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रांची : स्वराज के लिए आत्म नियंत्रण, स्वयं का मंथन व आत्मज्ञान का होना जरूरी
ज्यूडिशियल एकेडमी में रूल ऑफ लॉ एवं स्वराज विषय पर जेएनयू के प्रो मकरंद आर परांजपे ने कहा स्वतंत्रता आंदोलन की नींव चंपारण में रखी गयी: हरिवंश रांची : जेएनयू के प्रो मकरंद आर परांजपे ने कहा कि स्वराज पाना है, तो आत्म नियंत्रण रखना होगा. स्वयं का मंथन करना होगा. आत्म ज्ञान बढ़ाना होगा.इसके […]
ज्यूडिशियल एकेडमी में रूल ऑफ लॉ एवं स्वराज विषय पर जेएनयू के प्रो मकरंद आर परांजपे ने कहा
स्वतंत्रता आंदोलन की नींव चंपारण में रखी गयी: हरिवंश
रांची : जेएनयू के प्रो मकरंद आर परांजपे ने कहा कि स्वराज पाना है, तो आत्म नियंत्रण रखना होगा. स्वयं का मंथन करना होगा. आत्म ज्ञान बढ़ाना होगा.इसके लिए हमें ऑनरशिप भी लेनी होगी. इसका उल्लेख ऋग्वेद समेत कई पुस्तकों में किया गया है. महात्मा गांधी का भी यही सोच था. यही नहीं स्वराज के लिए रूल ऑफ लॉ भी सर्वोपरि होना चाहिए. स्वराज में शोषण को रोकने की ताकत होती है.
स्वराज के लिए हमें संयम से रूल ऑफ लॉ का पालन करना होगा. श्री परांजपे रविवार को ज्यूडिशियल एकेडमी की ओर से आयोजित व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि रूल ऑफ लॉ और स्वराज में सामंजस्य जरूरी है. 16 वीं शताब्दी में यूरोप में राजा के अवैध पावर पर नियंत्रण के लिए रूल ऑफ लॉ आया.
वर्तमान में न्यायपालिका को दूसरा काम भी करना पड़ रहा है. अगर एक ठीक-ठाक वकील है, तो वह न्याय को कई दिनों तक उलझा कर रख सकता है. अगर वकील काफी पढ़ा लिखा व ज्ञानी हो, तो मामला कई वर्षों तक उलझा रह सकता है. महात्मा गांधी का भी कहना था कि अगर ब्रिटिश कोर्ट को समाप्त कर दें, तो स्वराज पा लेंगे.
स्वतंत्रता की लड़ाई से पहले ही स्वराज की बात हो रही थी. कार्यक्रम में हाइकोर्ट के न्यायाधीश अनंत विजय सिंह, न्यायाधीश अपरेश सिंह, न्यायाधीश कैलाश प्रसाद देव समेत न्यायिक अधिकारी व लॉ स्टूडेंट्स मौजूद थे. कार्यक्रम में न्यायिक अधिकारियों व लॉ स्टूडेंट्स ने दोनों रिसोर्स पर्सन से सवाल भी किये.
राज्यसभा सांसद हरिवंश ने कहा कि महात्मा गांधी द्वारा 1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह न सिर्फ भारतीय इतिहास बल्कि विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है. यहीं से महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता के आंदोलन की नींव रखी थी. चंपारण सत्याग्रह के माध्यम से महात्मा गांधी ने हमें कई सीख दी है.
महात्मा गांधी ने यहां हमें सीख दी थी कि साधन व साध्य में एकता होनी चाहिए. उन्होंने इस आंदोलन से लोकशक्ति का एहसास कराया. आत्म नियंत्रण के गुर बताये. प्रकृति के सान्निध्य में रहने का संदेश दिया, लेकिन आज हम कंज्यूमर सोसाइटी बन गये हैं. उपभोग की वस्तु ने हमें संकट में डाल दिया है.
उन्होंने कहा कि जब गांधी जी बिहार आये, तो उनका एकमात्र मकसद चंपारण के किसानों की समस्याओं को समझना, उसका निदान व नील के धब्बे को मिटाना था. गांधी जी ने इसे बखूबी समझा और इसी दिशा में आगे बढ़े. उस वक्त चंपारण के किसानों से 46 प्रकार के अवैध कर वसूले जाते थे. कर वसूली की विधि अमानवीय व बर्बर थी.
गांधी जी ने इसे व्यापक आंदोलन का रूप दिया. इस दौरान महात्मा गांधी को 10 मई 1917 को रांची बुलाया गया. यहां तीन दिनों तक रहे और चंपारण सत्याग्रह पर बातचीत की. वे दोबारा पांच जून को रांची आये. इस आंदोलन से आमलोगों को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए सहज हथियार सत्याग्रह प्राप्त हुआ.
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