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बिहार के विकास को आयोग ने ही आगे नहीं किया, अमिताभ कांत ने कहा, गलत अर्थ लगाया जा रहा है मेरे वक्तव्य का

II अनुज शर्मा II देश से 3.3% अधिक विकास दर वाले बिहार को केंद्र से विकसित राज्यों की तुलना में कम धन मिला पटना : केंद्र सरकार ने नीति आयोग, इससे पूर्व योजना आयोग का गठन इस उद्देश्य के लिए किया था कि वह सभी राज्यों का समग्र विकास करेगा. देश के जो राज्य विकास […]

II अनुज शर्मा II
देश से 3.3% अधिक विकास दर वाले बिहार को केंद्र से विकसित राज्यों की तुलना में कम धन मिला
पटना : केंद्र सरकार ने नीति आयोग, इससे पूर्व योजना आयोग का गठन इस उद्देश्य के लिए किया था कि वह सभी राज्यों का समग्र विकास करेगा. देश के जो राज्य विकास में पिछड़ रहे हैं, उन पर अतिरिक्त ध्यान देगा.
देश के विकास के लिए नीति निर्धारण करने वाले इस आयोग ने बिहार पर कभी ध्यान ही नहीं दिया. नीति आयोग यदि बिहार को आगे बढ़ाने में एक कदम भी बढ़ाता तो आर्थिक विकास में डबल डिजिट में वृद्धि करने वाला अपना राज्य मानव विकास सूचकांक में निचले पायदान पर नहीं होता. करीब एक दशक में बिहार की विकास की वृद्धि देश की औसत विकास दर से 3.3% अधिक रही है.
2004-05 से 2014-15 तक विकास दर 10 प्रतिशत (डबल डिजिट) रही. 2016-17 में यह वृद्धि बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गयी, जबकि राष्ट्रीय विकास दर का औसत करीब सात प्रतिशत है.
बावजूद इसके मानव विकास सूचकांक में बिहार निचले पायदान पर है, तो केंद्र द्वारा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले बिहार की अनदेखी ही बड़ा कारण है. आजादी के बाद से योजना आयोग द्वारा राज्यों के बीच धन ट्रांसफर के रिकाॅर्ड को देखें तो साफ पता चलता है कि उसने बिहार जैसे पिछड़े राज्यों की जगह विकसित राज्यों को धन अधिक दिया. इसके कारण बिहार पिछड़ता गया. 1980 – 81 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के सापेक्ष 56 प्रतिशत थी.
वर्ष 2000 में राज्य के बंटवारे से पहले यह 40.5 प्रतिशत तक आ गयी. 2016 -17 बिहार की प्रति व्यक्ति आय घटकर 31.6 प्रतिशत हो गयी. देश में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय 1980-81 में बिहार से 2.7 गुनी अधिक थी.
वर्ष 2000 में 3.3 गुनी हो गयी. 2016 -17 में महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय अपने राज्य से 4.9 गुनी बढ़ गयी. इसका प्रमुख कारण केंद्र द्वारा विकसित राज्यों में किया गया अधिक निवेश था. केंद्र सरकार ने योजना मद में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक जैसे विकसित राज्यों को कुल योजना का 35 फीसदी फंड मिलता रहा है.
वहीं बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मात्र 14 प्रतिशत का आवंटन हुआ है. 11वीं पंचवर्षीय योजना में बिहार को कुल 60,631 करोड़ रुपये योजना आवंटन हुआ. वहीं आंध्र प्रदेश को 1,47,395 करोड़ और महाराष्ट्र को 1,27,538 करोड़ रुपये योजना आवंटन हुआ.
गलत अर्थ लगाया जा रहा है बिहार के बारे में मेरे वक्तव्य का : अमिताभ कांत
नयी दिल्ली : बिहार के बारे में अपने दिये गये वक्तव्य पर सफाई देते हुए नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने बुधवार को कहा कि मेरे वक्तव्य का गलत अर्थ लगाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मेरे संज्ञान में यह लाया गया है कि मीडिया में प्रसारित की जा रही कुछ रिपोर्टों में बिहार के बारे में मेरे वक्तव्यों का गलत अर्थ लगाया जा रहा है.
