बोधगया : पारंपरिक जलस्रोतों के खत्म होने से जल संकट गहराने लगा है. जीवन के लिए हवा के साथ-साथ पानी भी एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में जरूरी है. इसकी जरूरत केवल मानव ही नहीं, समस्त जीव-जंतुओं को है. आबादी के बढ़ने के साथ ही पानी की आवश्यकता भी पहले से ज्यादा महसूस की जाने […]
बोधगया : पारंपरिक जलस्रोतों के खत्म होने से जल संकट गहराने लगा है. जीवन के लिए हवा के साथ-साथ पानी भी एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में जरूरी है. इसकी जरूरत केवल मानव ही नहीं, समस्त जीव-जंतुओं को है. आबादी के बढ़ने के साथ ही पानी की आवश्यकता भी पहले से ज्यादा महसूस की जाने लगी है.
लेकिन, पानी के लिए सरकारी व निजी स्तर पर किये जा रहे उपायों पर जमीन के अंदर पानी की कमी भारी पड़ती जा रही है. इसके पीछे मुख्य रूप से गांवों व शहरों में पारंपरिक जलस्रोतों का क्षय होना प्रमुख कारक बन कर सामने आने लगा है. बोधगया में कई जगहों पर भूजल स्तर के खिसकने से पहले से गाड़े गये चापाकलों ने पानी उगलना बंद कर दिया व लोग अब पानी को लेकर घोर संकट में घिरने लगे हैं. चापाकलों व नलकूपों ने जवाब देना शुरू कर चुका है और मानव के साथ-साथ पशु-पक्षियों पर भी पानी के लिए संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इस दिशा में समय रहते सरकारी के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर ठोस उपाय नहीं किये गये,
तो वह दिन दूर नहीं है जब लोग पानी के लिए खून बहाने से भी पीछे नहीं रहेंगे. पानी की चोरी होगी व पानी के लिए डाका डाले जाने लगेंगे. बहरहाल, गांवों में पानी की किल्लत के संदर्भ में यह साफ हो चुका है कि पहले से मौजूद पारंपरिक जल संचय यथा आहर, पोखर, तालाब आदि के स्थानों पर खेतीबारी होने के साथ ही भवनों का निर्माण बेरोक-टोक होने लगा है. बरसात का पानी संचय नहीं हो पाता और अप्रैल आने से पहले ही कुआं, तालाब व आहर सूख चुके होते हैं. इसका असर भूजल स्तर पर पड़ता है व चापाकलों के साथ-साथ नलकूप भी पानी देना बंद कर देते हैं. सरकारी स्तर पर भी फिलहाल पारंपरिक जलभंडारनों की उपेक्षा की जाने लगी है व इसमें सामाजिक स्तर पर हवा भी दी जाने लगी है. गांवों के आहर-पोखरों को समाप्त करने में संबंधित गांव के लोग ही जिम्मेदार होते हैं. फिर जलसंकट के लिए किसी पर दोषारोपण भी बेमानी ही कही जा सकती है.
प्रशासनिक स्तर पर भी हो रही लापरवाही
जलस्तर खिसकने के बाद बंद पड़े चापाकलों व नलकूपों को दुरुस्त करने के प्रति संबंधित विभाग भी लापरवाह नजर आ रहा है. सुदूरवर्ती गांवों में पानी की व्यवस्था संभाल रहा पीएचइडी के जिम्मेदार अधिकारियों का दौरा तक नहीं होता व उन्हें इसकी जानकारी भी नहीं होती कि विभाग द्वारा लगाये गये चापाकलों की क्या स्थिति है? ज्यादातर चापाकल मरम्मत के अभाव में बंद पड़े हैं. अब तक गांवों में पीएचइडी के इंजीनियर व मिस्त्री चापाकलों को ठीक करने का काम तक शुरू नहीं किया है. इससे लोगों में व्यवस्था के प्रति नाराजगी देखी जा रही है. कई टोले में अब तक सरकारी स्तर से चापाकल भी नहीं गाड़े गये हैं. उदाहरण के तौर पर सांसद द्वारा गोद ली गयी बकरौर पंचायत के सिलौंजा गांव के दशरथ देश के नाम से बसे एक टोले में अब तक सरकारी स्तर से एक भी चापाकल नहीं लगाया गया है. यहां 100 से ज्यादा घर व झोपड़ी मौजूद हैं. लोग रहते भी हैं. लेकिन, यहां के वाशिंदे शुक्रगुजार हैं एक एनजीओ का. यहां पद्मपाणी एजुकेशनल एंड सोशल फाउंडेशन के माध्यम से 10 से ज्यादा चापाकल गाड़े गये हैं. चापाकल के चारों ओर घेराबंदी भी की गयी है ताकि महिलाएं यहां स्नान आदि भी कर सकें. लेकिन, हर घर नल-जल योजना के तहत पास में ही स्थित पानी की टंकी से उक्त टोले में कनेक्शन नहीं दिया गया है. हालांकि, यहां बिजली व गली-नाली भी नहीं है. इसी तरह बोधगया के पूर्वी इलाके जिसमें मोराटाल, कन्हौल, गांफाखुर्द पंचायतों के दर्जनों गांवों में अभी से ही पानी को लेकर परेशानी बढ़नी शुरू हो गयी है. बोधगया के पश्चिमी क्षेत्र के कई गांवों में भी पानी की किल्लत से लोग जूझने लगे हैं.