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बहुसंख्यकवाद की राजनीति का परिणाम है उन्माद

अशांति के नये दौर में श्रीलंका मुस्लिम विरोधी दंगों की वजह से बीते छह मार्च को श्रीलंका सरकार ने अंपारा और कैंडी जिले के कई हिस्सों में एक सप्ताह के लिए आपात स्थिति की घोषणा कर दी. देश की संसद में दिये अपने बयान में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने इस मजहबी हिंसा के लिए सिंहली […]

अशांति के नये दौर में श्रीलंका

मुस्लिम विरोधी दंगों की वजह से बीते छह मार्च को श्रीलंका सरकार ने अंपारा और कैंडी जिले के कई हिस्सों में एक सप्ताह के लिए आपात स्थिति की घोषणा कर दी. देश की संसद में दिये अपने बयान में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने इस मजहबी हिंसा के लिए सिंहली उग्रवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर दुकानें क्षतिग्रस्त करने तथा संपत्तियों और मस्जिदों में आग लगाने के आरोप लगाये.

इन मुस्लिम विरोधी दंगों की शुरुआत 22 फरवरी को तब हुई, जब तड़के दो बजे एक स्थानीय पेट्रोल पंप पर ईंधन लेने पहुंचे बहुसंख्यक सिंहली समुदाय के एक ट्रक ड्राइवर पर चार मुस्लिम युवकों ने हमला कर दिया. कैंडी जनरल अस्पताल में भर्ती जख्मी ड्राइवर की तीन मार्च को मृत्यु हो गयी. हालांकि, पुलिस ने इस घटना में संलिप्त चार संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया, पर सिंहली उग्रवादियों ने इसे सांप्रदायिक रंग देते हुए मुसलिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा छेड़ दी, जिसमें दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी.
श्रीलंका में विभिन्न समुदायों के बीच नफरत पैदा करने के लिए सोशल मीडिया के सहारे संगठित ढंग से झूठी और गुमराह करनेवाली अफवाहें फैलायी जा रही हैं. आपातस्थिति की घोषणा के बाद श्रीलंका की सरकार ने फेसबुक तथा व्हाट्सएप सहित सोशल मीडिया पर 72 घंटों के लिए रोक लगा डाली.
जातीय संघर्षों ने भी किया योगदान
तीस वर्षों तक रक्तरंजित संघर्ष का अनुभव करने के बावजूद, सांप्रदायिक हिंसा का फैल जाना श्रीलंका के समाज में मौजूद नाजुक धार्मिक संबंधों का सूचक है. श्रीलंका में तमिल उग्रवाद और उसके बाद के जातीय संघर्ष के लिए आजादी के बाद वहां आयी बहुमत की विभिन्न सरकारों द्वारा भेदभावपूर्ण नीतियों का अवलंबन तथा अल्पसंख्यक समुदाय के हकों और हितों की अनदेखी ही जिम्मेदार रही है. श्रीलंका की कुल लगभग 2.1 करोड़ की आबादी में मुस्लिमों की संख्या 9-10 प्रतिशत है.
जातीय संघर्ष के दौरान लिट्टे उग्रवादियों के व्यवस्थित हमलों से मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पीड़ाएं झेलीं. मुस्लिम हितों के रक्षा के लिए श्रीलंकाई मुस्लिम कांग्रेस जैसे मुस्लिम सियासी दलों ने श्रीलंकाई सरकार के अंदर मंत्रियों समेत विभिन्न पद स्वीकार कर अल्पसंख्यक समुदायों को विभाजित रखने की उसकी नीतियों का साथ दिया.
राजपक्षे शासन के अंतर्गत तीव्र सैन्य संघर्ष के बाद 2009 में लिट्टे की पराजय और जातीय संघर्ष की समाप्ति से भी श्रीलंका में शांति और स्थिरता स्थापित नहीं हो सकी, क्योंकि इस युद्ध के नतीजन बड़े पैमाने के विस्थापन, जन-धन हानि और मानवाधिकार उल्लंघन हुए. युद्धोत्तर श्रीलंका में मुस्लिमों को एक अन्य अल्पसंख्यकों के रूप में चित्रित किया जाने लगा और 2012 से उन पर ‘बोदु बाला सेना’ जैसे सिंहली कट्टरवादी समूहों द्वारा समर्थित व्यवस्थित हमले आरंभ हो गये.
