हेमंत सोरेन को यह अहसास है कि कांग्रेस को उनकी जरूरत है, हालांकि पुराने अनुभवों के कारण उनके पिता शिबू सोरेन का भरोसा कांग्रेस पर नहीं है
यह देखना दिलचस्प होगा कि बड़ी पार्टी होने के बावजूद झामुमो कांग्रेस को राज्यसभा की चुनावी सीट देता है या उस पर खुद लड़ता है
रांची : राज्यसभा चुनाव के बहाने कई राज्याें में 2019 के लोकसभा चुनाव के गंठबंधन की संभावनाओं की तलाश शुरू हो गयी है. झारखंड भी इसमें शामिल है. 23 मार्च कोद्विवार्षिक राज्यसभा चुनाव है और इसमें झारखंड की दो सीटें भी शामिल हैं. राज्यसभा चुनाव के मद्देनजर मंगलवार को झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार व राज्य के प्रभारी आरपीएन सिंह के साथ तसवीरें भी खिंचवाई.
दोनों दलों के नेताओं के बीच बातचीत में कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में खुद के लिए झामुमो का समर्थन मांगा, वहीं राज्य में आगामी चुनावों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में काम करने का भरोसा दिलाया. लोकसभा चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में होगा, जबकि झारखंड विधानसभा चुनावउसी साल के अंत में होगा. कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख व पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी 13 मार्च को दिल्ली में विपक्ष व क्षेत्रीय दलों के प्रमुख नेताओं को डिनर पार्टी दे रही हैं, जिसमें वे लोकसभा चुनाव के लिए गठजोड़ की संभावनाओं की तलाश करेंगी. 16 मार्च से दिल्ली में कांग्रेस का पूर्ण अधिवेशन भी होना है, जिसमें नये अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी टीम बनायेंगे और इस अधिवेशन में डिनर पार्टी में बनी संभावनाओं पर प्रमुखता से चर्चा की जाएगी.
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यानी यह बहुत स्पष्ट है कि राज्यों में लगातार हार से बेजार कांग्रेस को आगामी चुनावों के मद्देनजर राज्यों में मजबूत सहयोगियों की जरूरत है. झारखंड में उसके लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा से अधिक मजबूत राजनीतिक सहयोगी कोई और दल हो नहीं सकता और आगामी चुनावों में इन दोनों दलों का मजबूत गठजोड़ भाजपा के लिए चुनौती खड़ा कर सकता है.
कांग्रेस की इस जरूरत व कमजोर राजनीतिक स्थिति के बावजूद झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन को उस पर भरोसा नहीं है. उन्होंने कहा है कि कई बार कांग्रेस झामुमो के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का वादा कर मुकर गयी है, ऐसे में हेमंत को उसके साथ लिखित समझौता करना चाहिए. हालांकि राजनीति में लिखित समझौता जैसी कोई बात नहीं होती है और वह चुनावी जरूरतों व सदन में संख्या बल की जरूरत दो ही चीजों से प्रमुखता से संचालित होती है और चीजें मिनटों में बदल जाती हैं. ऐसे में ऐसे किसी लिखित समझौते का कोई मायने नहीं होता है.उत्तरप्रदेश में छह-छह महीने में मुख्यमंत्री बदलने का भाजपा व बसपा में किसी जमाने में समझौता हुआ था तो क्षण भर में टूट गया था.
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बहरहाल, शिबू सोरेन की नाराजगी के पुराने कारण हैं. पिछले चुनाव में भी कांग्रेस व झामुमो का गंठबंधन नहीं हुआ था. गंठबंधन होने पर संभवत: उन्हें सीटों का लाभ हो पाता और भाजपा-आजसू गठजोड़ की बढ़त को कम करने में मदद मिलती. पिछले दिनों हेमंत सोरेन ने चारा घोटाले में रांची के जेल मेंं बंद राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से भी मुलाकात की थी और उस समय भी यह खबर आयी थी कि महागंठबंधन बनाने पर चर्चा चल रही है. उस समय हेमंत ने अपने बयान में कहा था कि लालू जी उनके वरिष्ठ हैं और उन्होंने साथ काम कर भाजपा को उखाड़ फेंकने की नसीहत उन्हें दी है.
यानी पिता से उलट हेमंत सोरेन व्यवहारिक राजनीतिक की डोर पकड़ कर चल रहे हैं, जो मौजूदा गंठबंधन की राजनीति में सबसे अहम है. हेमंत को यह भी अहसास है कि कांग्रेस को अभी उनकी अधिक जरूरत है, हालांकि यह देखना होगा कि वे राज्यसभा सीट कांग्रेस के लिए छोड़ते हैं या नहीं. झारखंड विधानसभा में झामुमो बड़ी पार्टी है, उसके पास 18 सीटें हैं, कांग्रेस के पास छह सीटें हैं और बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो के पास दो सीटें हैं. भाजपा-आजसू गठबंधन के पास 48 सीटें हैं. 81 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा के सदस्य राज्यसभा की दो सीटों के लिए उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेगी. ऐसे में विपक्ष की एक सीट पर बेहद मजबूत दावेदारी बनती है, इसके लिए उनकी एकजुटता सबसे जरूरी है. हालांकि यहां विपक्षी एकजुटता बार-बार टूटती रही है. विपक्षी एकजुटता की संभावनाओं पर भाजपा की भी नजर है और वह वेट एंड वॉच की रणनीति पर काम कर रही है. वह विपक्ष को देख कर ही एक या दो सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला करेगी और राज्यसभा चुनाव में विपक्ष अपनी झोली में एक सीट अगर हासिल कर लेता है तो उनका आपसी विश्वास भी बढ़ेगा और वह भविष्य में मजबूत गठबंधन में भी रूपांतरित हो सकता है.
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