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मधुमेह एवं स्वास्थ्य चुनौतियां
II अनंत कुमार II एसोसिएट प्रो, जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, रांची pandeyanant@hotmail.com मधुमेह बीमारी (डायबिटीज) से संबंधित हालिया आंकड़े चौंकानेवाले हैं और बेहद चिंता के विषय हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में मधुमेह की बीमारी से पीड़ित कुल जनसंख्या का 49 प्रतिशत भारत में रहते हैं. यह बहुत बड़ा […]
II अनंत कुमार II
एसोसिएट प्रो, जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, रांची
pandeyanant@hotmail.com
मधुमेह बीमारी (डायबिटीज) से संबंधित हालिया आंकड़े चौंकानेवाले हैं और बेहद चिंता के विषय हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में मधुमेह की बीमारी से पीड़ित कुल जनसंख्या का 49 प्रतिशत भारत में रहते हैं. यह बहुत बड़ा प्रतिशत है.
हाल के भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद्, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, एवं इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवेल्यूएशन के साल 2017 के आंकड़े बताते हैं कि पिछले पच्चीस वर्षों में भारत में मधुमेह के फैलने में 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि जन-स्वास्थ्य की दृष्टि से एक गंभीर समस्या है. निश्चित रूप से इस गंभीर विषय पर हमें ठोस तरीके से न सिर्फ सोचने की जरूरत है, बल्कि जरूरी कदम भी उठाने की जरूरत है. इसे लेकर जागरूकता तो एक जरूरी पक्ष है ही.
भारत में इस समय लगभग बहत्तर मिलियन (सात करोड़ बीस लाख) लोग मधुमेह की बीमारी से पीड़ित हैं एवं एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2025 तक यह संख्या 134 मिलियन तक यानी आज के मुकाबले दोगुने स्तर तक पहुंच जायेगी. ऐसे में भारत जैसे देश के लिए, खासकर, जन-स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बेहद जरूरी है कि इस महामारी से लड़ने के उपायों के बारे में हम सोचें एवं समय रहते इस दिशा में सशक्त कदम उठाएं.
आज मधुमेह एक ऐसी महामारी बन चुकी है, जिसके चपेट में अमीर एवं गरीब सभी लोग शामिल हैं. ऐसे में, भारत जैसे उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले देश के लिए नागरिकों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना एवं मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना एक बड़ी चुनौती होगी.
मधुमेह बीमारी के बढ़ने के पीछे कई कारक रहे हैं, जिनमें नब्बे के दशक के बाद की आर्थिक विकास की एक बड़ी भूमिका रही है. ऐसा माना जाता रहा है कि इस आर्थिक विकास ने न सिर्फ लोगों के जीवन-स्तर, बल्कि रहन-सहन एवं खान-पान को भी प्रभावित किया है, जिसे मधुमेह जैसी बीमारी से जोड़कर भी देखा जाता है.
विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, साल 1990 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 380 डॉलर (24,867 रुपये) थी, जो कि 2016 में 340 प्रतिशत बढ़कर 1,670 डॉलर (1,09,000 रुपये) हो गयी थी. इस अवधि के दौरान, मधुमेह की बीमारी के मामलों में 123 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गयी.
आज स्थिति यह है कि 25 वर्ष से कम उम्र के हर चार लोगों में से एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित है. पिछले साल प्रकाशित, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा किये गये अध्ययन बताते हैं कि भारत में राज्यों के बीच मधुमेह के प्रसार में बड़े अंतर हैं, जिनका सीधा संबंध राज्य के विकास दर से है. उच्च प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाले राज्यों में मधुमेह का प्रसार ज्यादा पाया गया.
साथ ही, अधिक आर्थिक रूप से विकसित राज्यों के शहरी क्षेत्रों में निम्न आय-वर्ग समूहों में भी मधुमेह की उच्च प्रसार दर्ज की गयी, जो कि गंभीर चिंता का विषय है, जिस ओर ध्यान देना जरूरी है.
हालांकि, मधुमेह को जीवन-शैली से जुड़ी बीमारी माना जाता है, आनुवंशिक कारकों के अलावा इस बढ़ोतरी के पीछे लोगों की जीवन-शैली, व्यवसाय, रहन-सहन, एवं खान-पान में आये बदलाव की मुख्य भूमिका होती है. भारत में मधुमेह की बीमारी के प्रसार के कई कारक हैं.
शारीरिक निष्क्रियता, आसान जीवन-शैली, वसायुक्त एवं कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार तथा उच्च कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों के अत्यधिक सेवन का मधुमेह जैसी बीमारियों से सीधा संबंध है, जिसके चलते न केवल मधुमेह, बल्कि हाल के दिनों में मोटापा, उच्च रक्त चाप जैसी बीमारियों में भी बढ़ोतरी हुई है. पहले ऐसा माना जाता था कि केवल उच्च आय वर्ग के लोग ही मधुमेह जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इस बीमारी के चपेट में अमीर-गरीब एवं सभी आयु-वर्ग के लोग शामिल हैं.
आज नीति-निर्माताओं को यह भी समझने की जरूरत है कि मधुमेह जैसी बीमारी न सिर्फ लोगों के स्वास्थ्य, बल्कि उनकी उत्पादकता को भी प्रभावित कर रही है, खासकर, जहां 25 वर्ष से कम उम्र के हर चार लोगों में से एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित हो.
भारत जैसे उभरती आर्थिक शक्ति वाले देश के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जहां आबादी के एक बड़े हिस्से के मधुमेह की चपेट में आने की संभावना अब भी प्रबल बनी हुई है. साथ ही, विकास के साथ-साथ इसका सीधा संबंध भारत सरकार के हाल ही में किये गये स्वास्थ्य संबंधी घोषणाओं एवं अनुमानित वित्तीय बोझ से भी है, जहां साल 2020 तक नीतियां भारत की आधी आबादी के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने के लिए वचनबद्ध हैं.
आज जरूरत इस बात की है कि लोगों को इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाये एवं जीवन-शैली में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया जाये. ऐसे में चिकित्सीय परामर्श से ज्यादा लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, जिसमें स्वास्थ्य केंद्रों के साथ-साथ, परिवार, समुदाय एवं पंचायत मुख्य भूमिका निभा सकते हैं.
स्वास्थ्य नीतियों के मद्देनजर मधुमेह की बढ़ती व्यापकता एवं प्रसार बड़ी चुनौती है. इस चुनौती को स्वीकारने के साथ ही इससे लड़ने की हरसंभव कोशिशें की जानी चाहिए, ताकि इसका फैलाव न होने पाये.
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