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भूकंप के लिहाज से झारखंड बेहद सुरक्षित, बिहार में बड़े भूकंप आने की संभावना

!!अशोक कुमार!! पांच स्थानों पर लगाये गये हैं जीपीएस मॉनीटरिंग सिस्टम धनबाद : यह सभी जानते हैं कि पिछले आठ करोड़ वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप की टेक्टोनिक प्लेट धीरे-धीरे खिसकते हुए यूरोएशिया की ओर बढ़ रही है. इन दोनों महाद्वीपों की प्लेटों की टक्कर से ही हिमालय पहाड़ की उत्पत्ति हुई है, लेकिन भू-वैज्ञानिक इस […]

!!अशोक कुमार!!

पांच स्थानों पर लगाये गये हैं जीपीएस मॉनीटरिंग सिस्टम
धनबाद : यह सभी जानते हैं कि पिछले आठ करोड़ वर्षों से भारतीय उपमहाद्वीप की टेक्टोनिक प्लेट धीरे-धीरे खिसकते हुए यूरोएशिया की ओर बढ़ रही है. इन दोनों महाद्वीपों की प्लेटों की टक्कर से ही हिमालय पहाड़ की उत्पत्ति हुई है, लेकिन भू-वैज्ञानिक इस सवाल से हमेशा जूझते रहे हैं कि प्लेटों के खिसकने की रफ्तार क्या है? क्योंकि पूरा भारतीय उपमहाद्वीप एक टेक्टोनिक प्लेट पर नहीं है. यह कई छोटे-छोटे प्लेटों से बना है. हर प्लेट की रफ्तार भी अलग-अलग है, लेकिन अब इनके खिसकने की रफ्तार का सटीक अध्ययन संभव हो गया है. इसके अध्ययन के लिए बिहार और झारखंड के प्लेटों की स्थिति पर नजर रखने की जिम्मेवारी आइआइटी आइएसएम को दी गयी है. संस्थान का अप्लाइड जियोफिजिक्स विभाग अप्रैल और मई 2015 में नेपाल में आये भूकंप के बाद से ही इस क्षेत्र के टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल का जीपीएस की मदद से मॉनीटरिंग कर रहा है. इस पूरे प्रोजेक्ट के को-ऑर्डिनेटर हैं अप्लाइड जियोफिजिक्स विभाग के प्रोफेसर पीएन सिंघा राव.
कुमायूं में कर चुके हैं अध्ययन : प्रो पीएन सिंघा राव बताते हैं कि उनकी टीम पूर्व में भी इस तरह का अध्ययन कर चुकी है. वर्ष 2007 में उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट का विस्तृत अध्ययन किया था. इसी अध्ययन के परिणाम स्वरूप उन्हें यह प्रोजेक्ट मिला है. इसके बाद इन पांचों पर स्थायी जीपीएस मॉनीटरिंग स्टेशन बनाया गया है.
बेहद सक्रिय है क्षेत्र : भूकंप के लिहाज से यह क्षेत्र बेहद सक्रिय है. इस क्षेत्र में कई बेहद शक्तिशाली भूकंप आ चुके हैं. वर्ष 2015 से पहले साल 1934 में बेहद शक्तिशाली भूकंप आया था. दोनों भूकंप के बाद भारतीय उपामहाद्वीप की प्लेट का थोड़ा सा हिस्सा यूरोएशिया की ओर आगे बढ़ गया था. 2015 के भूकंप के बाद पटना सात मिलीमीटर आगे की ओर खिसक गया वहीं बिहार और झारखंड के शेष हिस्से तीन मिली मीटर आगे हिमालय की ओर खिसके थे. प्रो राव बताते है कि भूकंप के लिहाज से झारखंड बेहद सुरक्षित है. हालांकि बिहार में बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
वर्ष 2015 में नेपाल में आये भूकंप के बाद शुरू हुई थी निगरानी
आइआइटी परिसर में भी है स्टेशन
बिहार और झारखंड क्षेत्र के टेक्टोनिक प्लेटों में होने वाली हलचल की निगरानी के लिए बिहार और नेपाल की सीमा से सटे अररिया जिले के साथ बिहार के दो अन्य जिलों पटना और भागलपुर में जीपीएस मॉनीटरिंग स्टेशन बनाये गये हैं. इसके साथ झारखंड में रांची और धनबाद में ऐसे ही स्टेशन बनाये गये हैं. धनबाद में यह स्टेशन आइआइटी आइएसएम परिसर में बनाया गया है.
यह लाभ मिलेगा : इस अध्ययन से भू-गर्भ में मौजूद चट्टानों पर दबाव का आकलन किया जायेगा. इसके आधार पर प्रशासन को अगाह किया जा सकेगा. हालांकि अभी भी भूकंप की सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं है, लेकिन इसके आंकड़ों की मदद से भूकंप रोधी मकान व इमारत बनाये जा सकेंगे. इससे जान-माल का कम से कम नुकसान होगा.
सुरक्षित टाउन प्लानिंग की जरूरत
प्रो राव बताते हैं कि झारखंड में तीव्र भूकंप की संभावना नहीं है, लेकिन इसके बाद ही यहां सुरक्षित टाउन प्लानिंग की जरूरत है. क्योंकि भूकंप आने से सबसे अधिक नुकसान इमारतों को होता है. इसी की वजह से जानमाल का नुकसान होता है. इसके लिए उनका विभाग समय-समय पर टाउन प्लानिंग से जुड़ी सरकारी एजेसियों के लिए विशेष ट्रेनिंग कैंप लगाता है. इस कैंप में बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश की सरकारी एजेंसियों के सिविल इंजीनियर हिस्सा ले चुके हैं, लेकिन न्योता देने के बाद झारखंड की एजेंसी ऐसी ट्रेनिंग कैंप का हिस्सा नहीं बनी है.

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