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खेतिहरों का ख्याल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम देने के संकल्प को दोहराया है. बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की थी कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को निर्धारित करने की योजना पर काम कर रही है. हालांकि इसे तय करने के फॉर्मूले पर बहस हो रही है, […]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम देने के संकल्प को दोहराया है. बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की थी कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को निर्धारित करने की योजना पर काम कर रही है. हालांकि इसे तय करने के फॉर्मूले पर बहस हो रही है, पर खेतिहरों को उपज का उचित दाम दिलाने की बड़ी जरूरत है.
एक तरफ खेती का खर्च बढ़ता जा रहा है, तो दूसरी तरफ अच्छी फसल होने के कारण मंडियों में भाव गिर रहे हैं. किसानों के बकाये के समय पर भुगतान न होने की शिकायतें भी आम हैं. सरकार ने डिजिटल तकनीक के प्रसार के अपने प्रयास के तहत खेती, उपज, भंडारण और बिक्री से जुड़ी सूचनाओं के आदान-प्रदान पर ध्यान दिया है.
ऐसी सुविधाएं निश्चित रूप से लाभप्रद होंगी. बजट में भी कृषि को प्राथमिकता दी गयी है. फिलहाल जरूरत इस बात की है कि बजट के प्रावधानों और आवंटन को सहूलियत के साथ किसानों तक पहुंचाया जाये. कुल घरेलू उत्पादन में खेती के योगदान और आबादी के बड़े हिस्से की निर्भरता के लिहाज से अर्थव्यवस्था को गति देने में किसानों की आमदनी एक बड़ा कारक है. किसान महत्वपूर्ण उत्पादक होने के साथ बड़ा उपभोक्ता वर्ग भी है. अगर उसकी आमदनी बढ़ती है, तो इसका सकारात्मक असर मांग पर होगा तथा औद्योगिक उत्पादन एवं सेवाओं का दायरा बढ़ेगा.
कई वर्षों के कृषि संकट के कारण रोजगार की तलाश में ग्रामीण आबादी के एक हिस्से को शहरों का रुख करना पड़ता है. इस कारण शहरों पर दबाव बढ़ रहा है. बैंकों से कर्ज मिलने में कठिनाई तथा बीमा का सीमित विस्तार किसानों को उच्च दर पर कर्ज लेने के लिए मजबूर करता है. कर्ज के दुष्चक्र की भयावह परिणति आत्महत्याओं के सिलसिले के रूप में हमारे सामने है.
इस स्थिति में तत्काल राहत के उपायों की आवश्यकता तो है ही, केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस कृषि नीति बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए. इस संदर्भ में खेती के आधुनिक तौर-तरीकों को अपनाना भी प्रमुख तत्व है. प्रधानमंत्री मोदी की यह सलाह उचित है कि किसानों को यूरिया का कम इस्तेमाल करना चाहिए और जैविक खेती को अपनाना चाहिए. जैसा कि उन्होंने कहा है, इन कार्यों को सरकार नहीं कर सकती है.
इनके लिए किसानों को प्रयास करना होगा. सरकार की भूमिका यह होगी कि वह जानकारियां और संसाधनों का इंतजाम करे. चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित होती आर्थिकी है और वैश्विक कारोबार में उसका दखल बढ़ रहा है, तो हम खेती और किसान को उसके हाल पर नहीं छोड़ सकते हैं.
कृषि संकट से उबरने के साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का भी मुकाबला करना है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार खेती को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को धार और गति देगी तथा इस बाबत दीर्घकालिक सोच और रणनीति के साथ कार्यरत होगी.
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