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भागलपुर : दिनकर की पुण्यतिथि पर खड़ा हुआ नया बखेड़ा
भागलपुर : तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में मंगलवार से ही राष्ट्रकवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि पर नया बखेड़ा शुरू हो गया है. एक तरफ दिनकर के गांव सिमरिया में 24 अप्रैल को दिनकर की पुण्यतिथि मनायी गयी. दूसरी ओर जिस भागलपुर विवि में वे कुलपति रहे, वहीं पुण्यतिथि भुला दी गयी. हालांकि समाचारपत्र में […]
भागलपुर : तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में मंगलवार से ही राष्ट्रकवि डॉ रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि पर नया बखेड़ा शुरू हो गया है. एक तरफ दिनकर के गांव सिमरिया में 24 अप्रैल को दिनकर की पुण्यतिथि मनायी गयी. दूसरी ओर जिस भागलपुर विवि में वे कुलपति रहे, वहीं पुण्यतिथि भुला दी गयी.
हालांकि समाचारपत्र में यह खबर प्रकाशित होने के बाद सोशल मीडिया पर भी भूचाल मच गया है, तो विवि के गलियारे में बुधवार को यह चर्चा का विषय बना रहा. हालांकि बुधवार को विवि में स्थित दिनकर की प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी. उनकी पुण्यतिथि को लेकर तरह-तरह के तर्क दिये जाने लगे हैं. पीजी हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ बहादुर मिश्र का कहना है कि दिनकरजी का निधन 24 अप्रैल की आधी रात के बाद यानी 25 अप्रैल को हुआ था. इस कारण 25 अप्रैल को पुण्यतिथि मनायी जानी चाहिए. मीडिया को दिये बयान में उन्होंने केंद्र व राज्य सरकार पर भी निशाना साधा. दूसरी ओर इसी विभाग से रिटायर हो चुके डॉ नृपेंद्र प्रसाद वर्मा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है कि इस तरह की बातें तत्कालीन कुलपति प्रो केएन दुबे के समय हुई थी और तत्कालीन विभागाध्यक्ष को क्षमा मांगनी पड़ी थी.
सोशल मीडिया पर डॉ बहादुर मिश्र के पोस्ट का अंश
आज 24 अप्रैल है. यानी आज की रात दिनकर एक बार फिर मरेंगे. लोगों को इस बात की फिक्र नहीं कि वह मरे क्यों और कैसे. उन्हें फिक्र इस बात की है कि हिंदी के छात्र-छात्राओं और शिक्षकों ने उनकी पुण्यतिथि पर कोई कार्यक्रम क्यों नहीं रखा. इस संबंध में मीडिया वालों ने जब विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों से जिज्ञासा की, तो डॉक्टर योगेंद्र ने दोपहर बाद फोन किया. मैंने कहा आज उनकी पुण्यतिथि है कागज पर. लेकिन, वे दिवंगत हुए आधी रात बाद. तरीके से उनकी पुण्यतिथि 25 अप्रैल होनी चाहिए. किसी के जीवित रहते हुए उनकी पुण्यतिथि नहीं मनाई जाती और नहीं मनायी जानी चाहिए भी. वे इतिहास के विद्यार्थी थे. इतिहास वाले क्यों नहीं मनाते. वे कांग्रेस की टिकट पर राज्यसभा सदस्य बने. राजनीति शास्त्र वालों की जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वह दिनकर को याद करें.
सोशल मीडिया पर प्रो नृपेंद्र प्रसाद वर्मा का पोस्ट
दिनकर की पुण्यतिथि से संबंधित डॉ बहादुर मिश्र का पोस्ट देखा. इसी तरह की बातें केएन दूबे, कुलपति के समय में हुई थी. विभागाध्यक्ष से कारण पृच्छा हुई थी. उन्हें लिखित क्षमा मांगनी पड़ी थी. हिंदी विभाग विश्वविद्यालय की एक इकाई है. दिनकर जी विश्वविद्यालय के कुलपति थे न कि हिंदी विभाग के अध्यक्ष, जो विश्वविद्यालय राष्ट्रकवि से गौरवान्वित अपने पूर्व कुलपति के नाम अभिषद से पारित एक शोधपीठ स्थापित करने का प्रस्ताव यूजीसी को नहीं भेज सकता है.
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