षमता तो ठीकठाक है न!
कार्यशैली बदलने की जरूरत : दरअसल रिजल्ट पाने के लिए बिहार पुलिस की कार्यशैली, कार्य संस्कृति और कार्य क्षमता पर भी ध्यान देना होगा. पहली नजर में किसी भी सरकार की छवि उसकी पुलिस और उसकी सड़कों से ही बनती-बिगड़ती है.
यदि अतिक्रमण को छोड़ दें तो सड़कों की स्थिति पहले से बेहतर है. पर पुलिस? बाहर से पहली बार पटना आने वालों को यह समझने में देर नहीं लगेगी कि प्रादेशिक राजधानी में पुलिस मुख्य सड़कों पर भी अतिक्रमण करवा कर रिश्वत वसूलने के काम में लगी रहती है. यदि यह समझ ले तो कोई गलत बात नहीं होगी.
क्योंकि सूचनाएं भी इसी तरह की हैं. अन्यथा क्या कारण है कि पटना हाईकोर्ट के बार-बार सख्त निर्देश देने के बावजूद पटना में अतिक्रमण हटाने के कुछ ही घंटे के भीतर ही दुबारा वहां अतिक्रमण हो जाता है? इसी बुधवार को मुख्य पटना के बोरिंग रोड से दोपहर में अतिक्रमण हटाया गया और शाम होते-होते दुबारा वहां अतिक्रमण हो गया. वैसे यह समस्या तो पूरे राज्य की है. अन्य राज्यों का भी कमोवेश यही हाल है.
पर इससे जूझना तो पड़ेगा ही. डीजीपी को चाहिए कि अनुसंधान व सुपरविजन के काम में तो अपने समर्थ अफसरों को लगाएं ही, पर यदि प्रादेशिक राजधानी को अतिक्रमण से मुक्त करवा देंगे तो उनकी भी धाक जमेगी और राज्य सरकार की छवि भी निखरेगी. पुलिस की धाक जमेगी तो उसका लाभ आम अपराध को कम करने में भी हो सकता है. अन्यथा उस पुलिस से अपराधी कैसे व क्यों डरेंगे जो सड़कों पर अतिक्रमण करवा कर पैसे वसूलती है?
आखिर कैसे हो जाते हैं घोटाले! : सन 1996 की बात है. चारा घोटाला सामने आ चुका था. बिहार सरकार में वित्त विभाग के अपर सचिव रह चुके एसके चांद ने लिखा था कि ‘सरकारी कोष से व्यय पर नियंत्रण रखने के लिए विस्तृत नियम और प्रक्रिया हैं. उसके अनुपालन के लिए कई स्तरों के पदाधिकारी जिम्मेदार हैं. फिर भी एक लंबे समय तक कैसे इतने सारे पदाधिकारी अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति शिथिल हो गये?
इस घोर अनियमितता और घोटाले के लिए सभी संबद्ध पदाधिकारी समान रूप से जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं. इनमें से कुछ की जिम्मेदारी प्राथमिक और प्रमुख होगी और कुछ की सापेक्ष और परोक्ष.’ वित्तीय नियंत्रण की ऐसी व्यवस्था रहते हुए भी हाल में सृजन घोटाला हो गया. क्या इन दो घोटालों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने किसी बेहतर व फूलप्रूफ वित्तीय नियंत्रण व्यवस्था स्थापित करने की जरूरत महसूस की है ताकि आगे कोई तीसरा घोटाला न हो जाये?
एक परिवर्तन यह भी : कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है. माकपा को भी हिंदी राज्यों में अपनी कमजोरी का कारण समझ में आने लगा है. पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने हाल में यह माना है कि पहले हम सिर्फ आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष चलाते थे, अब हम सामाजिक शोषण के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे हैं. माकपा का नया है ‘जय भीम, लाल सलाम.’ यानी माकपा का ध्यान अभी सिर्फ अनुसूचित जातियों के शोषण की ओर गया है.
जानकार लोग बताते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टियां जब तक कमजोर पिछड़ों के लिए अपना एजेंडा तय नहीं करेगी तब तक हिंदी राज्यों में उनका विकास मुश्किल ही रहेगा. 2009 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में जब सीपीएम सिर्फ 10 सीटों पर सिमट गयी तो उसे अल्पसंख्यक मतदाताओं की समस्याओं की याद आयी.