आकांक्षी जिला कार्यक्रम पर मेरे हाल ही के भाषण में मैंने यह कहा था कि भारत और विशेषकर कुछ राज्यों ने व्यवसाय करने की सुगमता सूचकांक के संबंध में प्रभावशाली कार्य निष्पादन किया है. हमें इसे मानव विकास सूचकांक के मामले में भी दोहराने की जरूरत है. देश के कई जिले पहले से चली आ रही समस्याओं की वजह से मानव विकास संकेतकों की दृष्टि से अब भी पिछड़े हुए हैं.
सरकार के आकांक्षी जिला कार्यक्रम का लक्ष्य तत्क्षण आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान केंद्रित करके इस स्थिति को सुधारना है. बिहार ने हाल ही के वर्षों में कई क्षेत्रकों में प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि हासिल की है, इसलिए सूचकांक में भारत के रैंक को सुधारने,
यह वांछनीय है कि इसके साथ-साथ चहुंमुखी विकास भी हासिल किया जाना चाहिए, जैसा कि आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत परिकल्पना की गयी है और इसका सबसे बड़ा प्रमाण स्वयं बिहार है.
इस कार्यक्रम के अंतर्गत इस राज्य ने पिछले कुछ महीनों में मानव विकास संबंधी सभी संकेतकों की दृष्टि से जबरदस्त प्रगति की है. बिहार के बांका जिले में ‘उन्नयन बांका’ पहल के तहत वृद्धि दर काफी अच्छी रही है. इसके तहत स्तरीय शिक्षा के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है.
प्रारंभिक स्तर पर पढ़ाई बीच में ही छोड़ने के मामलों में काफी कमी आयी है. सिविल सेवा दिवस, 2018 पर देश भर से प्राप्त 138 प्रविष्टियों में से बांका जिले का चयन ‘आकांक्षी जिला नवप्रवर्तन पुरस्कार’ के लिए किया गया.
नीति आयोग खुद खड़ा है कठघरे में : गांगुली
पटना : नीति आयोग की रिपोर्ट को लेकर सेंटर फॉर इकाेनाॅमिक पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ वर्णा गांगुली का कहना है कि देश राज्यों से बनता है. सभी राज्य किसी भी मामले में बराबर नहीं हो सकते.
राज्यों के बीच विकास की असमानता बहुत अधिक नहीं होना चाहिए. इसके लिए राज्य सरकार को नीति आयोग कठघरे में खड़ा कर रहा है, लेकिन वह खुद भी इसमें खड़ा है.
नीति आयोग का दायित्व है कि वह पूरे देश को खासकर बिहार जैसे पिछड़े राज्य को विकसित करने में अतिरिक्त योगदान दे, न कि इन राज्यों को देश के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए और न ही देश से अलग-थलग करने की बात करनी चाहिए.
बिहार जैसे राज्यों के लिए अलग श्रेणी हो : बख्शी
पटना : देश में विशेष दर्जा प्राप्त राज्य और सामान्य राज्यों का वर्गीकरण है. विशेष दर्जा वाले राज्यों में केंद्रीय प्रायोजित स्कीम में केंद्र से 90%, जबकि सामान्य राज्यों को 60% अनुदान मिलता है. सामान्य राज्यों में महाराष्ट्र , गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे विकसित राज्य हैं तो बिहार जैसे पिछड़े राज्य भी हैं. अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ बख्शी अमित कुमार सिन्हा का कहना है कि बिहार जैसे राज्यों का वर्गीकरण इन दोनों श्रेणियों के बीच का हो. नीति आयोग का यह कर्तव्य बनता है कि पिछड़े राज्यों को और पिछड़ा बनाने से रोकने के लिए इन केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र का 80% और राज्य का 20% अंशदान रहे.
इससे बिहार जैसे राज्य अपने राजस्व का उपयोग अपने सामाजिक एवं आर्थिक संसाधन विकसित करने में खर्च कर सकेंगे. नीति आयोग ऐसे सेक्टर चिह्नित करे जो पिछड़े राज्यों में पिछड़ेपन को दूर करने में कारगर हो और उसमें केंद्रीय सहायता का प्रावधान हो, तभी सही मायने में नीति आयोग अपने उद्देश्य को पूरा कर पायेगा.

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