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विवाह में विलंब का कारण सप्तम भाव में मंगल है, ये भी हो सकता है बाधाओं का कारण…..जानें उपाय
मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ) विवाह-शादी की सही उम्र और सही मेल की सामाजिक मांग है. हर अभिभावक यह सुदिन देखना चाहता है. बच्चों के जन्म से ही तो उनकी उन्नति की सीढ़ियां गढ़ते-गढ़ते स्वयं को खपाते चलता है, पर उनके विवाह के भी सुकुमार सपने संजोता चलता है. पुत्र के पिता जहां सुयोग्य-संस्कारी […]
मार्कण्डेय शारदेय (ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ)
विवाह-शादी की सही उम्र और सही मेल की सामाजिक मांग है. हर अभिभावक यह सुदिन देखना चाहता है. बच्चों के जन्म से ही तो उनकी उन्नति की सीढ़ियां गढ़ते-गढ़ते स्वयं को खपाते चलता है, पर उनके विवाह के भी सुकुमार सपने संजोता चलता है.
पुत्र के पिता जहां सुयोग्य-संस्कारी वधू की उम्मीद पालता है, तो पुत्री का पिता सुयोग्य, सक्षम, पुरुषार्थी दामाद की. लड़कियों में जहां लक्ष्मीत्व वांछित है, वहीं लड़कों में विष्णुत्व, वर-वधू के ये ही दोनों मुख्य भारतीय आदर्श हैं.
उम्र पर शादी में जहां तनिक भी विलंब होने लगता है कि अभिभावकों की चिंता बढ़ने लगती है. लोग ज्योतिषियों से कारण और निदान पूछने लगते हैं.
जन्मांग-चक्र का सातवां घर (सप्तम भाव) दाम्पत्य, अर्थात् पति-पत्नी से संबंधित है. इसमें पापी व क्रूर ग्रहों का रहना व इसे देखना दाम्पत्य-सुख का बाधक होता है. इसके तीन अंग हैं- (क) विवाह में विलंब, (ख) विवाह के बावजूद आपसी मेल का अभाव तथा (ग) पति-पत्नी में से किसी का नाश.
विलंब तो साधारण है, पर शेष दो तो जीवन को तहस-नहस कर देनेवाले हैं. ये सभी ग्रहजन्य प्रबल कुपरिणामों के ही फल हैं. विवाह-जैसे सुकुमार संबंध का सबसे बड़ा घातक ग्रह है मंगल. इसकी उपस्थिति व दृष्टि विशेषतः सप्तम भाव में हो और कोई शुभग्रह बीच-बचाव करनेवाला न हो, तो यह तीनों में से कोई-न-कोई परिणाम देने को तत्पर रहता है.
सप्तमेश का पंचम भाव में व अष्टमेश का सप्तम भाव में होना भी बाधकता है. इसी तरह सप्तमस्थ नीच गुरु, वृश्चिक का शुक्र, वृष का बुध, मीन का शनि भी वही काम करता है, जो मंगलकृत्य है. फिर भी कर्क राशि का सप्तमस्थ मंगल एवं शनि अशुभ फल नहीं देते
‘चन्द्रक्षेत्रगयोःमदेsर्कि-कुजयोः पत्नी सती शोभना’(फलदीपिका).
इनके अतिरिक्त विवाह की बाधकताओं से संबंधित इन प्रमुख बिंदुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है –
1. सप्तमेश का छठे, आठवें, बारहवें में होना और षष्ठम, अष्टम, द्वादश भावों में से किसी भाव के स्वामी का सप्तम में होना.
2. सप्तमेश का बारहवें में और लग्नेश के साथ जन्म राशि का सप्तमस्थ होना.
3. शुक्र के साथ चंद्रमा किसी भाव में साथ हो और शनि के साथ मंगल सप्तम भावस्थ हो.
4. पंचम, सप्तम, नवम- इनमें से किसी भाव में मंगल-शुक्र की युति हो.
5. सप्त
स्थ पाप-दृष्ट शुक्र-बुध हों, पर शुभ दृष्टि होने पर विलंब से विवाह होता है.
इसी तरह के और भी बाधक तत्व हैं, पर मुख्य बात है कि सप्तम भाव और सप्तमेश कुप्रभावित रहेंगे तो या तो विवाह ही नहीं होगा, होगा भी तो वैवाहिक जीवन सुखद रहने की कम ही संभावना रहती है.
विशेष परामर्श : यदि बाधकताओं की अधिकता हो तो ग्रह शांति उचित रहेगी.
इसी तरह महादशेश, अंतर्दशेश तथा सप्तमेश से संबंधित वस्तुओं का दान भी करना चाहिए. लड़कों को शुक्र तथा लड़कियों को बृहस्पति की आराधना-उपासना करने से लाभ होता है.
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