रांची : वित्त विभाग द्वारा शुरू की गयी जांच को रोकने के लिए ध्रुव भगत ने दो पत्र लिखा था. उस समय वह लोक लेखा समिति के अध्यक्ष थे. घोटालेबाजों ने उन्हें एक एंबेसेडर कार दी थी. साथ ही उनकी हवाई यात्राओं और होटल में ठहरने का खर्च उठाया था. चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 38ए /96 की जांच के दौरान सीबीआइ के इससे संबंधित सबूत मिले. सीबीआइ ने जांच के बाद दायर आरोप पत्र में भी इसका उल्लेख किया है.
सीबीआइ ने चारा घोटाले की जांच के दौरान पाया कि अगस्त 1995 में वीएस दूबे वित्त सचिव बने. इसके बाद उन्होंने जांच के लिए पशुपालन विभाग द्वारा अक्तूबर 1995 से दिसंबर 1995 तक की अवधि में की गयी निकासी का ब्योरा मंगाया था. इस बात की जानकारी मिलने के बाद लोक लेखा समिति के अध्यक्ष ध्रुव भगत ने 20 जनवरी 1996 को वित्त सचिव को एक पत्र लिखा. वित्त सचिव को संबोधित पत्र में भगत ने लिखा कि समिति को इस बात की सूचना मिली है कि वित्त विभाग पशुपालन विभाग द्वारा की गयी निकासी की जांच कर रहा है. लोक लेखा समिति भी इस मामले की जांच कर रही है. इसलिए वित्त विभाग निकासी से संबंधित मंगाये गये सभी मूल दस्तावेज लोक लेखा समिति के हवाले कर दे. जब लोक लेखा समिति किसी मामले की जांच कर रही हो तो ऐसी स्थिति में उसी मामले की जांच किसी दूसरी एजेंसी या संस्था द्वारा करना समिति के अवमानना का मामला बनता है.
इसे सप्लायर राकेश मेहरा के कर्मचारी नरेश जैन के नाम पर खरीदा गया था. इस कार का इस्तेमाल घ्रुव भगत किया करते थे. बाद में इस कार को प्रमोद कुमार भगत के नाम पर हस्तांतरित कर दिया था. प्रमोद, ध्रुव भगत के ही गांव का रहनेवाला और उनका करीबी था. नरेश जैन के नाम पर खरीदी गयी कार को अपने नाम करने के बदले प्रमोद भगत ने किसी तरह का भुगतान नहीं किया था. प्रमोद ने अपने आयकर रिटर्न में कार का उल्लेख नहीं किया है. कार सर्विसिंग कराने से संबंधित कागजात में ध्रुव भगत का फोन नंबर लिखा था.