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आज सुप्रीम कोर्ट से नियोजित शिक्षकों को मिल सकती है बड़ी राहत, बिहार सरकार रखेगी नया प्रस्ताव, पढ़ें

पटना : बिहार के साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों के अरमानों पर सुप्रीम कोर्ट का आज फैसला आयेगा. जानकारों की मानें, तो सुप्रीम कोर्ट से नियोजित शिक्षकों को बड़ी राहत मिल सकती है. वहीं दूसरी ओर इस मामले में बिहार सरकार अपना नया प्रस्ताव भी सुप्रीम कोर्ट के सामने रख सकती है. सुप्रीम कोर्ट के […]

पटना : बिहार के साढ़े तीन लाख नियोजित शिक्षकों के अरमानों पर सुप्रीम कोर्ट का आज फैसला आयेगा. जानकारों की मानें, तो सुप्रीम कोर्ट से नियोजित शिक्षकों को बड़ी राहत मिल सकती है. वहीं दूसरी ओर इस मामले में बिहार सरकार अपना नया प्रस्ताव भी सुप्रीम कोर्ट के सामने रख सकती है. सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले को लेकर शिक्षकों में खासा उत्साह है और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर आशा जताते हुए विश्वास व्यक्त किया है कि फैसला उनके हक में ही आयेगा. बताया जा रहा है कि बिहार सरकार ने शिक्षकों के वेतन में तीस फीसदी वृद्धि करने के एक नये प्रस्ताव के साथ कोर्ट के सामने उपस्थित होगी, वहीं दूसरी ओर कानूनी मामलों के जानकार बताते हैं कि बिहार सरकार के इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट स्वीकार करे, यह जरूरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए यह कहा था कि शिक्षकों का वेतन चपरासी से भी कम क्यों है.

वहीं दूसरी ओर शिक्षकों ने बताया कि शुरू में ही बिहार सरकार को हाइकोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिये था. किन्तु सरकार सैलरी में बीस से पच्चीस प्रतिशत की बढोतरी के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट मे रखकर एक बार पुन: शिक्षकॊ के जायज मांगो और अधिकारों का हनन करने पर तुलीहुई है. बक्सर जिले के शिक्षक कमलेश पाठक, संजय सिंह, उपेंद्र पाठक, पूर्णानंद मिश्रा और धीरज पांडेय ने बातचीत में कहा कि उन्हे सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. उन्होंने बताया कि आज का दिन हम शिक्षको के लिये ऐतिहासिक होगा जो हमें नियोजन रूपी कलंक से मुक्ति प्रदान करेगा. 15 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पूछा था कि शिक्षकों को चपरासी से कम सैलरी क्यों दी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट के फटकार के बाद बिहार सरकार ने नया प्रस्ताव तैयार किया है. जिसके तहत सरकार कोर्ट को बतायेगी कि रेगुलर शिक्षकों के बराबर नियोजित शिक्षकों को वेतन देने में सरकार सक्षम नहीं है. नये प्रस्ताव में इस बात का भी जिक्र है कि सरकार नियोजित शिक्षकों की सैलरी को 25 से 30 प्रतिशत बढ़ाने के लिए तैयार है.

बिहार सरकार नेपिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के बदले समान वेतन व अन्य लाभ देने पर 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आयेगा. साथ ही इतनी बड़ी रकम का प्रबंध करने में असमर्थता जतायी थी. सरकार ने बताया कि नियोजित शिक्षकों को मानदेय में 20 फीसदी की बढ़ोतरी किये जाने से ही करीब 2088 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ सरकार पर आयेगा. सुप्रीम कोर्ट ने नियोजित शिक्षकों के समान कार्य के बदले समान वेतन मामले पर 29 जनवरी को पहली सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने अपनी रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि नियोजित शिक्षकों के वेतन में पे-मेट्रिक्स लागू कर मानदेय में 20 फीसदी की वृद्धि की जायेगी. लेकिन, इसके लिए शिक्षकों को एक परीक्षा पास करनी होगी. यह परीक्षा वर्ष में दो बार आयोजित की जायेगी. साथ ही बिहार सरकार ने शर्त रखी कि यदि शिक्षक परीक्षा को पास नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें लाभ से वंचित कर दिया जायेगा.

जनवरी में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को चीफ सेक्रेटरी के अंदर एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि जब अापने नियोजित शिक्षकों को पढ़ाने के लिए रखा तब उनकी क्वालिफिकेशन पर क्यों आपत्ति नहीं जताई? लेकिन जब समान काम का समान वेतन देने की बात आयी, तो आपने उनकी क्वालिफिकेशन पर प्रश्न चिह्न लगाया, जबकि उन्हीं शिक्षकों से पढ़कर कितने छात्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर शिक्षकों के क्वालिफिकेशन के मामले में जांच कर पूरी रिपोर्ट सौंपनी होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने तकरीबन डेढ़ वर्ष पहले पंजाब और हरियाणा से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए पहली बार समान काम के बदले समान सुविधा देने के निर्देश संबंधित राज्य सरकार को दिये थे. जिसके बाद बिहार के तकरीबन दर्जन भर नियोजित शिक्षक संगठनों ने भी सरकार के समक्ष समान काम के बदले समान सुविधा का मसला उठाया है. सरकार के स्तर पर मामले का समाधान न होने पर शिक्षक संगठनों ने पटना हाइकोर्ट में अपील दायर की. इस मामले में सुनवाई करते हुए पिछले वर्ष 31 अक्तूबर 2017 को पटना हाइकोर्ट ने नियोजित शिक्षकों के हक में फैसला देते हुए सरकार को निर्देश दिये थे कि वह नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान सुविधा प्रदान करे.

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