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व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में जाति से जुड़ी कड़वी यादों को बता रहे हैं बिहार कांग्रेस के यह नेता, पढ़ें

पटना : बिहार प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. अशोक चौधरी अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद लगातार पार्टी से इतर जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सपोर्ट में बयान देते रहे हैं. लगातार सुर्खियों में रहने वाले अशोक चौधरी इन दिनों अपनी बात सीरीज के माध्यम से सोशल मीडिया पर […]

पटना : बिहार प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. अशोक चौधरी अध्यक्ष पद से हटाये जाने के बाद लगातार पार्टी से इतर जाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सपोर्ट में बयान देते रहे हैं. लगातार सुर्खियों में रहने वाले अशोक चौधरी इन दिनों अपनी बात सीरीज के माध्यम से सोशल मीडिया पर अपनी बात रख रहे हैं. दूसरी कड़ी में उन्होंने व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में हुए जाति को लेकर कड़वे अनुभवों को शेयर करते हुए लोगों से अपील की है कि इसे जड़ से खत्म करना होगा. अशोक चौधरी ने लिखा है कि प्रिय दोस्तों, सोशल मीडिया के इस मंच के माध्यम से मैंने विभिन्न विषयों पर ‘अपनी बात’ सीरीज के तहत आप लोगों से चंद सार्थक संवाद करने का प्रयास किया है. इसी कड़ी में मैं आज आप लोगों से संवाद करुंगा कि कैसे हम सब मिलकर एक जाति विहीन समाज का निर्माण कर सकते हैं.

उन्होंनेआगे लिखा है कि जहां कम से कम जाति के नाम पर भेदभाव न हो. दोस्तों, जब मैं बहुत छोटा था और स्कूल में पढ़ता था तो ये नही जानता था कि बेंच पर मेरे बगल में बैठा मेरा सहपाठी किस जाति का है या किस धर्म का है, मैं सिर्फ यही जानता था कि ये मेरा दोस्त है. कभी मेरे क्लास का दोस्त मेरे साथ मेरे घर भी आता तो पिताजी या माताजी उसका परिचय पूछते तो हम यही कहते थे कि मेरा दोस्त है. मैं ये कहना चाहता हूं कि ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं होगी बल्कि हम सबों की होगी. हमलोगों में किसी ने भी स्कूल में दोस्त बनाते समय उसकी जाति नही पूछी होगी. लेकिन जब हम कॉलेज पहुंचे तो हमें थोड़ा थोड़ा महसूस होने लगा और जब हम राजनीति में आये, तो हमारे लोग हमारे सामने ही किसी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र का पूरा जातिगत आंकड़ा ही सामने रख दिये.

उन्होंनेआगे लिखा है कि तब मुझे महसूस हुआ कि जाति ने किस कदर हमारे समाज में अपनी जड़ें जमा रखी है। आज का हालत तो ऐसा हो गया है कि गांव के किसी विद्यालय की शिक्षा समिति से लेकर विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनावों में भी जाति हावी रहती है. राजनीतिक पार्टियां भी किसी चुनाव क्षेत्र से टिकट देने में जातिगत आंकड़ा को ही सर्वोपरि रखती है. किसी क्षेत्र में अगर चुनाव हो रहा है तो अखबार में ये छपते रहता है कि उस क्षेत्र में किस जाति का कितना वोट है. अब तो कई राष्ट्रीय समाचार चैनलों तक पर जातिगत आंकड़े दिखाये जाने लगे हैं, जो समाज के लिए बिल्कुल सही नहीं है.


उन्होंने आगे अपील करते हुए लिखा है कि ऐसे जातिगत आंकड़ों का विपरीत प्रभाव चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों या चुनाव जीतकर बने जनप्रतिनिधि पर पड़ता है. उसके साथ एक जातिगत गिरोह जुड़ जाता है जो उसकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाता है और समाज का भी खासा नुकसान करता है, साथ ही इसका असर विकास कार्यों पर भी पड़ता है.आज जरूरत है इसे बदलने की. कुछ लोग ये जरूर कह सकते हैं कि आप सत्ता में नहीं हैं तो ऐसी बात क्यों याद आ रही है. मैं कहता हूं कि ये बात सत्ता या विपक्ष की नहीं है, ये बात हमारी और आपकी है.

हमारे और आपके बच्चों की है, उनके बेहतर भविष्य की है. क्या हमें एक ऐसे समाज के निर्माण की दशा में आगे नहीं बढ़ना चाहिए जहां कम से कम जाति के आधार पर कोई भेदभाव न हो. इसके लिए हमारी युवा पीढ़ी को जाति धर्म के बंधन से ऊपर उठकर होना होगा, उन्हें इसकी पहल करनी होगी. उन्हें ये भी देखना होगा कि आज भी समाज के किन वर्गों की हालत में खास सुधार नहीं हुआ है, क्यों कई दलित गांव आज भी विकास की रोशनी से दूर दिखायी देते हैं, क्यों आज भी उनका जीवन स्तर, रहन सहन नहीं बदला. इन सब के लिए हमारी युवा पीढ़ी आगे आएं और जाति विहीन समाज के लिए प्रयास करें. सरकारें तो काम करेंगी ही, पहले भी करती रही है और आगे भी करेगी लेकिन असली बदलाव आम लोगों की सहभागिता से ही आयेगा.

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