उस दल के एक नेता ने बिहार में अपने सूत्रों से यह पता लगाया कि वहां मुसलमानों के बीच के पिछड़ों को किस तरह आरक्षण मिलता है. पता तो चल गया. वाम सरकार 2011 तक वहां रही. पता नहीं चल सका कि उस सरकार ने पिछड़े मुसलमानों के कल्याण के लिए क्या-क्या किया.
जोकीहाट उपचुनाव का महत्व : जोकीहाट विधानसभा चुनाव क्षेत्र का चुनाव नतीजा यह बतायेगा कि अल्पसंख्यक मतों का कितना प्रतिशत राजग यानी जदयू के साथ है.
वैसे यह माना जाता रहा है कि अधिकतर अल्पसंख्यक मतदाता राजद के साथ हैं. जोकीहाट विधानसभा चुनाव क्षेत्र में 28 मई को उपचुनाव होगा. जदयू के विधायक सरफराज आलम के इस्तीफे से वह सीट खाली हुई है. आलम 2015 के चुनाव में जोकीहाट से जदयू के उम्मीदवार थे. तब जदयू ने राजद-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर चुनाव लड़ा था. अब सरफराज आलम अररिया से राजद सांसद हैं.
अररिया लोकसभा चुनाव क्षेत्र के तहत ही जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र पड़ता है. अररिया लोकसभा चुनाव में जोकीहाट विधानसभा खंड में राजद को करीब एक लाख 21 हजार मत मिले थे. राजग उम्मीदवार को करीब 40 हजार वोट मिले. इस बार जोकीहाट में जदयू ने मुर्शिद आलम को खड़ा कराया है. राजद के उम्मीदवार स्थानीय सांसद के भाई शाहनवाज हैं.
एक भूली-बिसरी याद : ‘जय प्रकाश नारायण नाम के इस आदमी ने मुझे कभी इतना आकर्षित नहीं किया कि मैं उसके पीछे पड़ूं.’ यह बात किसी और ने नहीं बल्कि खुद जय प्रकाश नारायण ने कही थी. यह विवरण न्यायमूर्ति चंद्रशेखर धर्माधिकारी ने 1993 में लिखा था.
धर्माधिकारी जी के अनुसार यह बात तब की है कि जब जय प्रकाश नारायण से बार-बार कहा जा रहा था कि वे आत्मकथा लिखें. एक अंग्रेज पत्रकार ने जब यही सुझाव दिया तो जेपी ने उल्टे सवाल कर दिया कि ‘क्यों, मेरे पास इससे अधिक महत्वपूर्ण कोई काम नहीं बचा है?’
ऐसी ही सलाह जब नोबल पुरस्कार विजेता नोएल बेकर ने दी तो जेपी ने कहा कि ‘मैं तो क्या लिखूंगा? अब ये प्रशांत कुछ लिखें. खासकर मेरे विचारों के बारे में.’ उसके बाद कुमार प्रशांत की पुस्तक ‘शोध की मंजिलें’ नाम से जय प्रकाश की वैचारिक जीवन आयी. कुमार प्रशांत अंतिम ऐतिहासिक वर्षों में जेपी के साथ रहे. चंद्रशेखर धर्माधिकारी के अनुसार कुमार प्रशांत लिखित यह वैचारिक जीवनी अद्वितीय है. कुमार प्रशांत के अनुसार ‘जय प्रकाश ने सबसे बड़ी ऐतिहासिक भूमिका यह निभायी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जन्मी पूरी पीढ़ी के लिए गांधी को एक बार फिर सामयिक बना दिया.’
और अंत में : किसी राजनीतिक विचारक ने कभी कहा था कि यदि 25 साल की उम्र में आप लिबरल नहीं हैं तो इसका मतलब यह है कि आपके पास दिल नहीं है. यदि आप 35 साल की उम्र में अनुदार नहीं हैं तो फिर यह माना जायेगा कि आपके पास दिमाग नहीं है. लगता है कि यह बात किसी पाश्चात्य विचारक ने कही थी. इस देश में तो ऊपर दर्ज की गयी उम्र में आप को फेरबदल करना पड़ेगा.

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