जोधपुर कोर्ट द्वारा आसाराम को सजा दिये जाने के बाद से लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे मामलों में क्या कहता है कानून. नये ऐंटी रेप लॉ में क्या कानूनी प्रावधान किये गये हैं. इस बारे में विस्तार से जानना जरूरी है. साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हरैसमेंट जैसे मामलों में क्या कहता है कानून. इस बारे में जानना जरूरी है. इस संबंध में हाईकोर्ट के अधिवक्ता के मुताबिक, जो भी मामला संज्ञेय है, उसमें पुलिस पीड़िता की शिकायत पर या फिर खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है. लड़की का बयान ऐसे मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है.
बलात्कार के मामलों में क्या कहता है कानून
16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद केंद्र सरकार ने जस्टिस जेएस वर्मा कमीशन की सिफारिश पर ऐंटी रेप लॉ बनाया. इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किये गये हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है. आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है. साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है.
अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट या फिर अन्य तरीके से पेनिट्रेशन करता है, तो वह रेप होगा.
अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का अंग या फिर अन्य चीज डालता है, तो वह रेप होगा.
बलात्कार के वैसे मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाये या कोमा में चली जाये, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया.
रेप में कम-से-कम सात साल और ज्यादा-से-ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है.
नये कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नये सिरे से परिभाषित करते हुए आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया है.
354-ए के तहत प्रावधान है कि सेक्सुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्सुअल फेवर मांगना, आदि छेड़छाड़ के दायरे में आयेगा. इसमें दोषी पाये जाने पर अधिकतम तीन साल तक कैद की सजा का प्रावधान है.
अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्सुअल कॉमेंट करता है, तो एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है.
354-बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबरदस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है, तो तीन साल से लेकर सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान है.
354-सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलाता है, तो ऐसे मामले में एक साल से तीन साल तक की सजा का प्रावधान है. अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है, तो तीन साल से सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान है.
354-डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है, तो ऐसे मामले में दोषी पाये जाने पर तीन साल तक कैद की सजा का प्रावधान है.
जो भी मामले संज्ञेय अपराध यानी जिन मामलों में तीन साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उन मामलों में शिकायती के बयान के आधार पर या फिर पुलिस खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है.
जो मामले असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं, उनमें पीड़िता अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल कर सकती है, जिसके बाद अदालत साक्ष्यों के आधार पर आरोपित को समन जारी करता है और फिर केस चलता है.
वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हरैसमेंट रोकने के लिए गाइडलाइंस
1997 में विशाखा जजमेंट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस दी है. गाइडलाइंस के तहत नियोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे. सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनायी है. इसके तहत अनुशासनात्मक से लेकर क्रिमिनल कार्रवाई किये जाने की बात कही गयी है.
नियोक्ता या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह सेक्शुअल हरैसमेंट को रोके.
सेक्शुअल हरैसमेंट के दायरे में शारीरिक छेड़छाड़, शारीरिक टच करना, सेक्सुअल फेवर की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है.
इन मामलों के अलावा अगर कोई ऐसा ऐक्ट, जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है, तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे.
इस बात को सुनिश्चित किया जायेगा कि विक्टिम अपने दफ्तर में किसी भी तरह से पीड़ित-शोषित नहीं होगी.
इस तरह की कोई भी हरकत दुर्व्यवहार के दायरे में होगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है.
प्रत्येक दफ्तर में एक कंप्लेंट कमेटी होगी, जिसकी चीफ महिला होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि कमेटी में महिलाओं की संख्या आधे से कम न हो. साथ ही साल भर में आयी शिकायतों और कार्रवाई के बारे में सरकार को रिपोर्ट करना होगा.
मौजूदा समय में वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हरैसमेंट रोकने के लिए विशाखा जजमेंट के तहत ही कार्रवाई होती है. इस बाबत कोई कानून नहीं है, इस कारण गाइडलाइंस प्रभावी है.
अगर कोई ऐसी हरकत जो आईपीसी के तहत अपराध है, तो उस मामले में शिकायत के बाद केस दर्ज किया जाता है. कानून का उल्लंघन करनेवालों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई होती है. साथ ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाती है.