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बिहार : प्राइवेट स्कूल जूते-मोजे तक की कर रहे हैं दुकानदारी, निर्धारित दुकान से ही खरीदने का होता है दबाव
पटना : प्राइवेट स्कूलों पर बाजारवाद इतना हावी हो चुका है कि समुचित पठन-पाठन भी नहीं हो पाता है. स्कूलों में पढ़ाई के अलावा किताब-कॉपी से लेकर यूनिफॉर्म व जूता-मोजा तक की दुकानदारी शुरू हो गयी है. इस तरह पूरी पाठ्य सामग्री से लेकर पहनावे तक पर स्कूलों ने अपना कब्जा कर लिया है. बावजूद […]
पटना : प्राइवेट स्कूलों पर बाजारवाद इतना हावी हो चुका है कि समुचित पठन-पाठन भी नहीं हो पाता है. स्कूलों में पढ़ाई के अलावा किताब-कॉपी से लेकर यूनिफॉर्म व जूता-मोजा तक की दुकानदारी शुरू हो गयी है. इस तरह पूरी पाठ्य सामग्री से लेकर पहनावे तक पर स्कूलों ने अपना कब्जा कर लिया है. बावजूद समय से सिलेबस पूरा नहीं हो पाता.
इस कारण अभिभावकों को अपने बच्चों के सिलेबस को पूरा कराने लिए ट्यूशन का सहारा लेना पड़ता है. इसके अलावा स्कूल के टीचर से ट्यूशन नहीं पढ़ने के कारण बच्चे को फेल किये जाने जैसी शिकायतें भी समय-समय पर प्रकाश में आती रहती हैं.
किताबों के बोझ तले दब रहे बच्चे
पहले और अब में काफी परिवर्तन आ गया है. बच्चे किताबों के बोझ तले दबते जा रहे हैं. स्कूलों में इतनी छुट्टी होती है कि समय से सिलेबस पूरा नहीं हो पाता है. परीक्षा के एक दिन पूर्व तक चैप्टर पूरा कराया जाता है. सिलेबस पूरा नहीं होने के कारण ट्यूटर की जरूरत पड़ती है, जिससे खर्च बढ़ता है.
सोमा चक्रवर्ती, अभिभावक
ऐन वक्त पर पूरा होता है सिलेबस
हर साल नया सत्र शुरू होने से पहले एडमिशन, रि-एडमिशन या एनुअल फीस का भुगतान तो करना ही पड़ता है. स्कूल कैंपस या निर्धारित दुकान से ही किताब-कॉपी व यूनिफॉर्म तक खरीदना पड़ता है. बावजूद परीक्षा के ऐन वक्त पर सिलेबस पूरा किया जाता है.
रुद्र प्रताप सिंह, अभिभावक
हर महीने 5-6 हजार का बजट
अभिभावक बताते हैं कि सत्र के आरंभ में एडमिशन/रि-एडमिशन, किताब-कॉपी व यूनिफॉर्म आदि मिला कर एक बच्चे पर कम-से-कम 15 से 20 हजार रुपये तक खर्च होते हैं. इसके अलावा स्कूल फीस व ट्यूशन फीस जोड़ कर हर महीने करीब 5-6 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में घर के बजट को संतुलित रखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
विभिन्न मदों से स्कूलों की आय
स्कूलों को कहां-कहां औसतन कितनी कमाई होती है, अभिभावक आसानी से इसका अंदाजा लगा सकते हैं. इसमें हर वर्ष नया सत्र आरंभ होने से पहले एडमिशन फीस/रि-एडमिशन या रजिस्ट्रेशन व एनुअल फीस, किताब-कॉपी (पीरी पाठ्य सामग्री), यूनिफॉर्म (जूता-मोजा समेत) आदि शामिल हैं.
देखा जाये तो एडमिशन/रि-एडमिशन या रजिस्ट्रेशन व एनुअल फीस के रूप में एक बच्चे से औसतन 10 से 15 हजार रुपये स्कूल को मिलते हैं, किताब-कॉपी पर 4 हजार व स्कूल फीस के मद में हर महीने 2 से 3 हजार रुपये तक मिलते हैं.
प्रत्यक्ष रूप से कहां कितनी आय (संभावित)
क्लास छात्र की एडमिशन/एनुअल मंथली फीस साल में आय कुल
संख्या (प्रति छात्र) (प्रति छात्र)
नर्सरी 480 Rs 10,000 Rs 1500 Rs 28,000 Rs 13,440,000
पहली से आठवीं 1280 Rs 16000 Rs 2000 40,000 रु Rs 51,200,000
नौवीं से 12वीं 540 Rs 25000 Rs 3000 Rs 61,000 Rs 32,940,000
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