नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज पूछा कि कोई दोषी व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी कैसे हो सकता है और वह चुनावों के लिए उम्मीदवार कैसे चयनित कर सकता है क्योंकि यह चुनावों की ‘‘शुचिता” सुनिश्चित करने के उसके एक फैसले की भावना के विपरीत है. शीर्ष अदालत एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दोषियों पर राजनीतिक दल बनाने तथा उसमें पदाधिकारी बनने से जब तक रोक लगाने का अनुरोध किया गया था जब तक वे चुनाव संबंधी कानून के तहत अयोग्य हैं.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘‘कोई दोषी व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी कैसे हो सकता है और वह चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों का चयन कैसे कर सकता है? यह हमारे उस फैसले के खिलाफ जाता है जिसमें कहा गया था कि चुनावों की शुचिता से राजनीति के भ्रष्टाचार को हटाया जाना चाहिए.” पीठ ने कहा, ‘‘विधि संबंधी मूल सवाल” यह है कि दोषी ठहराये जाने के बाद कोई नेता चुनावी राजनीति से प्रतिबंधित है लेकिन पार्टी का पदाधिकारी होने के नाते वह एजेंटों के जरिये चुनाव लड़ सकता है.
पीठ ने सवाल किया, ‘‘क्या ऐसा है कि जो आप व्यक्तिगत रूप से नहीं कर सके , उसे आप अपने एजेंटों के जरिये सामूहिक रूप से कर सकते हैं?” पीठ ने कहा कि सवाल यह है कि क्या ऐसे लोग कोई राजनीतिक दल बनाकर अन्य के जरिये चुनाव लड़ सकते हैं. केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि वह याचिका का जवाब दायर करेंगी और उन्होंने इसके लिए दो हफ्ते का समय मांगा जिसे अनुमति दे दी गयी.
पीठ भाजपा नेता अश्विनी के उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दोषियों के राजनीतिक दल बनाने और अयोग्यता की अवधि के दौरान पदाधिकारी बनने पर रोक का अनुरोध किया गया है.