वर्ष 2015 में जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी, तो नयी पाठ्यक्रम नीति को लाने को बात कही थी. करीब चार साल बीत जाने के बाद भी अबतक पाठ्यक्रम नीति को लेकर मसौदा तैयार नहीं हुआ है. स्कूलों-कॉलेजो में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव आज भी बरकरार है. ग्रामीण या शहरी भारत में प्राथमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा के हालात अच्छे नहीं हैं.
बड़े-बड़े कॉलेजों से डिग्री करने बाद भी छात्रों के सामने रोजगार का संकट है. बेरोजगारों की लंबी फौज खड़ी हो गयी है. ऐसे में किताबी शिक्षा और फील्ड में कौशल की मांग में अंतर के बीच रास्ता निकलते हुए, शिक्षानीति में गुणवत्ता को बढ़ावा देने की आवश्यक है.
प्रतिवर्ष बढ़ रहे छात्रों की संख्या के मद्देनजर विद्यार्थी, शिक्षा और पाठ्यक्रम तीनों को केंद्रित कर नयी शिक्षा नीति की उम्मीद पूरे देश को है. ऐसा प्रारूप तैयार करना चाहिए, जिसमें न केवल विज्ञान-तकनीक बल्कि योग,आयुर्वेद की शिक्षा हो. इसके साथ संस्कृत सहित अन्य प्रमुख भाषाओं का भी समावेश हो.
महेश कुमार, इमेल से