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पत्थर की मूरत से कैसी शिकायत
जिस देश की 45% युवा आबादी दुनिया बदल देने की ताकत रखती है, उस पर गर्व होना लाजिमी है. कुछ ही दिन बीते जब लेनिन की मूर्ति को बुलडोज़र से गिरा दिया गया. दक्षिण में पेरियार की मूर्ति पर हथौड़े चले. आंबेडकर की मूर्तियों का अंग-भंग किया गया. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख […]
जिस देश की 45% युवा आबादी दुनिया बदल देने की ताकत रखती है, उस पर गर्व होना लाजिमी है. कुछ ही दिन बीते जब लेनिन की मूर्ति को बुलडोज़र से गिरा दिया गया. दक्षिण में पेरियार की मूर्ति पर हथौड़े चले. आंबेडकर की मूर्तियों का अंग-भंग किया गया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति पर कालिख पोत दी गयी. दुनिया बदलने की चाहत में मूर्तियों पर हमला विचारधारा तो नहीं बदल सकती. मगर यह सिलसिला अपने पीछे कुछ सवाल तो छोड़ ही गया है. ये मूर्तियां, मीनारें और ये ऊंचे गुंबद इतिहास की संजोयी हुई थाती हैं, बेशक इनको ढाहने के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं.
मगर किसी पत्थर की मूरत से कैसी शिकायत? जब कि दुनिया भर में सैलानी घूम-घूम कर पत्थरों की मूर्तियों में इतिहास ही तो ढूंढ़ते फिरते हैं. हम अपनी विरासतों को जमींदोज कर आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं?
एमके मिश्रा, रांची
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