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अच्छाई की अनंत यात्रा की शुरुआत अंतर्यात्रा से ही जरूरी

II डॉ मयंक मुरारी II चिंतक एवं लेखक murari.mayank@gmail.com अच्छाई किसी किताब में, किसी व्यक्ति में या किसी उपदेश और सीख में ही हो, यह जरूरी नहीं. यह हर कण और हर क्षण में है. यह एक छोटे कण में भी समावेशित है, जो शुरुआत में पहाड़ के साथ जुटा था. बाद में पहाड़ टूटा […]

II डॉ मयंक मुरारी II
चिंतक एवं लेखक
murari.mayank@gmail.com
अच्छाई किसी किताब में, किसी व्यक्ति में या किसी उपदेश और सीख में ही हो, यह जरूरी नहीं. यह हर कण और हर क्षण में है. यह एक छोटे कण में भी समावेशित है, जो शुरुआत में पहाड़ के साथ जुटा था.
बाद में पहाड़ टूटा तो वह खुरदुरा और नुकीला पत्थर के रूप में अलग हुआ. वह पहले पहाड़ की तलहटी में पड़ा रहा, फिर जल की धारा उसे बहाकर नाली, नाली से छोटी नदी और फिर बड़ी नदी में ले गयी. वह जल के नीचे गति करते हुए लुढ़कता रहा, घिसता रहा और तब चमकीला शालिग्राम बनकर मंदिर में प्रतिष्ठित हो गया.
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पत्रों की एक शृंखला में इस बात का उल्लेख किया था कि पृथ्वी एक किताब है.हमें एक छोटा-सा रोड़ा बहुत सारी बातें बता सकता है, तो हमारे चारों ओर अन्य दूसरी चीजें हमें और कितनी बातें कह सकती हैं! संसार एक खुली किताब है और उसमें दृश्यमान रूप, तत्व या शब्द उस किताब के विभिन्न पृष्ठ. हम उसे पढ़ते नहीं. अगर हमें नदी, पहाड़, मंदिर, जंगल, प्रकृति, शब्द को पढ़ने आ गया, तो उससे अच्छाई की एक धारा फूट पड़ेगी. हमारी आंखों के सामने प्रकृति खुली पड़ी है, हम इसे पढ़ना और समझना सीख लें, तो कई सुंदर कहानियां बन जायेंगी. उपनिषद कहते हैं- चरैवेति, चरैवेति अर्थात् चलते रहो.
चलते रहने का नाम ही जीवन है. जीवन का तात्पर्य ही गति है, तो सबकुछ ठीक, अन्यथा कहीं रुक गये, तो हमारे लिए कुछ नहीं रुकेगा. इस सृष्टि में सब अपने इच्छित लक्ष्य के लिए क्रियाशील हैं. गतिशीलता सद्विचार पर आधारित होती है. इन सद्विचार को कहां खोजा जाये? अच्छाई के लिए अन्वेषण करना होगा, स्वयं से सवाल करना होगा और सत्य के साथ खड़ा होना होगा.
अच्छाई हर पल, हर जगह है. हम कौतुक होकर खोजेंगे, तो मिलेगा. अनुभव करेंगे, तो हरेक वस्तु या तत्व स्वयं को प्रकट करेगा. हम पर्याप्त करुणा से परिपूर्ण हैं, तो सृष्टि के हरेक तत्व अपने रहस्य को उद्घाटित कर देंगे.
दूसरी ओर ईश्वर हमारे माध्यम से कार्यरत हैं. इसलिए उसने अच्छाई और सुंदरता के कई प्रतिमान बनाये. उसने सृष्टि को सुंदर और सजीव बनाने के लिए फूल, पेड़, नदी, पहाड़, सूर्य, तारे जैसी वस्तुएं या पदार्थ बनाये. यात्रा, प्रार्थना, अभिवादन, संघर्ष, समय, स्थान जैसे शब्द की रचना की. हरेक दृश्यमान या अस्तित्व वाले पदार्थ, शब्द, भाव, वस्तु या स्थिति में अच्छाइयां अंतर्निहित हैं.
हम शांत हैं, करुणा से भरे हैं, तो बहते झरनों में किताबें, पत्थर में उपदेश, वृक्ष में मस्तिष्क, मिट्टी या पौधों में रोगमुक्ति के ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं. अच्छाई अगर हमारा लक्ष्य है, तो यह मिलेगा. भगवान राम ने इसे मर्यादा से, श्रीकृष्ण ने योग से, महात्मा बुद्ध ने करुणा से, महावीर ने अहिंसा से, सुकरात ने सत्यता से, विवेकानंद ने सेवा से अच्छाई का मार्गदर्शन पाया. डॉ जॉर्ज वाशिंगटन कार्वर अमेरिका के कृषि वैज्ञानिक थे, जिन्होंने मूंगफली, शकरकंद और सोयाबीन से नये उत्पाद विकसित किये. उनकी कृषिगत खोज से दक्षिण अमेरिका की कृषि अर्थव्यवस्था में क्रांति आयी.
उनका कहना है कि यह सृष्टि कार्यशाला है. जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे मैंने चाहा हो और उसके लिए ईश्वर ने सरल मार्ग नहीं सुझाया हो. उन्होंने मूंगफली और शंकरकंद से वार्तालाप की और उनके क्रमश: 300 एवं 150 नये प्रयोग किये. वे कहते हैं जब मैं नन्हे फूल व मूंगफली से बात करता हूं, तो वे अपना रहस्य मेरे सामने रख देते हैं.
चीनी दार्शनिक लाओत्से ने कहा कि जीवन में अच्छाई को पाना है या सत्य की यात्रा करनी है, तो समर्पण करना होगा, झुकना होगा. खाली होना होगा. याद है, बचपन में मेरी बड़ी बेटी जिया ने सवाल किया था?
पढ़ाई क्यों जरूरी है? मैंने कहां ज्ञान के लिए. तब उसका सवाल था कि इसके लिए स्कूल जाने ही जरूरी क्यों? इसी प्रकार अच्छाई के लिए अंतर्यात्रा करनी होगी. स्वयं के अंदर, स्वयं से बाहर. इसी समय और समाज के साथ. अच्छाई की खोज के दौरान मैंने मां को खोया.
तब मुझे आंसू की अच्छाई का बोध हुआ. आंसू की महिमा निराली है. बड़ी से बड़ी परेशानी को पल में धोकर बहा ले जाती है. चूंकि अच्छाई की यात्रा अनंत है, अतएव खोज भी जारी रहेगी. अच्छाई की यात्रा खुद से शुरू होती है. इसके बाद परिवार में इसका ज्ञान बोध होता है. हमारे बच्चे, हमारे माता और पिता, हमारे दोस्त व साथी, हमारे सहकर्मी और इनके साथ घुली-मिली हमारी दिनचर्या के साथ अच्छाइयां लगातार सन्निहित रहती हैं.

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