विश्व सिनेमा
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सैनिकों के प्रति कलात्मक श्रद्धांजलि
विश्व सिनेमा प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों ने ब्रिटेन की ओर से फ्रांस-बेल्जियम पर जर्मन सेनाओं को करारा जवाब दिया था. उसी घटना पर बनी फिल्म ‘फेयरवेल माय इंडियन सोल्जर’ उन भारतीय सैनिकों के प्रति एक कलात्मक श्रद्धांजलि है. य ह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि यूरोप के दो आप्रवासी भारतीयों ने प्रथम […]
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों ने ब्रिटेन की ओर से फ्रांस-बेल्जियम पर जर्मन सेनाओं को करारा जवाब दिया था. उसी घटना पर बनी फिल्म ‘फेयरवेल माय इंडियन सोल्जर’ उन भारतीय सैनिकों के प्रति एक कलात्मक श्रद्धांजलि है.
य ह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि यूरोप के दो आप्रवासी भारतीयों ने प्रथम विश्व युद्ध के सौ साल पूरे होने पर रंगमंच और सिनेमा के माध्यम से भारतीय सैनिकों के योगदान को याद किया है. सौ साल पहले प्रथम विश्व युद्ध में करीब डेढ़ लाख भारतीय सैनिकों ने ब्रिटेन की ओर से फ्रांस-बेल्जियम पर जर्मन सेनाओं के आक्रमण का करारा जवाब दिया था.
लंदन की मीरा मिश्रा कौशिक ने एक साल की सघन तैयारी के बाद लहना सिंह के विलक्षण प्रेम-त्याग और बलिदान की अमर कहानी- उसने कहा था (चंद्रधर शर्मा गुलेरी, 1915) की यादगार नाट्य-फिल्म प्रस्तुति का उपहार दिया है. सन् 1888 के अमृतसर से शुरू होकर 1915 के बेल्जियम की युद्ध भूमि तक की प्रेम-कथा को निर्देशक गैरी क्लार्क और उनकी टीम ने बिना किसी संवाद के अद्भुत देह-गतियों, फिल्म और संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया है. विद्या पटेल (सरदारनी) और सुभास विमान गोरानिया (लहना सिंह) का मौन अभिनय बिना कुछ बोले बहुत कुछ कह जाता है. यह जादुई प्रस्तुति हमें इतिहास से परे मानवीय प्रेम की पराकाष्ठा तक ले जाती है, जिसकी आज के हिंसक समय में बहुत जरूरत है.
पेरिस (फ्रांस) में रहनेवाले भारतीय फिल्मकार विजय सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस-बेल्जियम में लड़नेवाले करीब डेढ़ लाख भारतीय सैनिकों की याद में ‘फेयरवेल माय इंडियन सोल्जर्स’ नाम से विलक्षण फिल्म बनायी है. यह फिल्म प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान को याद करने की पहली गैर-यूरोपीय कोशिश है, जो भारतीय नजरिया पेश करती है. डेढ़ लाख भारतीय सैनिकों में अनेक के रिश्ते फ्रेंच महिलाओं से बने और उनके बच्चे हुए. अधिकतर सैनिक अपनी अविवाहित पत्नियों-बच्चों को छोड़कर वापस लौट गये. करीब दस हजार भारतीय सैनिक वापस नहीं लौटे और यहीं बस गये.
विजय ने फ्रांस, बेल्जियम, इंग्लैंड और भारत के अभिलेखागार से कई दुर्लभ दस्तावेजों, वीडियो फुटेज और डाॅक्यूड्रामा के सहारे यह कहानी कही है. उन्होंने न सिर्फ सौ साल पुराने उस युद्ध गीत को जिंदा किया है, बल्कि उन सैनिकों के करीब 600 पत्रों को भी आधार बनाया है. इन पत्रों में सैनिकों ने अपने अनुभव लिखे हैं. उन सैनिकों के रोमांस की कहानियों में एक बात चुभती है कि इससे पैदा हुए अधिकतर बच्चे पिता-विहीन रह जाते हैं. यह देखना विस्मयकारी है कि गुलाम देश से गये ये सैनिक जब गोरी महिलाओं से प्रेम करते थे, तो वे लिखते थे कि फ्रांस तो स्वर्ग है.
इन सैनिकों ने यहां के जीवन मूल्यों (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व) से बहुत कुछ सीखा. विभिन्न जाति-धर्मों वाले सैनिकों को खाना खिलाना वहां के अधिकारियों के लिए बड़ी समस्या थी. फ्रेंच औरतों ने जिस तरह उनका खयाल रखा, वह उनके लिए दुर्लभ था. फिल्म बताती है कि भारतीय सैनिकों ने पहली बार अपनी जिंदगी में मानवीय बराबरी और गरिमा का पाठ सीखा, शिक्षा का महत्व समझा. हम यह भी देखते हैं कि भारतीय सैनिकों से पैदा हुए फ्रेंच बच्चों को अपने समाज में भारी अलगाव सहना पड़ा था. ‘फेयरवेल माय इंडियन सोल्जर’ उन भारतीय सैनिकों के प्रति कलात्मक श्रद्धांजलि है, जो लौट के घर ना आये.
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