नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज सवाल किया कि क्या दो वयस्कों के बीच सहमति से हुये विवाह के मुद्दे की सतत् चलने वाली जांच का आदेश दिया जा सकता है और क्या लव जिहाद की कथित शिकार हदिया की शादी निरस्त करने का केरल उच्च न्यायालय का निर्णय न्यायोचित था.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने केरल में धर्मान्तरण के मामले पर हो रही सुनवाई के दौरान ये सवाल पूछे. पीठ ने कहा, ‘‘हमें यह बात परेशान कर रही है कि क्या विवाह के लिये सहमति से तैयार हुये दो वयस्कों के बीच, सहमति के मुद्दे पर सतत् चलने वाली जांच का आदेश दिया जा सकता है पीठ ने कहा कि यह एक कानूनी सवाल है कि क्या ऐसे विवाह को उच्च न्यायालय द्वारा निरस्त करना न्यायोचित है.
पीठ ने कहा, ‘‘विवाह और जांच दो अलग अलग मुद्दे हैं। जहां तक विवाह का सवाल है तो इसमें किसी जांच की जरूरत नहीं है। जांच का इससे कुछ लेना देना नहीं है. आप बाकी सबकी जांच कर सकते है.’ कथित लव जिहाद विवाद का केन्द्र बनी 25 वर्षीय हदिया ने मंगलवार को न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर दावा किया था कि उसने अपनी इच्छा से इस्लाम कबूल किया है और वह अपने पति शफीन जहां के साथ रहना चाहती है. शफीन ने हदिया के साथ उसका विवाह निरस्त करने और उसे अपने माता पिता की हिरासत में भेजने संबंधी केरल उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 27 नवंबर को हदिया को उसके माता पिता के यहां से आजाद करते हुये उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये कालेज भेज दिया था. हदिया के पिता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि यह एक कमजोर वयस्क का मामला है और उच्च न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करके विवाह निरस्त करना न्यायोचित था.
उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में अदालतों के अधिकार क्षेत्र से इसे बाहर रखने के लिये ही विवाह की आड़ ली गयी है.’ हदिया ने लव जिहाद के नाम पर उसका विवाह निरस्त करने के उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया था. शीर्ष अदालत ने, इससे पहले, राष्ट्रीय जांच एजेन्सी को कुछ महिलाओं का कथित रूप से धर्मान्तरण कराने के ‘तरीके’ की जांच का आदेश दिया था। लेकिन बाद में उसने इस महिला को बुलाने और उससे बात करने का निश्चय किया. इस महिला ने उस समय न्यायालय से अपनी आजादी की गुहार की.
शीर्ष अदालत ने 23 जनवरी को स्पष्ट कर दिया था कि राष्ट्रीय जांच एजेन्सी हदिया और शफीन के विवाह के मामले की जांच नहीं कर सकती है.