रांची : क्या आप हंटर डिजीज के बारे में जानते हैं. यह एक गंभीर किस्म की बीमारी है. बीमारी सिर्फ लड़कों को होती है. मां की वजह से होती है. इलाज भी संभव नहीं है. ऐसे रोगियों की संख्या दुनिया में बेहद कम है. इसलिए इसकी दवा बनाने वाली कंपनियां भी कम हैं. एक खुराक दवा की कीमत 10 लाख रुपये है. झारखंड के शौर्य सिंह को भी यह बीमारी है. झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार से अनुशंसा की है कि उसके इलाज की व्यवस्था करायी जाये.
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स्वास्थ्य सचिव निधि खरे ने गुरुवार को रिम्स के विभागाध्यक्षों से बातचीत करने के बाद हंटर डिजीज से पीड़ित शौर्य सिंह (6) के इलाज की अनुशंसा करने के साथ-साथ रेयर डिजीज के मामले की समीक्षा के लिए एक कमेटी का गठन भी किया है. दरअसल, भारत सरकार ने रेयर डिजीज के सिलसिले में एक नीति निर्धारित की है और इससे पीड़ित लोगों के इलाज के लिए एक कॉरपस फंड बनाया है. भारत सरकार द्वारा निर्धारित रेयर डिजीज पॉलिसी के तहत पीड़ित लोगों के इलाज का 60 प्रतिशत खर्च भारत सरकार और 40 प्रतिशत राज्य सरकार उठाती है.
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क्या है हंटर सिंड्रोम!
इस बीमारी से पीड़ित लोगों में एक खास किस्म का एंजाइम नहीं बनता है. उसे यह एंजाइम दवा के रूप में बाहर से दिया जाता है. एंजाइम सिर्फ यूएसए और कोरिया की एक कंपनी बनाती है. इसकी एक खुराक पर 10 लाख रुपये का खर्च आता है. यह रेयर बीमारी है, जो सिर्फ लड़कों को होती है. इस बीमारी से पीड़ित लोगों के शरीर में हड्डी, स्किन, टेंडोन और अन्य टिश्यू बनाने वाले सुगर को नहीं तोड़ पाता. फलस्वरूप ऐसे सुगर की मात्रा उनके सेल्स में बढ़ जाती है और पीड़ित व्यक्ति के ब्रेन समेत शरीर के अन्य भागों को डैमेज कर देता है. इस बीमारी का दुनिया में कोई इलाज उपलब्ध नहीं है.
बीमारी के लक्षण
हंटर सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं.
-जोड़ों में समस्या हो जाती है, जिससे उसका चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है.
-अस्वस्थता, कमजोरी और हाथों में झिनझिनी रहता है.
-बार-बार सर्दी, खांसी के साथ-साथ साइनस और गले में इन्फेक्शन (संक्रमण) की भी समस्या रहती है.
-सांस लेने में समस्या होती है. रात में कई बार सांस में रुकावट आ जाती है या स्लीप एप्निया की समस्या रहती है.
-कान में संक्रमण और कम सुनाई देना.
-चलने-फिरने में समस्या और मांसपेशियों में कमजोरी होती है.
बीमारी के कारण
जिस लड़के को यह बीमारी होती है, उसके डीएनए के छोटे से टुकड़े, जिसे जीन कहते हैं, में एक विशेष प्रकार की समस्या की वजह से उसके शरीर में एक विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन का बनना बंद हो जाता है. यह जीन बच्चे को उसकी मां से मिलता है. हंटर सिंड्रोम से पीड़ित पिता अपनी बेटी में यह जीन पास कर सकता है, लेकिन बच्ची को तब तक हंटर डिजीज नहीं हो सकता, जब तक उसकी मां से भी उसके शरीर में यह जीन नहीं पहुंचता.