वर्ष 2014 में दक्षिणी श्रीलंकाई तटीय शहरों में बौद्धों तथा मुस्लिमों के बीच हिंसा भड़क उठी, जिसमें संपत्तियों को पहुंची क्षति के अलावा दो व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी और 75 लोग जख्मी हो गये.
वर्ष 2015 में शांति, समझौते और आर्थिक विकास के आधार पर अल्पसंख्यक तमिल एवं मुस्लिम पार्टियों के साथ मुख्य सिंहली पार्टी, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी तथा यूनाइटेड नेशनल पार्टी के हाथ मिलाने के फलस्वरूप राष्ट्रीय एकता सरकार सत्ता में आयी. इस सरकार ने संवैधानिक सुधारों के द्वारा मेलमिलाप की दिशा में सकारात्मक पहलकदमी की. पहली बार राज्य का स्वरूप, उत्तरी और पूर्वी प्रदेशों के विलय तथा सत्ता के हस्तांतरण जैसे विवादास्पद मुद्दों पर सार्वजनिक राय ली गयी.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की कोशिशें
यह सरकार संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 2015 के उस प्रस्ताव को भी कार्यान्वित कर रही है, जिसने श्रीलंकाई सरकार से संक्रमणकालीन (ट्रांजिशनल) न्यायिक तंत्र लाने, मानवाधिकार उल्लंघन को संबोधित करने तथा युद्ध पीड़ितों को न्याय दिलाने को कहा गया था.
संयुक्त राष्ट्र तथा मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त प्रिंस जायद अल-हुसैन ने श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी दंगों की भर्त्सना की है. उत्तरदायित्व तथा संक्रमणकालीन न्याय के मुद्दे पर प्रगति के अभाव में उन्होंने मानवाधिकार परिषद के चालू 37वें अधिवेशन में सदस्य राज्यों से अनुरोध किया कि वे ‘सार्वजनीन क्षेत्राधिकार’ (यूनिवर्सल ज्यूरिस्डिक्शन) की संभावनाओं की तलाश करें. सार्वजनीन क्षेत्राधिकार मानवता के विरुद्ध गंभीरतम अपराधों के मामलों के राष्ट्र की भूमि पर घटित न होने और उनके किसी अन्य राज्य की सरकार के नेतृत्व द्वारा किये जाने पर भी राष्ट्रीय अदालतों में उनकी सुनवाई करने की अनुमति देता है.
उपर्युक्त सांप्रदायिक हिंसा के घटित होने की एक अन्य पृष्ठभूमि 10 फरवरी को संपन्न स्थानीय निकाय चुनावों की वजह से भी तैयार हुई, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे की पार्टी श्रीलंका पीपुल्स फ्रंट (एसएलपीपी) ने अधिसंख्य सीटें जीत लीं. एसएलपीपी का चुनाव अभियान वर्तमान सरकार द्वारा प्रारंभ संवैधानिक सुधारों और मेलमिलाप की कोशिशों के विरोध पर आधारित था. इसलिए स्थानीय निकायों के इन चुनावों के नतीजे केंद्रीय सरकार के लिए एक झटके के समान थे.
राजपक्षे नीत मोर्चा श्रीलंकाई प्रधानमंत्री के विरुद्ध महाभियोग लाने की योजना भी बना रहा है. ऐसी स्थितियों में वर्ष 2020 के अगले राष्ट्रपति चुनावों तक इस सरकार का बचा रहना भी अनिश्चित ही है.
श्रीलंका के सभी सियासी दलों ने मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा की निंदा की है. पर हालिया घटनाएं यही संकेत करती हैं कि यदि सरकार शांति तथा स्थिरता की टिकाऊ स्थापना करने हेतु सियासी तथा आवश्यक आर्थिक परिवर्तन न ला सकी, तो देश युद्धपूर्व परिस्थितियों की ओर वापसी कर सकता है.
