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एडवेंचर के नाम पर कुसंस्कार चल रहा है

कहा : जिसने भी यह काम किया है वह साजिश के तहत किया है कोलकाता : राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि देश में एडवेंचरिज्म के नाम पर मनिषियों और महापुरुषों की प्रतिमा को तोड़ने या फिर उसको अपमानित करने का प्रयास चल रहा है. इस तरह की घटना की जितनी निंदा […]

कहा : जिसने भी यह काम किया है वह साजिश के तहत किया है
कोलकाता : राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि देश में एडवेंचरिज्म के नाम पर मनिषियों और महापुरुषों की प्रतिमा को तोड़ने या फिर उसको अपमानित करने का प्रयास चल रहा है. इस तरह की घटना की जितनी निंदा की जाये कम है.
उन्होंने प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के फलक पर कालिख पोतने की घटना की निंदा करते हुए कहा कि जिसने भी यह काम किया है वह साजिश के तहत किया है. यह एडवेंचर के नाम पर ओछी हरकत है, जिसने भी यह किया है वह इस बात को जरूर जानता है कि यह हमारे देश की संस्कृति के खिलाफ है. जिस विश्वविद्यालय का इतिहास व संस्कृति एक मिसाल है, जिसको लेकर पूरे विश्व में इसको सम्मान के साथ देखा जाता है. वहां पर इस तरह की घटना किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है.
उन्होंने कहा : मैंने विश्वविद्यालय प्रबंधन को साफ कहा है कि वह लोग इस घटना में शामिल अपराधियों की पहचान करके उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें. उन्होंने कहा कि इस तरह का कार्य करके राज्य के विकास की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने का प्रयास हो रहा है.
प्रेसिडेंसी के दो सौ साल के इतिहास में मेधावी छात्रों के नामों का फलक लगाया गया था. विश्वविद्यालय के दूसरे तल्ले पर जाने की सीढ़ी के दाहिने तरफ श्यामा प्रदास मुखर्जी के नाम का फलक था. श्यामा प्रसाद मुखर्जी महज 33 साल की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनकर एक मिसाल कायम किये थे. उसी पर किसी ने कालिख पोत दी थी. विश्वविद्यालय प्रबंधन ने इस मामले को काफी गंभीरता से लिया है. बदमाश की तलाश जहां विश्वविद्यालय प्रबंधन कर रहा है वहीं दूसरी ओर पुलिस की भी मदद ली जा रही है.
हताशा का प्रमाण है प्रेसिडेंसी की घटना : दिलीप
कोलकाता. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के फलक पर कालिख लगाने की घटना को नक्सलपंथी छात्रों की हताशा का प्रतिक बताया. उन्होंने कहा कि कोलकाता में क्रांति का केंद्र बने दो विश्वविद्यालय यादवपुर और प्रेसिडेंसी में क्रांति के मसीहा अब हताशा के दौर से गुजर रहें हैं.
उनको पता चल गया है कि उनकी क्रांति अब कागजों में सिमट कर रही गयी है. लोग उन्हें खारिज कर रहे हैं. इससे हताश होकर वे इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. भारत केशरी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों को लोग जिस तरह से स्वीकार्य रहे हैं उससे अति वामपंथी और वामपंथी विचारधारा का जनाधार खिसक रहा है. ऐसे में खबरों में बने रहने के लिए वे इस तरह की हरकत कर रहे हैं.

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