शशांक, पूर्व विदेश सचिव
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हाल में दिये गये अपने भाषण में चीनी राष्ट्रपति ने ताइवान और ति ब्बत के मद्देनजर एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की है. चीन के अंदर सक्रिय अलगाववादियों को चेतावनी देते हुए उन्होंने संप्रभुता के लि ए किसी भी संघर्ष तक जाने की बात कही है. दरअसल, हाल के दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति ने ताइवान के साथ ऊंचे स्तर पर संबंधों को मजबूत कर ने की कोशिश की है. ताइवान के नागरिकों के बीच अमेरिका संपर्क बढ़ाने की कोशिश में है. दोनों के बीच मीटिंग और हथियारों के बेचने के प्रबंध जैसी बातें सामने आयी हैं. दलाई लामा को लेकर चीन की अलग चिंता रहती है.
ऐसे में उसे डर है कहीं अमेरिका बीच में न आ जाये. चीन आशंकित रहता है कि तिब्बतियों के लिए कहीं और से कोई मददगार न आ जाये. तीसरा मसला शिनजियांग का है, जहां से कई आतंकीगुट पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय रहते हैं. हालांकि, चीन पाकिस्ता न के कसीदे पढ़ता है. लेकिन, उसको मालूम है कि पाकिस्ता न अपने यहां सक्रिय आतंकी गुट को नियंत्रित कर पाने में सक्षम नहीं है. चीन को यह भी पता है कि उसके विरोधी आतंकी गुटों को पाकिस्तान रोक भी नहीं पायेगा. शी जिनपिंग ने एक तरीके से चेतावनी देने की कोशिश की है. उनकी इच्छा है कि चीन अगले 15-20 वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बन जाये.
वे आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि सैन्य ताकत, अंतरिक्ष और साइबर के क्षेत्र में भी चीनी दबदबे को बढ़ाना चाहते हैं. ऐसे में वे एक संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि चीन को कोई छेड़ने की कोई कोशिश न करे. हालांकि, डोकलाम वि वादों पर उन्होंने स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा. द्विपक्षीय संबंधों को लेकर भारत का रुख हमेशा सकारात्मक रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद सबसे पहले शी जिनपिंग को नये कार्यकाल की बधाई दी. 21वीं सदी एशि या की सदी होने की बात कही जाती है, जिसमें भारत और चीन दोनों की अहम भूमिका होगी. हमें ध्यान रखना होगा कि चीन हमारा सबसे अहम द्विपक्षीय व्यापारिक साझेदार है. पिछले कई वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार एक ही स्तर पर टिका हुआ था.
लेकिन, हाल के दिनों में व्यापारिक गतिविधियों में तेजी आयी है. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भविष्य में दोनों देश इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे. हमें आर्थिक प्रगति के साथ एक मजबूत देश के रूप में खुद को आगे ले जाना है, ऐसे में हमारी कोशिश होनी चाहिए कि चीन को कहीं यह न लगे कि कोई तीसरा देश हमें प्रभावित कर रहा है. इससे चीन बौखला जाता है. पुराने जमाने में कहा जाता है कि ताइवान को सीआईए ने मदद की थी. उसको डर है कि हमारा कोई पड़ोसी देश अगलाववादी संगठनों को छद्म रूप से मदद देने की कोशिश तो नहीं कर रहा है. हमें ध्यान रखना है कि एशि या के सभी देशों के साथ अपने संबंध ठीक रखने हैं. लेकिन, यह भी देखना है कि एशि याई देशों पर चीन कहीं अपना वर्च स्व न बना ले.
हाल के वर्षों में चीनी आक्रामकता को देखते हुए हमें सतर्क रहना चाहिए. हमें आर्थिक प्रगति के साथ रक्षा तैयारियों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए. खासकर हिंद महासागर में जितने भी द्वीप समूह हैं या अफ्रीका के छोर पर बसे देश हैं, उनके साथ अपने संबंधों को बेहतर बना कर रखना चाहिए. हिंद महासागर को शांति क्षेत्र बनाये रखने के लिए हमें कोशिशें जारी रखनी चाहिए. इस क्षेत्र में चीन में हमें मुख्य विरोधी के तौर पर नहीं देखता. उसको डर है कि भारत जैसे उसके पड़ोसी देशों के साथ मिलकर अमेरिका उसे रोकने का प्रयास न करे. अगर हम अपनी ताकत बढ़ाते हैं, तो उससे चीन को कोई समस्या नहीं आयेगी.
