हर माह के शुक्ल पक्ष के चौथे दिन विनायक चतुर्थी आती है एवं कृष्ण पक्ष के चौथे दिन संकष्टी चतुर्थी. यह व्रत भारत में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिमी व दक्षिणी भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है.
इसे संकट चौथ और गणेश संकष्टी चौथ भी कहते हैं. वैशाख मास संकष्टी चतुर्थी 3 अप्रैल को है. मंगलवार को पड़नेवाली चतुर्थी को अतिशुभकारी माना जाता है.
मान्यता है कि अंगारक (मंगल देव) के कठिन तप से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वरदान दिया कि चतुर्थी तिथि अगर मंगलवार को पड़े तो उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जायेगा. इस व्रत को करने से पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत करने का फल प्राप्त होता है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी काम बिना किसे विघ्न के संपूर्ण हो जाते हैं. भक्तों को गणेश जी की कृपा से सारे सुख प्राप्त होते हैं. इस व्रत में अन्न नहीं खाया जाता.
दिन में फल, जूस, मिठाई खाने का विधान है. शाम को पूजा के बाद फलाहार करते हैं, जिसमें साबूदाना खिचड़ी, राजगिरा का हलवा, आलू मूंगफली, सिंघाड़े के आटे से बनी चीजें खा सकते हैं. सभी चीजें सेंधा नमक में बनायी जाती हैं. विधिपूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख-शांति आती है तथा व्यक्ति को अच्छी बुद्धि, धन-धान्य की प्राप्ति होती है.