महाभियोग प्रस्ताव खारिज करने के राज्यसभा सभापति के फैसले पर कांग्रेसी नेताओं ने यह कहने में देर नहीं लगायी कि यह हड़बड़ी में लिया गया फैसला है.
प्रस्ताव को खारिज करने के साथ ही सभापति ने विपक्षी दलों को नसीहत भी दी है. इस फैसले के बाद उम्मीद है कि भविष्य में कांग्रेस सरीखे दल अपुष्ट व आधे-अधूरे आरोपों के आधार पर उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने से पहले दस बार सोचेंगे. नि:संदेह सियासी दलों को इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि वे क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के इरादे से महाभियोग प्रस्ताव ले आएं.
राज्यसभा सभापति का फैसला एक नजीर बने तो बेहतर. जो भी हो, इसकी संभावना नहीं दिखती कि चौतरफा आलोचना के बाद कांग्रेस को अपनी भूल का एहसास होगा. वह सभापति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है, लेकिन उसके दुर्भाग्य से वहां उसका सामना प्रधान न्यायाधीश से ही होगा.
डॉ हेमंत कुमार, इमेल से