(अनुवाद : विजय नंदन)
नाजुक मजहबी रिश्तों के नतीजे हैं ये दंगे
डॉ समता मलेम्पती
विश्लेषक
श्रीलंका के सभी सियासी दलों ने मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध हिंसा की निंदा की है. पर हालिया घटनाएं यही संकेत करती हैं कि यदि सरकार शांति तथा स्थिरता की टिकाऊ स्थापना करने हेतु सियासी तथा आवश्यक आर्थिक परिवर्तन न ला सकी, तो देश युद्धपूर्व परिस्थितियों की ओर वापसी कर सकता है.
इससे पहले कब रहा आपातकाल
2011 में श्रीलंका में आपातकाल हटाया गया था, जिसके बाद पहली बार फिर से आपातकाल लागू किया गया है.
1971 से कुछ संक्षिप्त अंतराल को छोड़कर करीब चार दशकों तक श्रीलंका में आपातकाल लागू था.
1983 के बाद से आपातकाल विद्रोही तमिल समूह लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (एलटीटीई), जिसे तमिल टाइगर्स के नाम से भी जाना जाता है, के अलग राज्य की मांग के कारण उपजे गृहयुद्ध के कारण लगाया गया था.
2.10 करोड़ के करीब है श्रीलंका की आबादी.
75 फीसदी जनसंख्या है सिंहली बौद्धों की.
13 फीसदी आबादी तमिलों की हैं, जो अमूमन हिंदू हैं.
10 फीसदी के लगभग मुस्लिम आबादी है इस बौद्ध बाहुल्य देश में.
मुख्य भाषा
सिंहली, तमिल, अंग्रेजी
धर्म : बौद्ध, हिंदू, इस्लाम
वर्ष 1948 में श्रीलंका को मिली आजादी
तकरीबन 150 वर्षों के ब्रिटिश शासन के बाद वर्ष 1948 में श्रीलंका को आजादी मिली. आजादी मिलने के करीब सात वर्षों के बाद श्रीलंका संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना. इसके अलावा, यह कॉमनवेल्थ और सार्क यानी साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कॉआपरेशन का सदस्य भी बना. ब्रिटिश शासन के दौरान ही काेलंबो मुख्य शहरी और वाणिज्यिक केंद्र बन कर उभरा और बाद में इसे श्रीलंका की राजधानी बनाया गया. प्रशासन के लिहाज से यह देश नौ प्रांतों और 25 जिलों में विभाजित है.
पर्यावरणीय और भौगोलिक विविधता
श्रीलंंका की आबादी बहुत ही सघन है. यहां के ज्यादातर लोग गरीब हैं और ग्रामीण इलाकों में बसते हैं. इन लोगों की मुख्य आजीविका खेती से ही जुड़ी है. व्यापक पर्यावरणीय और भौगोलिक विविधताओं वाला यह देश इन कारणों से दुनिया के सुंदर देशों में शुमार है. यहां कई तरह की प्राचीन जनजातियां हैं और सभी के पास अपनी-अपनी संपन्न सांस्कृतिक विरासत है. सांस्कृतिक रूप से भी यह बहुत ही विविधताओं से भरा देश है.
हिंसा के माहौल की पृष्ठभूमि
चार मार्च से शुरू हुआ हिंसक दौर कोई अचानक घटी घटना नहीं है. पिछले साल से तनाव का माहौल तैयार हो रहा था, जब कुछ कट्टरपंथी बौद्ध समूहों ने मुस्लिम समुदाय पर जबरन धर्म-परिवर्तन तथा बौद्ध पुरातत्व स्थलों को क्षतिग्रस्त करने का आरोप लगाया था. दशकों तक चले खूनी गृह युद्ध के दौरान मुस्लिम समुदाय ने आम तौर पर सरकार को सहयोग किया था. तमिल लड़ाकों के अलगाववाद का विरोध करने के साथ मुस्लिम राजनेताओं ने मध्य-पूर्व के देशों में श्रीलंका के लिए समर्थन जुटाने का काम भी किया था.
इन वजहों से मुस्लिमों को ‘अच्छे अल्पसंख्यक’ की संज्ञा भी दी गयी थी. तमिल विद्रोह का पूरी तरह से दमन करने के बाद भी तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे सिंहली बौद्ध राष्ट्रवाद की भावना को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते रहे थे. साल 2012 में एक चरमपंथी बौद्ध संगठन ‘बोदु बाला सेना’ ने मुस्लिम-विरोधी भावनाओं को व्यवस्थित रूप से उभारना प्रारंभ किया था. मुस्लिम समुदाय के बारे में आपत्तिजनक प्रचार के साथ इस संगठन ने यह भी आरोप लगाया कि मुस्लिम कारोबारी सिंहलियों का शोषण कर रहे हैं और सिंहली औरतों को ऐसे कपड़े बेच रहे हैं जिनके कारण उनकी प्रजनन क्षमता कम होती है.
