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वापस ले जाएं सभी ऑटो टिपर 1.52 करोड़ रुपये जल्द लौटाएं

एमवीआइ की रिपोर्ट पर नगर आयुक्त ने आपूर्ति करनेवाली एजेंसी को भेजा पत्र मुजफ्फरपुर : करीब पौने चार करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गयी 50 ऑटो टिपर की गुणवत्ता सही नहीं होने के कारण निगम प्रशासन ने अब उसे आपूर्ति करने वाली एजेंसी को वापस करने के लिए पत्र लिखा है. टिपर की आपूर्ति […]

एमवीआइ की रिपोर्ट पर नगर आयुक्त ने आपूर्ति करनेवाली एजेंसी को भेजा पत्र

मुजफ्फरपुर : करीब पौने चार करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गयी 50 ऑटो टिपर की गुणवत्ता सही नहीं होने के कारण निगम प्रशासन ने अब उसे आपूर्ति करने वाली एजेंसी को वापस करने के लिए पत्र लिखा है. टिपर की आपूर्ति पटना की मौर्या एजेंसी ने की है.
एजेंसी को 24 टिपर की आपूर्ति के बाद 16 जनवरी को तत्कालीन प्रभारी नगर आयुक्त डॉ रंगनाथ चौधरी ने 1.52 करोड़ रुपये का चेक काट भुगतान किया था. इसी दिन सरकार से आइएएस नगर आयुक्त संजय दूबे की पोस्टिंग हुई थी. टेंडर प्रक्रिया व खरीद में घोटाला उजागर हुआ, तब सरकार से मामले की जांच निगरानी को सौंप दी.
इसके बाद नगर आयुक्त संजय दूबे ने अपने स्तर से विभागीय जांच शुरू करते हुए एजेंसी को भुगतान किये गये 1.52 करोड़ रुपये को जल्द-से-जल्द निगम के अकाउंट में वापस करने को कहा है.
एजेंसी को जो पत्र लिखा गया है. इसमें एमवीआई (मोटर यान निरीक्षक) की रिपोर्ट का जिक्र है. बताया जाता है कि एमवीआई की रिपोर्ट में एजेंसी से आपूर्ति टिपर की क्वालिटी पर सवाल खड़ा किया गया है.
नगर आयुक्त ने बताया कि इंजन व चेचिस टाटा कंपनी का है, लेकिन इसके बाद जो भी पार्ट्स-पूर्जा इसमें लगा है. वह सब लोकल है.
टिपर खरीद में कई स्तर पर गड़बड़ी हुई है. मामले की निगरानी जांच चल रही है. इधर, सरकार से विभागीय जांच भी करायी जा रही है. एमवीआई की रिपोर्ट आने के बाद टिपर की आपूर्ति करने वाली एजेंसी को निगम की तरफ से पत्र लिख अपना टिपर वापस ले जाने का कहा गया है. वहीं निगम से जो राशि एजेंसी को भुगतान हुआ है. उसे वापस करने का भी सख्त निर्देश दिया गया है.
संजय दूबे, नगर आयुक्त
डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए हुई थी खरीद
स्वच्छ भारत अभियान के तहत 50 ऑटो टिपर की खरीद निगम प्रशासन ने डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए किया था, लेकिन मजे की बात यह है कि जब टेंडर प्रक्रिया हुई, तब कम रेट वाले एजेंसी को हटा अधिक रेट देने वाले एजेंसी से टिपर की खरीदारी हुई. इसके बाद कम रेट देने वाली एजेंसी ने मामले की शिकायत सरकार से की. करीब पौन चार करोड़ का वित्तीय अनियमितता देखते हुए नगर विकास एवं आवास विभाग ने आनन-फानन में जांच के लिए मामला निगरानी के पास ट्रांसफर कर दिया. फिलहाल निगरानी मामले की जांच कर ही रही है.

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