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बोलीं राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू- आदिवासियों की मांगों पर देना होगा ध्यान

पीरटांड़/मधुबन : मरांगबुरु पारसनाथ आदिवासियों के लिये प्रसिद्ध पूजा स्थल है. मरांगबुरु को हिमालय भी कहा जाता है, जहां भगवान शिव निवास करते हैं. इसलिए यहां का सर्वांगीण विकास होना चाहिए. उक्त बातें राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कही. वह शुक्रवार को मधुबन स्थित हटिया मैदान में सावंता सुसार बैसी द्वारा आयोजित बाहा पोरोब कार्यक्रम को […]

पीरटांड़/मधुबन : मरांगबुरु पारसनाथ आदिवासियों के लिये प्रसिद्ध पूजा स्थल है. मरांगबुरु को हिमालय भी कहा जाता है, जहां भगवान शिव निवास करते हैं. इसलिए यहां का सर्वांगीण विकास होना चाहिए. उक्त बातें राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कही. वह शुक्रवार को मधुबन स्थित हटिया मैदान में सावंता सुसार बैसी द्वारा आयोजित बाहा पोरोब कार्यक्रम को संबांधित कर रही थीं.
इससे पूर्व उन्होंने कार्यक्रम का उद‍्घाटन किया. राज्यपाल ने कहा कि आदिवासियों की ये आदत है कि किसी भी काम के लिये बार-बार नहीं बोलते हैं. किसी को परेशान करना आदिवासियों की प्रकृति नहीं है. इसलिए इनकी मांगों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. मांझीथान, जाहेरथान जाने के लिये सड़क भी बननी चाहिए. इस क्षेत्र में आदिवासी समाज के लिये बड़े भवन का भी निर्माण होना चाहिए. कहा कि मधुबन में कला केंद्र के लिये प्राक्कलित राशि को बढ़ाना हाेगा. जिस स्थान पर आदिवासियों का सरना स्थल है उस जमीन को छीनने का प्रयास नहीं होना चाहिए.
शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहे आदिवासी समाज
राज्यपाल कहा कि शिक्षा व स्वस्थ शरीर से ही समाज का सुमचित विकास हो सकता है. इसलिए आदिवासी समाज को शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की जरूरत है. कहा कि कई माताओं को पौष्टिक आहार नहीं मिलता है, इससे बच्चे भी कुपोषित या कमजोर जन्म लेते हैं, इस पर सरकारी संस्थाओं को भी ध्यान देने की जरूरत है.
कहा कि सरकार जिन 400 कल्याणकारी योजनाओं को चलाने की बात कह रही है उसका संचालन गांवों में होना चाहिए तभी पिछड़ापन दूर होगा. कहा कि अतिपिछड़ों, गरीबों का समुचित विकास होने पर ही सबका साथ-सबका विकास का सपना पूरा हो सकता है.
प्रकृति की पूजा करते हैं आदिवासी
श्रीमती मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति की पूजा करता है. वसंत ऋतु इस समाज के लिये काफी पवित्र है. इस नूतन वर्ष में आदिवासी लोगों को जिंदगी देनेवाले पेड़-पौधों की पूजा कर नाचते-गाते अपने देवता को खुश करते हैं. समय के साथ कुछ बदलाव की जरूरत है. उन्होंने संथाली भाषा में भी कार्यक्रम को संबोधित किया.

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