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सहजीविता का सामूहिक गान

नेतृत्व की महत्ता पर एक महत्वपूर्ण किताब सावित्री बड़ाईक ‘बाघ और सुगना मुंडा की बेटी’ कविता को समकालीन हिंदी कविता की बड़ी उपलब्धि के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है. बाघ और सुगना मुंडा की बेटी कविता में ’बिरसी’ कवि अनुज लुगुन की सृष्टि है. ‘बिरसी’ सुगना मुंडाकी बेटी और बिरसा मुंडा की बहन […]

नेतृत्व की महत्ता पर एक महत्वपूर्ण किताब
सावित्री बड़ाईक
‘बाघ और सुगना मुंडा की बेटी’ कविता को समकालीन हिंदी कविता की बड़ी उपलब्धि के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है. बाघ और सुगना मुंडा की बेटी कविता में ’बिरसी’ कवि अनुज लुगुन की सृष्टि है. ‘बिरसी’ सुगना मुंडाकी बेटी और बिरसा मुंडा की बहन के लिए प्रयुक्त काल्पनिक नाम है.
बिरसी को रीडा हड़म ‘मुंडाओं की पुरखा’ ‘हजारों वर्षों के श्रमशील विरासत की वारिस’ ‘हाशिए का रूपक’ ‘सभ्यताओं की समीक्षक’ और सुगना मुंडा की ‘कालभेदी जीवित बेटी’ स्वीकार करते हैं. कविता में नायिका (बिरसी)प्रमुख क्यों है? अनुज बिरसी को नेतृत्व शक्ति से संपन्न क्यों करते हैं? दरअसल, आदिवासी समुदायों में स्त्रियां कम से कम गैर बराबरी की शिकार है और आदिवासी समुदाय में स्त्रियों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. जल, जंगल जमीन बचाने के आंदोलनों में महिलाओं की सहभागिता एवं नेतृत्व क्षमता प्रबल रूप से उभरता रहा है.
कवि ने बिरसा मुंडा को एक खिले फूल के रूप में स्वीकार किया है ‘‘और एक दिन फूल खिला/सुगना मुंडा के घर में’’ कविता में कई संवाद है.
रीडा-बिरसी (सुगना मुंडा की बेटी) संवाद प्रमुख है. अनुज लुगुन उन लेखकों और कवियों की जमात में शामिल है, जो समय और समाज को बदलने को कृतसंकल्प है. वह मानते हैं कि मनुष्यों की दो दुनिया रही है- एक उपनिवेश बनाने पर यकीन करने वाली दुनिया और दूसरी सहजीवियों का संसार. वर्ण, वर्ग और लिंग उपनिवेशवादियों की उपज है.
इस लंबी कविता में सबसे प्रारंभ में है अथ कथा प्रवेश. अथ कथा प्रवेश में कविता के उद्देश्य और प्रायोजन को स्पष्ट किया गया है. ’सहजीविता की बात’ शीर्षक से अनुज ने कई विचार बिंदु हमारे सामने रखा है- आदिवासी का घर है जंगल और बाघ का ठिकाना भी है जंगल. आदिवासी और बाघ कभी एक दूसरे के लिए खतरनाक नहीं थे.
डोडे वैद्य कविता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है उनके पास अनुभव विचार, दृष्टि की संपन्नता है. कविता के अंत में डोडे वैद्य बिरसी को सबकुछ सौंप कर मुड़ जाते है. डोडे वैद्य स्वीकार करते हैं कि आदिवासियों के द्वीप के अंदर रहने से सहजीवी जीवन का विस्तार जितना होना चाहिए था उतना नहीं हुआ है. वे द्वीप के बाहर से संबंध जोड़ने को आवश्यक मानते हैं.
अनुज यहां स्वायत्त स्पेस की परिधि को बढ़ाने के समर्थक हैं. सच है स्वायत्त स्पेस की परिधि को बढ़ाने के लिए आदिवासियों के संघर्ष, जन आंदोलन से देश के समान विचारधारा वालों को जुड़ना होगा.
सात शिष्य जो कविता मेें शोधार्थी हैं उनमें चार स्त्रियां हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आदिवासी समाज में स्त्रियों को फूलो, झानो माकी, सिनगी दई आदि नेत्रियों को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया है.
कविता में बिरसी के नेतृत्व और संघर्षशीलता के द्वारा स्त्री नेतृत्व को सामने लाने का कार्य किया है. उसके नेतृत्व में ही समान विचार वालों की सहभागिता के द्वारा नये सहजीवी समाज के निर्माण की परिकल्पना है.
डोडे बिरसी से कहते हैं – हमारे गणतंत्र के आधार गीत हैं/गीत ही मंतर है/रोग निवारक प्रमुख औषधि हैं/गीतों का गणंतत्र का हस है/गीत रहित गणतंत्र प्रभुओं की व्यवस्था है/प्रभुताओं के खिलाफ/मैं तुम्हें मंतर दूंगा, गीत सौंपूंगा/वही होगा रोगों से मुक्ति का आधार.
