II गुंजन सिंह II
एसोसिएट फेलो, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन
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उत्तर कोरिया के किम जोंग उन ने पिछले हफ्ते अचानक से बीजिंग का दौरा किया. साल 2011 में उत्तर कोरिया के नेता बनने के बाद किम की यह पहली यात्रा थी. यह विशेष रूप से दिलचस्प और उल्लेखनीय है, क्योंकि यह किम और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मीटिंग के कुछ दिनों पहले संपन्न हुआ है. किम आगामी मई में ट्रंप से मिलनेवाले हैं.
यह बैठक यह भी अंकित करती है कि भले ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को किम और ट्रंप के बैठक के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है, फिर भी उत्तर कोरिया की विदेश नीति की दिशा चीन निर्धारित करता है. एक और दिलचस्प चीज बैठक की जगह के बारे में है. किम विमान और समुद्री रास्ते से सफर करने में डरते हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि किम अब अमेरिकी राष्ट्रपति से कहां मिल पाते हैं. हालांकि, अनुमान लगाया जा रहा है कि शायद इनकी मुलाकात चीन में ही हो.
शी और किम की मुलाकात उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच आगामी मीटिंग के लिए दिशा निर्धारित करेगी. दक्षिण कोरियाई और उत्तर कोरियाई पक्षों ने सीमावर्ती क्षेत्र में 27 अप्रैल, 2018 को मिलने का निर्णय लिया है. किम जोंग-उन और दक्षिण कोरिया के मून जाए-इन अपने देशों की सीमा के गावों में मिलनेवाले हैं.
पिछले कुछ वर्षों से चीन और उत्तर कोरिया के संबंध ठीक नहीं थे. कारण था कि चीनी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का पालन करने का फैसला किया था. हालांकि, माओ ने हमेशा चीन-उत्तर कोरिया संबंधों को बहुत महत्वपूर्ण कहा था, पिछले कुछ सालों में इस रिश्ते में काफी बदलाव देखने को मिल रहे थे. उत्तर कोरिया द्वारा किये गये निरंतर परमाणु और मिसाइल परीक्षण से चीनी राष्ट्रपति काफी परेशान और नाराज थे.
एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है- पिछले कुछ सालों में चीन और दक्षिण कोरिया के बीच बढ़ती निकटता. दक्षिण कोरिया और चीन के बीच बढ़ रही आर्थिक और कूटनीतिक निकटता भी उत्तर कोरिया की चिंता का बड़ा कारण साबित हो रही थी. चीन और दक्षिण कोरिया की निकटता से यह भी स्पष्ट था कि चीन के लिए आर्थिक तरक्की काफी महत्वपूर्ण है.
शी और किम के बीच की हाल की बैठक ने इस एक तर्क को मजबूत किया है कि उत्तर कोरिया बीजिंग से दिशा और समर्थन के बिना किसी भी निर्णय का पालन नहीं करेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति से मिलने के लिए उत्तरी कोरिया का फैसला अलग-अलग भी बहुत दिलचस्प है.
यह निश्चित रूप से किम को अधिक लाभ उठाने और सौदेबाजी करने के लिए जगह बनायेगा. किम और शी जिनपिंग की मुलाकात में किम ने जरूर शी से आनेवाली बैठकों में क्या अर्जित करना है, इसके बारे मे चर्चा की होगी.
ट्रंप प्रेसिडेंसी की शुरुआत से उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच संबंध बहुत गरम रहे हैं. किम ने कई मिसाइल परीक्षणों के बाद यह दावा किया है कि वह अमेरिकी क्षेत्रों को भेदने में सक्षम है. पर किम का यह रवैया फिछले कुछ दिनों में बदलता हुआ दिखा है.
किम ने हाल ही में संपन्न शीतकालीन ओलंपिक के दौरान दक्षिण कोरिया की ओर गर्मी दिखाकर अपने दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव अपनाया और डोनाल्ड ट्रंप से भी मिलने के लिए तैयार हो गये. ट्रंप और किम की मुलाकात में परमाणु निरस्त्रीकरण की भी चर्चा होगी. अमेरिका का सैन्य दल दक्षिण कोरिया में मौजूद है. अगर किम ने ट्रंप से इस सैन्य दल को हटाने की मांग की, तो क्या अमेरिका इस प्रस्ताव को मानेगा? यह बड़ा सवाल है.
उत्तर कोरिया के नेता और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच बैठक तिथि की घोषणा के बाद, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि ‘हम इन घटनाक्रमों का स्वागत करते हैं. भारत ने बातचीत और कूटनीति के माध्यम से कोरियाई प्रायद्वीप में शांति और स्थिरता लाने के सभी प्रयासों का समर्थन किया है.’ भारत ने हमेशा ही परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन किया है.
अगर ट्रंप और किम के बीच सब कुछ ठीक रहा, तो यह पहली बार होगा कि एक अमेरिकी राष्ट्रपति उत्तर कोरियाई नेता के साथ मिलेंगे.
हालांकि, काफी बातें अभी भी साफ नहीं हैं. पर, अगर यह मुलाकात सफल होती है, तो यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है. अगर किम इस बैठक को पूरा करते हैं, तो यह कोरियाई प्रायद्वीप को शांति और स्थिरता लाने में एक महत्वपूर्ण कदम होगी. यह बैठक उत्तर कोरियाई शासन को विश्व मंच के लिए सीधी पहुंच प्राप्त करने में भी मदद करेगी.
साथ ही, यह किम को कुछ स्वीकृति प्राप्त करने में और अमेरिका को समझाने में भी मदद कर सकती है. लेकिन, वहीं अगर किम पीछे हटने का फैसला करते हैं, तो इससे मौजूदा नाजुक स्थिति खराब हो सकती है और संभवतः आगे के तनावों को जन्म दे सकती है. पूर्वी एशिया में समग्र शांति के लिए वर्तमान विकास बहुत सकारात्मक है. इसलिए यह बैठक उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच तनाव भरे संबंधों में सुधार लाने में भी मदद करेगी.
पूरी दुनिया इस बैठक और चर्चा को उत्सुकता से देख रही है. आनेवाले समय में शायद यह निश्चित हो जाये कि किम और ट्रंप अंतरराष्ट्रीय संबंधों को किस दिशा में ले जायेंगे, क्याेंकि दिलचस्प है कि दोनों नेता बेहद जटिल हैं और उन्हें समझना मुश्किल रहा है.