II मिथिलेश कु. राय II
युवा रचनाकार
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इन दिनों बेटी बचाओ के पोस्टर और बलात्कार की निर्मम खबरें आंखों के सामने से गुजरती हैं, तो बेटी-जन्म से संबंधित गांव की वे बातें जेहन में तैरने लगती हैं, जिनमें कहा जाता था कि बेटी के जन्म की खबर सुनकर पूरे परिवार का मुंह मलिन हो गया!
हालांकि अब ऐसा नहीं है, लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सामान्य परिवारों में अपनी बेटियों को लेकर एक डर तब तक पसरा रहता है, जब तक उनके हाथ पीले नहीं हो जाते.
मैंने यहां कभी इस बात को नोट नहीं किया कि कोई बुजुर्ग स्त्री नव-विवाहिता को पुत्री होने का आशीर्वाद दिया हो. यहां पैर छूकर आशीर्वाद लेने की एक पुरानी परंपरा है. आशीर्वाद भी कई तरह के हैं. स्त्रियां जब भी किसी का पैर छूती हैं, उन्हें एक ही आशीर्वाद मिलता है- दूधो नहाओ पूतो फलो! कभी कोई स्त्री किसी दूसरी स्त्री को पुत्री जनने का आशीर्वाद नहीं देती.
यह अकारण नहीं है. वे स्त्रियां बहुत सौभाग्यशालिनी मानी जाती हैं, जिनकी कोख से एक भी पुत्री नहीं जन्मी है. केवल पुत्रियां जननेवाली मां से की जानेवाली अनजानी उपेक्षा को यहां पैनी नजरों से देखा जा सकता है.
सदियां बीत जाने के बाद भी अगर आज तक हम सिर्फ बेटी बचाने के नारे ही गढ़ पा रहे हैं और फिर भी वह नहीं बच पा रही है, तो यह व्यवस्था की खामी तो है ही. लेकिन उससे भी ज्यादा यह हमारी कुत्सिक मानसिकता का परिचायक है.
क्या कारण है कि दिन-प्रतिदिन बेटों के अनुपात में बेटियों की संख्या कम होती जा रही है. फिर भी जिनके आंगन में बेटियां हैं, उनके मन में एक डर पसरा रहता है. मैंने एक बात नोट की है कि जिस पिता के सिर्फ बेटे हैं, उनका सिर गर्व में तना रहता है और उनकी चाल में भी एक अकड़ रहती है. लेकिन सिर्फ बेटियों के बाप की चाल पर गौर करता हूं, तो लगता है कि उनके कदम बेहद थके हुए हैं. उनके चेहरे से लाचारगी और बेचारगी टपकती रहती है.
मुझे एक फिल्म का एक दृश्य याद आ रहा है. उसमें अभी-अभी जन्मी बेटी को दूध में डुबो कर मार दिया जाता है. इस कामना के साथ कि ऐसा करने से अगली बार बेटा होगा. बेटे के लिए लाख तरह की मनौतियां मांगने के रिवाज को देखते हुए मैं नोट करता हूं कि एक बेटी के लिए कोई भी किसी भी देवता के आगे हाथ नहीं पसारता.
इस बात का जिक्र नया नहीं है कि देश में जन्मते ही बेटियों को मार देने की कुत्सित परंपरा भी रही है. इधर दूध में डुबो कर बच्चियों को मार डालने के किसी कांड का पता तो नहीं चलता है, पर नमक चटा कर उनकी इहलीला समाप्त कर देने की झलक मिलती है. हालांकि, यह बहुत पुरानी बात है.
अब नये तरीके आ गये हैं. नये तरीके में पेट में ही बेटियों को मार देने के लिए कई तरह की दवाइयां हैं और इसमें दक्ष लोग हैं. मुझे बहुत पहले की एक बुढ़िया के बारे में पता चलता है, जो कहती थी कि बेटियां बेवजह जनम जाती हैं. मन्नतें और आशीर्वाद तो सिर्फ पूतों से फलने और दूध से नहाने के लिए दी जाती हैं.