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मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने कहा – हम भारत, चीन के बीच कोई टकराव नहीं चाहते

बेंगलुरु : निर्वासन में चल रहे मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने आज कहा कि आपातकाल से गुजर रहा उनका देश भारत और चीन के बीच कोई दुराव नहीं चाहता. उन्होंने यहां ‘द हिंदू पब्लिकेशन’ द्वारा आयोजित विचार मंथन ‘द हडल’ में बातचीत के दौरान कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि भारत एवं चीन बिलकुल […]

बेंगलुरु : निर्वासन में चल रहे मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने आज कहा कि आपातकाल से गुजर रहा उनका देश भारत और चीन के बीच कोई दुराव नहीं चाहता. उन्होंने यहां ‘द हिंदू पब्लिकेशन’ द्वारा आयोजित विचार मंथन ‘द हडल’ में बातचीत के दौरान कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि भारत एवं चीन बिलकुल ही एक दूसरे के विरुद्ध न हों.” चीन ने यह कहते हुए मालदीव में किसी भी सैन्य हस्तक्षेप का विरोध किया था कि ऐसे कदम से स्थिति और बिगड़ जाएगी. चीन के इस बयान से महज एक दिन पहले नशीद ने मालदीव में राजनीतिक संकट के समाधान के लिए भारत की मदद मांगी थी.

मालदीव में जब सुप्रीम कोर्ट ने नौ विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा करने का आदेश दिया था तब हिंद महासागर का यह देश राजनीतिक अराजकता के दलदल में फंस गया. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ये सुनवाईयां राजनीति से प्रेरित एवं त्रुटिपूर्ण थीं. नशीद से जब पूछा गया कि क्या मालदीव भारत और चीन के बीच संबंधों में तनाव का मुख्य कारण बन सकता है तो उन्होंने कहा कि उनके देश का विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों भारत और चीन के लिए बड़ा महत्व है क्योंकि दोनों ऊर्जा आयात के लिए निर्भर हैं.
उन्होंने चीन के बारे में कहा,‘‘हम चीन को पसंद करते हैं. मेरे मन में उसके विरुद्ध कुछ भी नहीं है. लेकिन हम जो कह रहे हैं वह यह है कि वह राज्य-शासन कला में बदलाव का प्रयास न करें, गुप्त ढंग से अपना पैसा न लगाएं, पारदर्शिता रखें और लोकतांत्रिक निगरानी रखें, चीजें सही हो जाएंगी. यही हम कह रहे हैं. हम कोई चांद तारे नहीं मांग रहे.
” निर्वासन में फिलहाल श्रीलंका में रह रहे नशीद ने कहा, ‘‘मैं हमेशा करता रहा हूं कि हिंद महासागर में शीत युद्ध जन्म ले रहा है और हमें उसकी फिक्र होनी चाहिए. हम उनके बीच दब नहीं सकते. हमें भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए क्योंकि उसके बाद हमारा घर है.” नशीद ने पहले ट्वीट किया था कि मालदीव में राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा हिरासत में लिये गये न्यायाधीशों एवं राजनीतिक दलों के नेताओं की रिहाई के वास्ते भारत को अपनी सेना के समर्थन से एक दूत भेजना चाहिए.

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