हमें आर्थिक क्षेत्र की प्रगति के साथ- साथ अन्य क्षेत्रों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए. रक्षा क्षेत्र में हमें आधुनिकीकरण पर फोकस कर ने की जरूरत है. हमें हर क्षेत्र में तकनीकी तौर पर सक्षम होने का प्रयास कर ना होगा. चाहे आधुनिक लड़ाकू विमानों की बात हो या फिर साइबर क्षेत्र हो. हालांकि, हथियारों की खरीद की होड़ से बचना चाहिए. यह संदेश कतई नहीं जाना चाहिए कि भारत आधुनिकीकरण की दौड़ में कहीं पीछे रह गया है.
आंतरिक रूप से ढाई मोर्चों पर अपनी तैयारी को पुख्ता रखना चाहिए. हमने देखा है कि दाएश द्वारा हमारे 39 भारतीयों की हत्या कर दी गयी. हमें कोशिश कर नी चाहिए कि भारत के अंदर ऐसे संगठन अपनी पकड़ न बना पायें. दाएश एशिया के देशों में अपने जड़ें तलाशने में जुटा है. साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा पाकिस्तानी और चीनी गठजोड़ भविष्य में हमारे लिए किसी तरह का खतरा न पैदा कर दे. शी जिनपिंग के नये कार्यकाल को देखते हुए मानना चाहिए कि दोनों देश परस्पर संबंधों को बेहतर बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे. विकास की दौड़ में चीन भारत से काफी आगे निकल चुका है. उसकी अर्थ व्यवस्था भारत से पांच गुना बड़ी हो चुकी है. लेकिन, भारत भी एक उभरती हुई शक्ति है. अब यूरोपीय देशों और अमेरिकी की प्रगति की रफ्तार मंद पड़ चुकी है.
कई यूरोपीय देशों के पास हथियारों के बेचने के सि वाय ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. इन देशों का पहले से ही समुद्री क्षेत्रों पर दबदबे बने हुए हैं. कई स्थानों पर नाटो के पावर बेस हैं, कई प्रमुख क्षेत्रों में इन देशों के जहाजी बेड़े खड़े रहते हैं. भारत के साथ यह बात नहीं है, यहां संभावनाएं बहुत बड़ी हैं. उम्मीद है कि भारत चीन से ज्यादा तेजी गति से प्रगति करेगा. अगले 15 वर्षों में हमारे तकनीकी कौशल से संपन्न युवाओं की संख्या चीन से अधिक हो जायेगी. हमें किसी हानि की आशंका में डर कर रहने की जरूरत नहीं है. चीन की अलग समस्याएं हैं, उनको खुद को व्यवस्थित रखने के लिए स्था यी सरकार बना कर रखना है. रूस के अंदर जिस प्रकार विघटन हो गया था, वैसा कुछ वहां न होने पाये, इसके लिए चीन दबदबा बना कर रखना चाहता है. चीन की भावनाएं भारत के बहुत ज्यादा खिलाफ नहीं हैं. वे सीधे तौर पर हमारा विरोध नहीं कर ते हैं, लेकिन आशंका के मद्देनजर अप्रत्यक्ष के तौर पर भावनाएं जाहिर करते रहते हैं. पश्चिमी देशों के मीडि या और थिंक टैंकों में जो बातें उठती हैं,
उनके संदर्भों को लेकर हमें चिंति त होने की जरूरत नहीं है. चीन में यदि सत्ता का स्थायित्व बरकरार रहता है, तो वह भारत के हि त में रहेगा. आनेवाले दिनों में भारत और चीन की भूमिका को शी जिनपिंग भलीभांति समझते हैं.
(बातचीत : ब्रह्मानंद मिश्र)