गया : हम कौन थे,क्या हो गये हैं,और क्या होंगे अभी, आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी..मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध रचना की इन दो पंक्तियों का उल्लेख जब प्रभात खबर की ओर से आयोजित ‘कैसे हासिल होगा बिहार का गौरव’ विषय पर परिचर्चा के दौरान गौतम बुद्ध महिला काॅलेज की प्रोफेसर कुमारी रश्मि प्रियदर्शिनी ने किया, तो सब ने इसका समर्थन किया.
सब ने कहा कि ये पंक्तियां मौजूदा वक्त में बिल्कुल सार्थक हैं. वाकई में यह मंथन का वक्त है. बिहार दिवस के मौके पर उत्सव मनाने के साथ यह सोचने की भी जरूरत है कि बिहार क्या था, क्या हो गया और आगे क्या होगा. जो चीजें थी उन्हें कैसे संरक्षित करना होगा. जो चीजें बिगड़ चुकी हैं, उन्हें कैसे सुधारा जाये. इन सभी विषयों पर बात करने की जरूरत है.
यहां की संस्कृति और विरासत पर बड़े मंच पर बात होनी चाहिए. अभी से ही यह तय हो जाना चाहिए कि राज्य का भविष्य कैसा होगा.वक्ताओं ने कहा कि जो भूल पहले होती रही है उस पर बहस करने से कोई फायदा नहीं होगा. मंथन इस पर करना होगा कि कैसे भविष्य बेहतर हो. इसके अलावे परिचर्चा के दौरान जो बातें निकलकर सामने आयी उसमें यह भी कहा गया कि हम हर बात के लिए सरकार, शासन व प्रशासन को दोष देते हैं. हम अधिकार की बात तो करते हैं. लेकिन, कर्तव्य को भूल जाते हैं.
बिहार को अपना गौरव हासिल करने के लिए हर नागरिक को अपना योगदान देना होगा. लोगों को यह एहसास होना चाहिए कि उनका कर्तव्य क्या है. जब प्रदेश का हर नागरिक अपने कर्तव्यों का निबर्हन करने के बाद अधिकार की बात करेगा, तभी हमारा प्रदेश एक आदर्श प्रदेश में गिना जायेगा. परिचर्चा के दौरान कुछ लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये कि बिहार में जनसंख्या व उसके अनुपात में जमीन की कमी आज हमें आगे बढ़ने से रोक रही है. विकास के राह पर आगे बढ़ने के लिए हमे जनसंख्या नियंत्रण करना जरूरी होगा.
संस्कृति और विरासत के संरक्षण के लिए सब आएं आगे
जो व्यवस्था बिगड़ चुकी है, उसमें सुधार पर हो मंथन
बेहतर माहौल और व्यवस्था से हासिल कर सकते हैं लक्ष्य
कभी नालंदा विवि में पढ़ने आते थे विदेशों के विद्यार्थी
वक्ताओं ने कहा कि बिहार की छवि सबसे अधिक शिक्षा के क्षेत्र में धूमिल होती रही है.अच्छे शिक्षण संस्थानों का नहीं होना बहुत नुकसान पहुंचा रहा है. इस स्थिति को बदलना होगा. हमें इस बात का आभास होना चाहिए कि इसी धरती पर बने नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने भारत ही नहीं, चीन व जापान से भी लोग आते थे. आज स्थिति यह है कि यहां के छात्रों को शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जाना पड़ रहा है. सरकार को इस दिशा में काम करना होगा. शिक्षा को राजनीति से बाहर निकालना होगा. स्कूलों से लेकर काॅलेजों तक शिक्षण व्यवस्था में सुधार लाना होगा.
परिचर्चा में ये लोग हुए शामिल
शंभु सुमन, मुन्ना सरकार जैन, अरविंद कुमार, डाॅ अभिषेक मृणाल, राजेश बली, गोपाल पटवा, निर्मला कुमारी, कुमारी रश्मि प्रियदर्शिनी, कौशलेंद्र नारायण, सुंमत, राजेश कुमार गुप्ता, धर्मेंद्र कुमार, डाॅ पप्पू तरुण, परमाणु कुमार, लालजी प्रसाद, रेणुका पालित, राजीव रंजन, बृजनंदन पाठक, डाॅ कर्मानंद आर्य, हैदर हुसैन व मोहम्मद शाहिद इकबाल.
