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कवि केदारनाथ जी को श्रद्धांजलि

वर्षों पहले कवि केदारनाथ जी से भारतीय भाषा परिषद में मिलने का अवसर मिला. मौका था उनकी स्वयं की कविताओं के पाठ का. उनकी ‘मांझी के पुल’ कवि ता बेहदमन भावन लगी. बैलों के सींगों के बीच से जब हल जोतता एक किसान मांझी के पुल को देखता है और उसके मन में जो भाव […]

वर्षों पहले कवि केदारनाथ जी से भारतीय भाषा परिषद में मिलने का अवसर मिला. मौका था उनकी स्वयं की कविताओं के पाठ का. उनकी ‘मांझी के पुल’ कवि ता बेहदमन भावन लगी. बैलों के सींगों के बीच से जब हल जोतता एक किसान मांझी के पुल को देखता है और उसके मन में जो भाव तब उपजते हैं, उसका वर्णन कोई कवि ही कर सकता है.

उस भाव को कोई देहाती ही समझ सकता है. मैं जानता था कि वह बलिया के रहने वाले हैं, इसलिए अपनी मातृ जुबान भोजपुरी में ही उनसे बतियाना मुनासिब समझा. उन्होंने मेरे गांव के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि मैं सारण का हूं. छपरा-सारण सुनते ही उन्होंने पुन: पूछा कौन-सा गांव? जी, मशरक से पहि ले पुरसौली. अरे, मशरक के लगहीं त चैनपुर बाटे. चैनपुर हमार ममहर ह हो! तब से केदारनाथ सिंह जी से जब भी मुलाकात हुई हम अपनी बोली में ही बोलते बतियाते थे. हर साल सर्दियों में वे अपनी बहन के घर (हावड़ा) आते थे. लेकिन अब उनसे मुलाकात नहीं होगी. उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि.

सुरेश शॉ, कोलकाता

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