म्यांमार से आये रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर भी तनाव पैदा करने की कोशिशें होती रही हैं. हालांकि राजपक्षे की हार के बाद इस चरमपंथी संस्था की गतिविधियां कम हुईं, पर कुछ बौद्ध भिक्षु मुस्लिम-विरोध में सक्रिय रहे. पिछले साल मुस्लिमों पर 20 हमले हुए थे. पिछले महीने स्थानीय निकायों के चुनाव में महिंदा राजपक्षे की पार्टी की भारी जीत से कट्टर तत्वों को फिर से हौसला मिला है.
सोशल मीडिया पर पाबंदी
हालिया हिंसा की घटनाओं के बाद श्रीलंका सरकार ने बुधवार को फेसबुक सरीखे सोशल मैसेजिंग नेटवर्क पर पाबंदी लगा दी. साथ ही, कैंडी जिले में पुलिस ने अनिश्चित काल के लिए कर्फ्यू लगा दिया. हालांकि, बुधवार तक कितने लोग घायल हुए इसकी पुष्टि प्रशासन की ओर से नहीं की गयी थी, लेकिन फेसबुक समेत सोशल मीडिया पर इस बारे में तेजी से अफवाह फैल रही थी, जिसके बाद से फेसबुक, वाइबर और व्हॉट्सएप को आगामी तीन दिनों के लिए ब्लॉक कर दिया गया. हालांकि, तीन दिनों के बाद यह पाबंदी हटा दी गयी.
श्रीलंका में हिंसा का इतिहास
1815 में कैंडी राज पर विजय प्राप्त करने के बाद ब्रिटिश अधिकारी खेती के लिए दक्षिण भारत से तमिल श्रमिकों को श्रीलंका ले गये.
1948 में श्रीलंका ब्रिटिश शासन से आजाद हुआ.
1949 में श्रीलंका ने बागानों में काम कर रहे अनेक तमिल श्रमिकों को मताधिकार और नागरिकता से वंचित कर दिया.
1956 में प्रधानमंत्री सोलोमन भंडारनायके द्वारा केवल सिंहली को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिये जाने के खिलाफ तमिल सांसदों ने
प्रदर्शन किया था, जिसके बाद हिंसा में 100 से ज्यादा तमिल मारे गये थे.
1958 में तमिलों के खिलाफ हुए दंगे में 200 से अधिक तमिल मारे गये थे.
1959 में एक बौद्ध साधु ने भंडारनायके की हत्या कर दी.
1976 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम यानी (एलटीटीई) की स्थापना हुई.
1977 में अलगाववादी दल तमिल यूनाईटेड लिबरेशन फ्रंट (टीयूएलएफ) ने तमिल क्षेत्र की सभी सीटों पर जीत दर्ज की. इस जीत के बाद तमिलों के खिलाफ भड़की हिंसा में 100 से ज्यादा तमिल मारे गये.
1983 में एलटीटीई द्वारा 13 सैनिकों की हत्या करने के बाद यहां दंगा भड़क उठा, जिसमें हजारों तमिलों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. यहीं से प्रथम इलम की शुरुआत हुई.
1987 में श्रीलंकाई सेना ने एलटीटीई को जाफना शहर तक सीमित कर दिया.
1990 में श्रीलंका सेना और अलगाववादियों के बीच संघर्ष बढ़ने के बाद दूसरे इलम युद्ध की शुरुआत हुई.
1993 में एलटीटीई द्वारा राष्ट्रपति प्रेमदासा की हत्या.
1995 में तमिल विद्रोहियों द्वारा नौसेना के जहाज को डूबा देने के बाद तीसरे इलम युद्ध की शुरुआत हुई.
1995 से 2001 के बीच एलटीटीई और सरकार के बीच लगातार संघर्ष.
2004 में कोलंबो में आत्मघाती बम विस्फोट हुआ. वर्ष 2001 के बाद इस तरह की यह पहली घटना थी.
