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जायके का समुद्री खजाना

इंिडयन स्वाद्र भारत में समुद्री जीवों से बने व्यंजन यानी सीफूड को खाने-खिलाने का चलन वैसा नहीं है, जैसा दुनिया के कई देशाें में है. विडंबना तो यह है कि जो हिंदुस्तानी दुनिया देख चुके हैं और चीनी-जापानी, थाई रेस्त्रां में इनके मजे लेते रहे हैं, वे भी भोजनालयों में इनको नहीं आजमाते. तटवर्ती प्रांत […]

इंिडयन स्वाद्र

भारत में समुद्री जीवों से बने व्यंजन यानी सीफूड को खाने-खिलाने का चलन वैसा नहीं है, जैसा दुनिया के कई देशाें में है. विडंबना तो यह है कि जो हिंदुस्तानी दुनिया देख चुके हैं और चीनी-जापानी, थाई रेस्त्रां में इनके मजे लेते रहे हैं, वे भी भोजनालयों में इनको नहीं आजमाते. तटवर्ती प्रांत में छुट्टियां मनाते वक्त भी नहीं. ऐसा क्यों है, इसी बात को समझाते हुए इस बार जायके में समुद्री जीवों के व्यंजनों के बारे में हम आपको बता रहे हैं..
कुछ दिन पहले मुझे बैंकॉक जाने का मौका मिला. हमारे मेजबान एक भारतवंशी थे, जिनका परिवार कई पुश्त से थाइलैंड में रह रहा है. हफ्ते भर के मेरे प्रवास में उन्होंने मुझे इस नगर में भारतीय खाने के कई नमूने खिलाये-चखवाये. दिलचस्प बात यह थी कि हर जगह समुद्री मछलियों, झींगो, सीपियों, केकड़ों के तंदूरी अवतार या कोरमे, पुलाव दिखलायी दिये.
नाम के लिए मुर्ग मलाई भी हाजिर थी और सालिम रान तथा कड़ाही पनीर भी थी, लेकिन इनकी फरमाइश करनेवाले भारतीय पर्यटक ही थे, जो मौज-मस्ती के दो-तीन दिन गुजारने के लिए इस देश में पहुंचते हैं. तब से हम यही सोच रहे हैं कि क्यों स्वदेश में भारतीय जायका समुद्री खजाने के इन रत्नों से वंचित ही रहता है?
भारत का समुद्र तटवर्ती इलाका हजारों किलोमीटर लंबा है और गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बंगाल राज्यों का अंग है. असम में भी झींगे, केकड़े चाव से खाये-खिलाये जाते हैं. केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र में समुद्री जीवों से तैयार किये जानेवाले व्यंजनों में, स्थानीय जबान पर चढ़े जायके के अनुसार, तेज या हल्के मसाले इस्तेमाल किये जाते हैं.
कहीं नारियल का दूध शामिल किया जाता है, तो कहीं इमली-टमाटर की खटास का. अरब सागर से हट कर बंगाल की खाड़ी का रुख करें, तो सरसों नजर आने लगती है. तमिलनाडु के चेट्टिनाड भोजन में काली मिर्च, चक्री फूल, लौंग आदि साफ महसूस होते हैं. करी पत्ते की महक आनंददायक लगती है. उल्लेखनीय यह है कि कहीं भी चाट मसाले की परत चढ़ा तंदूरी झींगा लोकप्रिय नहीं है. तवे या उथली कड़ाही में बस नाममात्र को हलका भूनना ही पर्याप्त समझा जाता है.
हमारी समझ में इन चीजों के देशव्यापी प्रसार में सबसे बड़ी रुकावट देश के मर्मस्थल के निवासियों के मन में घर कर चुकी शंका है कि इनको खाने में कुछ खतरा तो नहीं! ताजे समुद्री जीव सभी जगह सुलभ नहीं रहे हैं. इनको साफ करना भी खासी कलाकारी है. यदि आप बचपन से चित्र-विचित्र आकार और रंगों वाले झींगो-केकड़ों को सहज भाव से खाने-पचाने के अभ्यस्त न हों, तो यह हिचक जीवन पर्यंत बनी रहती है.
विडंबना यह है कि जो हिंदुस्तानी दुनिया देख चुके हैं और चीनी-जापानी, थाई रेस्त्रां में इनका मजा लेते हैं, वे हिंदुस्तानी भोजनालयों में इनको नहीं आजमाते. तटवर्ती प्रांत में छुट्टियां मनाते वक्त भी नहीं. हाल के वर्षों में मछुआरे इन चीजों के निर्यात से कमाई करने के लालच में अपने भोजन में इनकी मात्रा कम करते रहे हैं. यह संकट उत्पन्न हो रहा है कि कुछ पारंपरिक स्थानीय पाकविधियां निकट भविष्य में लुप्त हो सकती हैं.
समुद्री जीवों के व्यंजन को तैयार करने में एक विशेष कौशल की दरकार होती है. ज्यादा पकाने से मांस सख्त हो जाता है और भारतीय कच्चा या अधपका मांस मुंह में डालने से हिचकते हैं. यहां यह रेखांकित करने की जरूरत है कि तंदूरी टिक्का या मूर्ग तंदूर में पूरी तरह पकता नहीं. दही वाला मसाला मांस के रेशों को पहले ही गला चुका होता है. यही बात तवे पर सिंके गलौटी कबाब पर भी लागू होती है. फिर यहां पर ही यह भेदभाव क्यों?
समुद्री सब्जियां भी जापानी खानपान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे शूशी में सी वीड-समुद्री घास. हमारे गुजराती मित्रों ने हमें उस खारी समुद्री घास के बारे में बतलाया है, जो शाकाहारियों को मत्स्यगंध का स्वाद सुलभ कराती है!
रोचक तथ्य
समुद्री जीवों के व्यंजन को तैयार करने में एक विशेष कौशल की दरकार होती है. ज्यादा पकाने से मांस सख्त हो जाता है और भारतीय कच्चा या अधपका मांस खाने से हिचकते हैं.
ताजे समुद्री जीव सभी जगह सुलभ नहीं रहे हैं. इनको साफ करना भी खासी कलाकारी है.
समुद्री सब्जियां भी जापानी खानपान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे शूशी में सी वीड-समुद्री घास. यह शाकाहारियों को मत्स्यगंध का स्वाद सुलभ कराती है!
पुष्पेश पंत
समुद्री जीवों से बनी चीजों के देशव्यापी प्रसार में सबसे बड़ी रुकावट भारतीयों के मन में घर कर चुकी यह शंका है कि इनको खाने में कुछ खतरा तो नहीं!

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