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बुकसेलरों ने छह माह पूर्व किया था ऑर्डर, डिपो से नहीं हो रही सप्लाइ

कहते हैं, बुक ऑर्डर की दस फीसदी किताबें भी नहीं हो पातीं उपलब्ध सहरसा : शैक्षणिक सत्र 2017-18 समाप्त हो गया. अधिकतर विद्यालयों में 2018-19 का नया सेशन प्रारंभ हो चुका है या इसी सप्ताह शुरू हो जायेगा. बच्चों को रिजल्ट के साथ नयी कक्षा की किताबों की सूची भी दे दी गयी है. विभिन्न […]

कहते हैं, बुक ऑर्डर की दस फीसदी किताबें भी नहीं हो पातीं उपलब्ध

सहरसा : शैक्षणिक सत्र 2017-18 समाप्त हो गया. अधिकतर विद्यालयों में 2018-19 का नया सेशन प्रारंभ हो चुका है या इसी सप्ताह शुरू हो जायेगा. बच्चों को रिजल्ट के साथ नयी कक्षा की किताबों की सूची भी दे दी गयी है. विभिन्न स्कूलों की बुक लिस्ट में किताब की दुकानों के नाम भी अंकित हैं. लेकिन बाजार में किताब मिलने की पुरानी परेशानी आज भी बरकरार है. अभिभावक बुक लिस्ट लेकर दुकान दर दुकान भटक रहे हैं. लेकिन एनसीइआरटी की किताबें कहीं मिल नहीं रही हैं.
60 फीसदी स्कूलों में लगी है एनसीइआरटी की किताब: शहर में निजी विद्यालयों की संख्या तकरीबन डेढ़ सौ है. जिसमें से लगभग छह स्कूल सीबीएसइ बोर्ड से एफिलिएटेड हैं. इसके अलावे लगभग सभी विद्यालय बिहार सरकार से रजिस्टर्ड व शिक्षा विभाग से प्रस्वीकृत हैं. सीबीएसइ एफिलिएटेड स्कूल सहित लगभग 60 फीसदी प्रस्वीकृत विद्यालयों में एनसीइआरटी की किताबें लगी हुई हैं. लेकिन बाजार में इन किताबों की उपलब्धता नहीं होने से बच्चे सहित अभिभावक परेशान हैं.
ऐसी परिस्थिति में या तो वे पुरानी किताब की जुगाड़ में जुटे हैं या उनकी पढ़ाई शुरू नहीं हो पा रही है. या फिर वे साइड वर्क बुक से ही अभी काम चला रहे हैं. स्कूल में उपलब्ध एक प्रति से शिक्षक बच्चों को पढ़ा तो रहे हैं. लेकिन बच्चे स्वाध्याय (सेल्फ स्टडी) नहीं कर पा रहे हैं. उन्हें होमवर्क नहीं दिया जा पा रहा है.
नहीं मिलने के कारण लगती हैं पैटर्न की किताबें
बुकसेलर निरंजन सिंह ने बताया कि केंद्रीय विद्यालय सहित शहर के अधिकतर निजी स्कूलों में एनसीइआरटी की पुस्तकें लगी हुई हैं. लेकिन आवश्यकता के अनुसार डिपो किताबें उपलब्ध नहीं करा पा रहा है. उन्होंने बताया कि बीते वर्ष अक्तूबर महीने में ही नये सेशन के लिए किताबों का ऑर्डर बुक किया गया था. जो छह माह बाद भी अब तक उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. बुकसेलर ने कहा कि एक तो एनसीइआरटी की किताबें काफी देर से उपलब्ध हो पाती हैं, दूसरी ओर जितना ऑर्डर बुक किया जाता है, डिपो उसका दस फीसदी माल भी नहीं भेजता है. इधर निजी विद्यालय के कई संचालकों ने बताया कि जब तक बिहार टेक्स्ट बुक कॉरपोरेशन (बीटीबीसी) की किताबें बाजार में उपलब्ध होती रही थीं, तब तक कोई परेशानी नहीं थी. अभिभावकों को कम कीमत में किताबें मिल जाती थी. बताया कि बीटीबीसी की बिक्री बंद होने के बाद छठी कक्षा से ऊपर सभी वर्गों में एनसीइआरटी की किताबें लगायी गयी है. मिलने में परेशानी के कारण ही स्कूल प्रबंधन को एनसीइआरटी पैटर्न पर आधारित निजी प्रकाशन की किताबें लगानी पड़ती हैं.

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