इतिहास को जानने का हो प्रयास
हैदर हुसैन ने कहा कि बिहार के युग पुरुषों की जयंती व पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमाओं पर फूल चढ़ाने से काम नहीं चलेगा.उन महान विभूतियों ने राज्य के लिए जो किया उसे जानने का प्रयास करें.लोग राज्य के गौरवशाली अतीत को जानेंगे तो उन्हें एहसास होगा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उनका जन्म बिहार में हुआ. अपने राज्य की उपेक्षा कभी न करें.लोगों को बतायें कि बिहार ने भारत को क्या-क्या दिया है. लोग भी जरूर जानना चाहेंगे.गोपाल पटवा ने कहा कि राज्य के इतिहास से संबंधित बातें सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित की जानी चाहिए.लोग पढ़ें कि उनका इतिहास क्या है.
बदल रहा है बिहार, थोड़ी और हो कोशिश
डाॅ कर्मानंद आर्य व निर्मला कुमारी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि बिहार केवल पिछड़ा ही रहा है. बिहार ने कई मायनों में तरक्की भी की है. हां यह है कि हमें थोड़ी और कोशिश करनी होगी कि चीजें बेहतर हाे सकें. यह कोशिश संयुक्त हो, तो ज्यादा अच्छा है. मतलब सरकार के साथ जनता भी आगे आये. डाॅ पप्पू तरुण ने कहा कि बिहार के लोग दूसरे प्रदेशों में ईमानदार होते हैं, तो अपने राज्य में क्यों नहीं. अगर हम अपने राज्य में भी ईमानदारी से काम करें, तो इससे हमारा व राज्य दोनों का विकास होगा. छोटी-छोटी चीजों को बदलने का वक्त है, ताकि बिहार में तेजी से विकास हो.
बिहार के अाधार स्तंभ को पहचानने में भूल होती रही है. यहां की मेधा, संस्कृति व कृषि को नजरअंदाज किया गया. इन तीनों को प्रोमोट करने की जरूरत है. सोचने वाली बात है कि बिहार के लोग देश के लगभग हर सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों में शीर्ष पदों पर काम कर रहे हैं. लेकिन, बिहार के बारे में नहीं सोचते. यह राज्य की कमी है कि उन्हें कभी बिहार आने के लिए आमंत्रित नहीं किया जाता. उन्हें नहीं बताया जाता कि राज्य को उनकी प्रतिभा की जरूरत है.
राजीव रंजन
ज्ञान व संस्कृति की यह धरती अपने पुराने गौरव के लिए तरस रही है. बिहार में एकता बहुत जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि यहां की व्यवस्था में सुधार हो. केवल सरकार ही नहीं, राज्य की जनता भी अपने दायित्वों को समझे. शिक्षा की स्थिति सबसे खराब है. मेरिट के आधार पर शिक्षकों की बहाली हो.अच्छे शिक्षक होंगे तभी आने वाली पीढ़ी को ज्ञान मिलेगा. जिस शिक्षक को खुद बिहार के इतिहास के बारे में ज्ञान नहीं है, वह छात्रों को क्या पढ़ायेगा.
रेणुका पालित
बिहार का इतिहास रहा है कि यहां देश व दुनिया के लोग पढ़ने आते थे. आज का वक्त है कि यहां के बच्चे पढ़ने के लिए दूसरे राज्यों में जा रहे हैं. देश को राजेंद्र प्रसाद व जय प्रकाश नारायण जैसे नेतृत्वकर्ता देनेवाली इस धरती का कोई मेधावी छात्र अब राजनीति में नहीं जाना चाहता. नीति निर्धारणवाली जगह पर जब बिहार का कोई मेधावी व्यक्ति नहीं होगा, तो बिहार के बारे में कौन सोचेगा. ऐसा माहौल बनाना होगा, जो बिहार को फिर से आगे ले जाये.
परमाणु कुमार
ऐसा नहीं है कि बिहार केवल पीछे ही गया है. बहुत से क्षेत्रों में राज्य ने तरक्की की है. राज्य आगे भी बढ़ रहा है. बस, करना यह है कि यहां कि अच्छी चीजों को प्रोमोट किया जाये. हमें अपने राज्य के बारे में सोचना चाहिए. पर्यटन बिहार का मुख्य आकर्षण है, लेकिन लोग उतनी संख्या में नहीं आते हैं. सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. पर्यटन की ब्रांडिंग बहुत जरूरी है. पर्यटकों को सुरक्षा का एहसास करायें. इस तरह से यहां रोजगार भी बढ़ेगा.
डाॅ कर्मानंद आर्य