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बिहार : पति के निधन के बाद शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगा रही हैं वीणा, सिखा रहीं अंग्रेजी

पटना : कल तक जिन बच्चों का नाता स्कूल से दूर-दूर तक नहीं था, आज इनके लिए शिक्षा के मायने बदल चुके हैं. अब वे पढ़ना चाहते हैं. 13 वर्षीय रित्ति आज से चार साल पहले किताब के मायने भी नहीं जानती थी, पर आज वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोल और लिख रही है. रित्ति अकेली […]

पटना : कल तक जिन बच्चों का नाता स्कूल से दूर-दूर तक नहीं था, आज इनके लिए शिक्षा के मायने बदल चुके हैं. अब वे पढ़ना चाहते हैं. 13 वर्षीय रित्ति आज से चार साल पहले किताब के मायने भी नहीं जानती थी, पर आज वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोल और लिख रही है.
रित्ति अकेली नहीं है, पियूष, सुमित जैसे लाखों बच्चे ऐसे हैं, जो आज अंग्रेजी के वाक्यों को बखूबी बोल और लिख रहे हैं. रोज तीन से छह के बीच कुर्जी स्थित कोशी शिक्षा केंद्र पर पहुंच जाते हैं और पढ़ाई करते हैं.
इन बच्चों के जीवन में रंग घोलने का काम कर रही हैं, नोट्रेडेम की शिक्षिका वीणा सिंह, जो लगातार पिछले सात सालों से ऐसे बच्चों को शिक्षित कर रही हैं, जो स्कूल नहीं जा पाते हैं.उनके केंद्र में वर्तमान में कुल 200 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें ज्यादातर बच्चे वैसे हैं, जिनके माता-पिता मजदूर हैं. वीणा सिंह बताती हैंं िक उनके घर में काम करने आने वाली बाई के बच्चों को जब देखा कि वह मां के साथ रोज सभी घरों मे जाती है और मां का हाथ बंटाती है. पूछने पर बताया कि यदि बच्चे स्कूल चले जायेंगे तो पेट कैसे भरेगा. इसी क्रम में मैंने इन बच्चों को शिक्षित करने का सोचा.
खाली समय का करती हैं इस्तेमाल
स्कूल से आने के बाद तीन से छह बजे तक इन बच्चों को पढ़ाने लगी. इससे इन बच्चों का काम भी बाधित नहीं हो रहा है और ये बच्चे पढ़ाई भी कर रहे हैं.
अब तो बच्चों के पढ़ाई में बेहतर करने के बाद माता-पिता खुद ही बच्चों का नामांकन स्कूल में कराने लगे हैं. बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता देख, सब चौंक जाते हैं. क्योंकि ये सारे बच्चे ऐसे परिवार से हैं, जहां बच्चे हिंदी ही सही से बोल लें बड़ी बात है. पर मेरे केंद्र पर आने वाले बच्चे अब अंग्रेजी में बात करते हैं.
इन बच्चों पर शुरुआत में मुझे थोड़ी अधिक मेहनत करनी पड़ती है. पर दो महीने के बाद मेहनत रंग लाने लगती है. उन्हें पढ़ता देख मुझे बहुत खुशी मिलती है.
पति के निधन के बाद वीणा ने अध्यापन को बनाया सहारा
वीणा बताती हैं कि उनके पति की मृत्यु के बाद वह खुद को अकेला महसूस करती थीं. स्कूल से आने के बाद वह अक्सर कुछ करना चाहती थीं. इसी कम्र में उन्होंने गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षित करने की सोची. इसकी शुरुअात अपने घर आनेवाली मेड के बच्चों से की. बाद में ऐसे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ने लगी. इसके लिए वह खुद से भी प्रयास करतीं और वैसे बच्चों के माता-पिता को बच्चों को पढ़ाने के लिए रिक्वेस्ट करतीं. शुरुआत में उन्हें बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती देख अब पैरेंट्स खुद से उनके पास पहुंचते हैं.

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