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रोजगार का संकट

देश में रोजगारविहीन वृद्धि का दौर लंबे समय से चल रहा है. सरकार और उद्योग जगत द्वारा प्रयासों के दावे के बावजूद हालत चिंताजनक है. केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने विश्व श्रम संगठन के हवाले से संसद को बताया है कि इस वर्ष बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ हो सकती है, जो बीते साल […]

देश में रोजगारविहीन वृद्धि का दौर लंबे समय से चल रहा है. सरकार और उद्योग जगत द्वारा प्रयासों के दावे के बावजूद हालत चिंताजनक है.

केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने विश्व श्रम संगठन के हवाले से संसद को बताया है कि इस वर्ष बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ हो सकती है, जो बीते साल 1.83 करोड़ थी. इसका मतलब यह है कि बेरोजगारी की दर 3.5 फीसदी के स्तर पर स्थिर रह सकती है. लेकिन, क्या इन अनुमानों से पूरी तरह आश्वस्त हुआ जा सकता है?

भारतीय अर्थव्यवस्था का अध्ययन करनेवाली प्रतिष्ठित संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट कहती है कि फरवरी में बेरोजगारी पिछले 15 महीनों के उच्चतम स्तर पर थी. इसके मुताबिक बेरोजगारों की मौजूदा संख्या 3.10 करोड़ है, जो कि अक्तूबर, 2016 के बाद सर्वाधिक है. इस हिसाब से फरवरी में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही है, जबकि जनवरी में यह दर पांच फीसदी थी.

मौजूदा वित्त वर्ष में करीब छह लाख रोजगार सृजन का आकलन है. चिंता की बात यह है कि बेरोजगारी की दर में कमी की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. पिछले माह केंद्र सरकार ने जानकारी दी थी कि मार्च, 2016 तक उसके चार लाख से अधिक पद खाली हैं, जो कि केंद्रीय विभागों के कुल कार्य-बल का 11 फीसदी है.

जब 1.70 करोड़ लोग हर साल रोजगार के लिए तैयार हो रहे हैं और करीब 55 लाख नौकरियां ही उपलब्ध हो रही हैं, तो सरकार को अपने अधीन खाली पदों को भरने पर जोर देना चाहिए. याद रहे, सितंबर, 2015 तक ही साढ़े चार करोड़ लोग रोजगार केंद्रों में पंजीकृत थे. अब यह संख्या बढ़ी ही होगी तथा बड़ी संख्या में बेरोजगार पंजीकरण भी नहीं कराते हैं. रोजगार के संदर्भ में नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने व्यक्ति की क्षमता और कौशल से निम्न स्तर के रोजगार में लगे होने की अहम समस्या को रेखांकित किया है, परंतु इसे बेरोजगारी से अधिक बड़ी समस्या कहना सही नहीं है.

बहरहाल, विभिन्न आर्थिक सुधारों और अर्थव्यवस्था की मजबूती के भरोसे यह माना जा सकता है कि आनेवाले समय में हालत बेहतर हो सकती है. सरकार ने राष्ट्रीय रोजगार नीति तैयार करने के लिए मंत्रियों की एक समिति गठित की है.

साथ ही, व्यापक आंकड़े जुटाने की दिशा में भी कोशिशें जारी हैं. संपत्ति के सृजन और आर्थिक वृद्धि के संतोषजनक रहने की स्थिति को तभी सकारात्मक माना जा सकता है, जब रोजगार के अवसर भी समुचित संख्या में पैदा होते रहें. उत्पादन और मांग को गति देने के लिए जरूरी है कि आम लोगों की आमदनी बढ़े.

अगले साल के पूर्वार्द्ध में लोकसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में केंद्र सरकार के पास बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु ठोस पहल करने के लिए बहुत अधिक समय नहीं बचा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस मुद्दे पर संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श कर जल्दी ही कोई बड़ा नीतिगत फैसला लेगी.

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