अनुज लुगुन ने इस कविता को ऑपरेशन ग्रीन हंट के विरोध में समर्पित किया है. हर कवि अपने पूर्ववर्ती बड़े कवियों और चिंतकों की प्रतिभा को स्वीकारता है. अनुज लुगुन मराङ गोमके जयपाल सिंह मुंडा और सांस्कृतिक अगुवा रामदयाल मुंडा के विचार और चिंतन से प्रभावित प्रतीत होते हैं. कविता में संप्रेषणीयता है. कविता का संदेश जन-जन तक पहुंचेगा क्योंकि अनुज ने अपने समय का सच बयान किया है.
इस प्रतिबद्ध कवि ने अपना काव्य विवेक स्वयं अर्जित किया है. इस लंबी कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि इसकी मौलिकता है. यह समय के साथ सार्थक संवाद करती है. यह कविता ब्राह्मणवादी व्यवस्था, पूंजीवादी व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ है.
इस लंबी कविता को वाणी प्रकाशन ने हाल ही में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है. इसकी भूमिका वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने लिखी है. कविता के अंत में बिरसी का संबोधन है, जो अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ा है- “बिरसी उठी/ और उसके साथ ही उठा/ गिति: ओड़ा: का स्वर.’’ बिरसी नेतृत्वकारी भूमिका में है.
वह सहधर्मी, संघर्षशील, संगी की खोज का आहवान करती है साथ ही मदईत के आयोजन की बात करती है और आदमखोर बाघ के आहट की पहचान के लिए नृत्य का स्वभाव बदलने की भी चर्चा करती है. बिरसी अन्त में अपनी कुशल नेतृत्व (क्षमता) का परिचय देती है. बिरसी का संबोधन अत्यंत प्रभावशाली है – ‘‘जाओ, जाओ हुकनू/जाओ, जाओ जोना/ जितनी जाओ/बिधनी जाओ/सब जाओ लांघ कर/इतिहास की दीवारें/दर्शन की खाई/और सब पहाड़ों को… हो सहजीविता का सामूहिक गान.
बिरसी पुन: संबोधित करती है-‘‘सुनो रे हे टिरूंग/सुनो रे हे असकल/तलवार चमकाते हुए/मशाल लिए हुए/कहां जा रहे हो?/जदुर के लिए जा रहे हो/करम के लिए जा रहे हो/लड़ने के लिए जा रहे हो/भिड़ने के लिए जा रहे हो/कहां जा रहे हो?/सुनो रे हे टिरूंग/सुनो रे हे असकल/संगी सगोतियों को/न्योता देते जाओ.“
अनुज लुगुन ने कठिन शब्दों के लिए ‘सहिया शब्द’ कहा है, जो उचित भी है. वस्तुत: झारखंड के लोग सहिया जुड़ाकर पीढ़ी दर पीढ़ी सामाजिक रूप से आत्मीयता का संबंध जोड़ लेते हैं. कविता के कठिन शब्द दिकुओं के लिए कठिन हो सकते हैं.
अपनी संस्कृति से लगाव जुड़ाव रखने वाले कवि अनुज लुगुन के लिए ये शब्द सहिया की भांति ही आत्मीय है. इस कविता के द्वारा कवि ने अभिव्यक्ति के खतरे को निर्भीकता से उठाया है. मितभाषिता आदिवासियों का अानुवंशिक गुण है, परंतु कवि ने इस कविता में मुखर होकर जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के साथ सहजीविता की बात की है.
कविता में विश्वदृष्टिकोण प्रस्तुत हुआ है. आदिवासी ही दुनिया के सामने विकल्प प्रस्तुत करके इस धरती, सृष्टि को नवजीवन और दीर्घ जीवन प्रदान कर सकते हैं.
कविता में पूंजीवादी शक्तियों का विरोध है, मिथ है, किवदंतियां हैं, इतिहास है, दर्शन है, आदिवासी जीवन मूल्य है, आदिवासी संघर्ष, और प्रतिरोध है. कविता की पंक्तियां निहायत ही आत्मीय लगती हैं. मन मस्तिष्क में घर कर लेती हैं. कवि के तौर पर अनुज लुगुन निरंतर आत्म संघर्ष करते हैं, गहन चिंतन करते हैं, तब इस लम्बी कविता में स्थानीय बिंबों, प्रतीकों और रूपकों के द्वारा अपनी कविता को वैश्विक फलक प्रदान करते हैं.
अनुज को पढ़ते हुए कभी सिएटल (रेड इंडियन) समुदाय के सरदार, कभी जयपाल सिंह मुंडा, कभी पद्मश्री रामदयाल मुंडा, कभी धूमिल, कभी मुक्तिबोध याद आते हैं. यह लंबी कविता आदिवासी समुदाय का सहज, सच्चा चित्रण तो प्रस्तुत करती ही है.
कविता में आदिवासी स्त्री का स्थान आदिवासी जीवन संस्कृति, जीवन मूल्य, संघर्ष प्रतिरोध उपस्थित है. साथ ही संघर्ष के लिए सहधर्मियों की तलाश की सलाह है. मुझे लगता है ‘बाघ और सुगना मुंडा की बेटी’ कालजयी रचना साबित होगी. इस लंबी कविता में कालजयी रचना होने का गुण है क्योंकि वर्तमान समय की जटिलताओं, कुटिलताओं के बीच यह गहन विचार मंथन के उपरांत सामने आयी है.

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