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जब व्लादिमीर लेनिन की समाधि पर पहुंचे थे भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी

क्या वैचारिक लड़ाई भौतिक प्रतीकों को नष्ट किये बिना नहीं लड़ी जा सकती है? अगरतल्ला : त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी ने 25 साल पुराने वाम किले को ध्वस्त कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जोरदार चुनाव प्रचार अभियान, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के जबरदस्त नेतृत्व एवं राम माधव, सुनील देवधर और प्रदेश भाजपा के […]


क्या वैचारिक लड़ाई भौतिक प्रतीकों को नष्ट किये बिना नहीं लड़ी जा सकती है?

अगरतल्ला : त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी ने 25 साल पुराने वाम किले को ध्वस्त कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जोरदार चुनाव प्रचार अभियान, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के जबरदस्त नेतृत्व एवं राम माधव, सुनील देवधर और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बिप्लव कुमार देव की आक्रामक रणनीति के सामने विपक्ष कहीं टिका नहीं. लेकिन, इस जीत के बाद प्रदेश के कई हिस्सों में हिंसक स्थिति बन गयी है. राजधानी अगरतल्ला से 90 किलोमीटर दूर वाम विचारक व रूसी समाजवादी क्रांति के अगुवा ब्लादिमीर लेनिन 11.5 फीट ऊंची फाइबर की प्रतिमा को कथित रूप से भाजपा कार्यकर्ताओं ने गिरा दिया और वाम विरोधी व भारत माता की जय के नारे लगाये गये.दक्षिण त्रिपुरा के बेलोनिया में सोमवार दोपहर लेनिन की प्रतिमा ढहाई गयी.

दरअसल, भाजपा के लिए त्रिपुरा में चुनावी जीत हासिल करना सिर्फ एक छोटे राज्य में पहली बार सरकार बनाने का मौका मिलना नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक गहरे इसके मायने हैं. भारतीय जनता पार्टी ने सीधे तौर पर आजादी के बाद किसी वाम विचाराधारा वाली सरकार को उखाड़ फेंका है और उससे उसकी वैचारिक लड़ाई दशकों पुरानी है. हिंदुस्तान में तीन ही जगहों पर वाम का प्रभाव माना जाता रहा है: पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा. वाम से वैचारिक लड़ाई के इस क्रम में भाजपा का अगला निशाना पश्चिम बंगाल व केरल है. इसका एलान अमित शाह ने चुनाव परिणाम आने के बाद भी किया है.

लेकिन, एक बड़ा सवाल है कि क्या वैचारिक लड़ाई को इस स्तर तक ले जाया जा सकता है कि एक-दूसरे के विचार पुरुषों व बड़े नेताओं की प्रतिमा को ध्वस्त करदिया जाये?क्या वैचारिक लड़ाईभौतिक प्रतीकों पर हमलाकिये बिना नहीं लड़ी जा सकती है? भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. वे भाजपा के पूर्व संस्करण जनसंघ के भी संस्थापक सदस्य थे. भाजपा की लंबी राजनीतिक यात्रा में उनका संभवत: सबसे बड़ा योगदान है. अटल बिहारी वाजपेयी अपनी उदारता व विरोधी विचारों के सम्मान के लिए भी जाने जाते हैं, भले वे उससे असहम हों. उन्होंने अपनी कार्यशैली में हमेशा इसे प्रकट भी किया.

साल 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी तत्कालीन प्रधानमंत्री मोराजी देसाई के साथ विदेश मंत्री के रूप में रूस की यात्रा पर गये थे. तब वे लेनिन ब्लादिमीर की समाधि पर भी गये थे. वाजपेयी अपने विचारों को अपनी खास शैली में रखते थे. पीकेबुद्धवार ने अपनी पुस्तक ए डिप्लोेमेट रिवील में तब के एक प्रसंग का उल्लेख किया है – वाजपेयी ने वहां कहा था हम में और रसियन में अंतर क्या है, हम शिव की पूजा करते हैं और ये शव की.

दरअसल, 24 जनवरी 1924 में निधन के बाद लेनिन ब्लादिमीर का अंतिम संस्कार नहीं किया गया था. उनका शव आज भी मॉस्को के रेड स्कवॉयर में रखा हुआ है. वह व्यक्ति 20वीं सदी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले लोगों में शामिल थे और रूस सहित दुनिया में बड़ी संख्या में उनके अनुयायी थे. अटल जी ने अपनी बात इसी संदर्भ में कही थी.

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