2005 में एक संदिग्ध हत्यारे ने तत्कालीन विदेश मंत्री की हत्या कर दी.
2006 में एक आत्मघाती हमलावर द्वारा कोलंबो स्थित सैन्य परिसर पर किये गये आक्रमण से आठ लोगों की जान चली गयी. इसके बाद सेना ने तमिल टाइगर्स को लक्ष्य कर हवाई हमले किये.
2006 मई को तमिल टाइगर्स ने जाफना के नजदीक नौसैनिक काफिले पर हमला किया. इस वर्ष सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच जोरदार संघर्ष होता रहा.
2007 में पुलिस बल ने सैंकड़ो तमिलों को सुरक्षा का हवाला देते हुए राजधानी से बाहर निकाल दिया.
2008 दिसंबर में श्रीलंकाई सैनिकों और तमिल विद्रोहियों के बीच भीषण संघर्ष हुआ, जिसमें भारी तादात में दोनों पक्षों के लोग हताहत हुए.
2009 मई में श्रीलंकाई सेना के साथ हुए युद्ध में एलटीटीई प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण की मृत्यु हो गयी. प्रभाकरण की मृत्यु के बाद दशकों से चलने वाले गृह युद्ध की समाप्ति हो गयी. इस युद्ध के दौरान और इसके बाद भी श्रीलंका सरकार पर मानवाधिकार हनन के आरोप भी लगे.
किसने क्या कहा
हमारे देश ने भीषण हिंसक संघर्ष झेला है, हम शांति, सम्मान, एकता और स्वतंत्रता के मूल्यों से अवगत हैं. सरकार पिछले दिनों हुई नस्लवादी और हिंसक कृत्यों की निंदा करती है. कैंडी शहर में जो दंगे हुए हैं, वे सुनियोजित और संगठित तरीके से अंजाम दिये गये लगते हैं और सरकार कठोर कार्रवाई का वादा करती है. आपातकाल घोषित कर दिया गया है और आगे की कार्रवाई करने में हम संकोच नहीं करेंगे.
रानिल विक्रमसिंघे, प्रधानमंत्री, श्रीलंका
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अधिकारियों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और घृणा फैलाने वाले लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की. लेकिन आपातकालीन स्थिति हिंसा को बढ़ावा देने का बहाना नहीं होना चाहिए.
– बिरज पटनायक, एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया के डायरेक्टर
श्रीलंका में जाति या धर्म के नाम पर किसी को भी न ही हाशिये पर धकेला जा सकता है, न ही उसे धमकाया या नुकसान पहुंचाया जा सकता है. हम एक देश और एक लोग हैं. प्रेम, विश्वास और स्वीकारोक्ति हमारा मंत्र है. यहां नस्लवाद और हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. इसे बंद करें. एक साथ और मजबूती से खड़े हों.
– कुमार संगकारा, क्रिकेट खिलाड़ी, श्रीलंका
श्रीलंका में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार जारी हिंसा को रोका जाना चाहिए और इसके लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए. ऐसा करने वालों के लिए सजा से मुक्ति का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए, चाहे वे हमला करने वालों में शामिल रहे हों, या फिर हमलों के लिए प्रेरित करने वालों में शुमार रहे हों.
– जायद अल-हुसैन, मानवाधिकार उच्चायुक्त, संयुक्त राष्ट्र
अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिका ने कहा है कि वह श्रीलंका की राष्ट्रीय सुरक्षा का सम्मान करता है, लेकिन इसके साथ ही वह अपने नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी सुनिश्चित करे. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा, हम श्रीलंका की राष्ट्रीय सुरक्षा का सम्मान करते हैं, साथ ही अमेरिका निर्बाध, भरोसेमंद और सुरक्षित इंटरनेट सेवा का समर्थन करता है, जहां अभिव्यक्ति की आजादी की तरह सभी लोगों के ऑनलाइन अधिकारों की भी रक्षा हो. सोशल मीडिया पर पाबंदी के बारे में उन्होंने कहा, अमेरिका लोकतांत्रिक शासन के महत्वपूर्ण घटक के तौर पर अभिव्यक्ति की आजादी व सूचना तक पहुंच का सम्मान करता है.

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