देवघर : मातृ मंदिर के कल्याण छात्रावास में दिव्यांग बच्चों के लिए स्पर्श आवासीय विद्यालय की शुरुआत की गयी. वर्ष 2001 में विद्यालय की नींव रखी गयी व 2004 में उद्घाटन किया गया था. इसके बाद विद्यालय तो चालू कर दिया गया पर सुविधाएं नदारद रही. जिस कारण दिव्यांग बच्चे इस आवासीय विद्यालय का लाभ नहीं ले पा रहे हैं. आखिर, विद्यालय की दशा वहां पहुंचकर जानने की कोशिश की गयी तो जमीनी हकीकत काफी अलग दिखी.
विद्यालय का एक कमरा रसोईघर बना हुआ था. वहां दो लोग अंडा करी बनाकर खाते मिले. एक ने अपना नाम अनिरुद्ध पंडित बताया व अपना परिचय कंप्यूटर शिक्षक के रूप में दिया. जबकि दूसरे ने नाम बताने से इन्कार करते हुए बस इतना ही कहा कि वह सफाई कर्मी हैं. इस आवासीय विद्यालय में 13 कमरे हैं. जिसमें एक भी छात्र नहीं मिले. कुछ कमरों में तो इतनी धूल जमी थी कि ऐसा लग रहा था कि कभी यह कमरा खुला ही नहीं.
जानकारी के अनुसार, विद्यालय के चार कमरों की चाबी आज भी समाज कल्याण विभाग के पास है. दिव्यांग बच्चों के खेलने के सामान व कुर्सियां पड़ी थी. पर, वहां भी धूल व गंदगी जमा थी. बिजली पानी की बेहतर व्यवस्था नहीं थी. स्नानागार भी नहीं है. पेयजल के लिए नल भी नहीं लगाया गया है. शौचालय में गंदगी भी पड़ी हुई है. आवासीय विद्यालय की स्थिति देखकर सहज अंदाजा लग गया कि दिव्यांग बच्चों के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है.
- 13 छात्र के लिए 13 कमरे, पर छात्र एक भी नहीं
- बेड रूम से लेकर बाथरूम तक में दिव्यांगों के लिए व्यवस्था नहीं
- स्कूल में कंप्यूटर नहीं, लेकिन कंप्यूटर शिक्षक बहाल
- बिजली-पानी की बेहतर व्यवस्था नहीं
- स्नानागार नहीं, पेयजल के लिए नल नहीं