मुंबई : सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में पुलिस अधिकारियों को आरोप मुक्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर प्रतिदिन सुनवाई प्रारंभ करने के लगभग दो सप्ताह बाद बंबई हार्इकोर्ट ने बुधवार को कहा कि सीबीआई अदालत की माकूल सहायता नहीं कर पा रही. इस वजह से एजेंसी के इस पूरे मामले को लेकर अभी भी स्पष्टता नहीं है. न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कहा कि सीबीआई आरोप मुक्त किये गये लोगों के खिलाफ सभी साक्ष्यों को रिकॉर्ड में रखने में विफल रही.
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न्यायमूर्ति ने कहा कि अभियोग लगाने वाली एजेंसी का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह अदालत के समक्ष सभी साक्ष्यों को रखे, लेकिन इस मामले में अदालत द्वारा कई बार पूछने पर भी सीबीआई ने केवल उन्हीं दो अधिकारियों की भूमिका के बारे में बहस की, जिन्हें आरोपमुक्त करने को उसने चुनौती दी है. न्यायमूर्ति ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पूरे मामले को लेकर अभी भी अस्पष्टता है, क्योंकि मुझे सीबीआई की ओर से पर्याप्त मदद नहीं मिल रही.
अदालत ने अब सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज किये गये सभी गवाहों के बयानों की जानकारी पेश करे. मामले में सुनवाई नौ फरवरी को शुरू हुई थी. तब से अदालत ने जब भी आरोप पत्र, गवाहों के बयान, मामले से संबंधित पत्र जो जब्त किये गये हैं, ऐसे कोई भी दस्तावेज मांगे तब से सीबीआई ने बार-बार यही कहा कि उसके पास ये कागजात नहीं हैं. एजेंसी ने दस्तावेज जुटाने के लिए वक्त मांगा.
सोहराबुद्दीन और कौसर बी को गुजरात पुलिस ने नवंबर, 2005 में कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था, जबकि उनके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को गुजरात और राजस्थान पुलिस ने दिसंबर, 2006 में एक अन्य कथित फर्जी मुठभेड़ में मार दिया था. सीबीआई ने इस मामले में 38 लोगों को आरोपी बनाया था. इनमें से 15 को अगस्त, 2016 से सितंबर, 2017 के बीच मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने आरोप मुक्त कर दिया था. इनमें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा, राजकुमार पांडियान, दिनेश एमएन और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शामिल हैं.