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उचित उपचार से ठीक हो सकते हैं मिरगी के 60 फीसदी मरीज, जानें क्या एहतियात है जरूरी
मिरगी रोग का पता 3000 साल पहले लग चुका था, लेकिन इसे लेकर आज भी लोगों के मन में गलत धारणाएं हैं, जिस कारण रोगी को सही उपचार नहीं मिल पाता. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 95 फीसदी मिरगी के मरीजों को कोई उचित उपचार नहीं मिलता है. खास कर ग्रामीण […]
मिरगी रोग का पता 3000 साल पहले लग चुका था, लेकिन इसे लेकर आज भी लोगों के मन में गलत धारणाएं हैं, जिस कारण रोगी को सही उपचार नहीं मिल पाता. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 95 फीसदी मिरगी के मरीजों को कोई उचित उपचार नहीं मिलता है. खास कर ग्रामीण इलाकों में लोग इसे भूत-प्रेत का साया समझते हैं और सही इलाज करवाने के बजाय झाड़-फूंक करवाने लगते हैं. यहां तक कि मिरगी के मरीज को पागल ही समझ लेते हैं, जो गलत है.
विशेषज्ञों के मुताबिक मिरगी का मरीज पागल नहीं होता, उसकी शारीरिक प्रक्रिया सामान्य होती है. वह शादी करने के योग्य होता है और संतान को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखता है, मगर रोगी को डॉक्टर के मार्गदर्शन में रहना होता है. लोगों में इसी भ्रम को दूर करने के लिए दुनियाभर में (12 फरवरी) अंतरराष्ट्रीय एपिलेप्सी दिवस मनाया जाता है.
क्या है रोग व कारण : वस्तुत: अपस्मार या मिर्गी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के कारण होती है. यह मस्तिष्क के विकार के कारण होती है. यानी मिरगी का दौरा पड़ने पर शरीर अकड़ जाता है, जिसे अंग्रेजी में सीजर डिसॉर्डर भी कहते हैं. मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है, लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगती है, तब मस्तिष्क के काम में समस्या आनी शुरू हो जाती है.
मरीज़ को जब दौरा पड़ता है, तब उसका शरीर अकड़ जाता है, वह बेहोश हो जाता है, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाते हैं आदि. वैसे तो इस रोग के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे- सिर पर किसी प्रकार का चोट लगना, जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर, ब्रेन ट्यूमर, दिमागी बुखार और इन्सेफेलाइटिस के इंफेक्शन, ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुंचना. इसके दौरे को बढ़ाने में कम सोना, शराब का सेवन, तनाव या मासिक धर्म चक्र से संबंधित हार्मोनल परिवर्तन शामिल हैं.
पटना के कौशल्या न्यूरो सेंटर के डॉ अखिलेश सिंह बताते हैं कि यह एक नियंत्रण योग्य न्यूरोलॉजिकल बीमारी है. हम देखते हैं कि 30 प्रतिशत मामलों में यह मस्तिष्क में संक्रमण से होती है, पर इलाज संभव है, जैसे आज तपेदिक का पूरी तरह से इलाज संभव है. जबकि 60 प्रतिशत मामलों में बीमारी पूरी तरह से नियंत्रित हो सकती है. मगर अनदेखी खतरनाक है.
क्या एहतियात है जरूरी
ड्रग्स, शराब आदि हर नशे से बचें.
अपने डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाएं समय से लें.
तेज रोशनी या दृश्यात्मक उत्तेजनाओं से बचें.
टीवी, कंप्यूटर पर देर तक न बैठें.
तनाव से दूर रहें व खाने-पीने की वस्तुओं में स्वच्छता का ध्यान रखें.10 से 20 वर्ष तक के बच्चे इस रोग के लिए जिम्मेवार न्यूरोसाइटिसेरोसिस रोग की चपेट में आते हैं. जमीन के अंदर होनेवाली सब्जियों को अच्छे से धुले बिना सेवन करने से वे संक्रमित हो सकते हैं.
दवाइयों का लगातार सेवन है जरूरी
डॉ नितीश कुमार
न्यूरो सेंटर
राजेंद्र नगर, पटना
एपिलेप्सी (मिरगी) एक इलेक्ट्रो क्लिनिकल सिंड्रोम है. सीटी एवं एमआरआई (मस्तिष्क) का उपयोग कर इलेक्ट्रो एन्सेफलोग्राफी (ईईजी) और न्यूरो इमेजिंग द्वारा इसका उपचार किया जाता है. मिरगी को सस्ती दवाइयों के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है. पूरे इलाज में करीब दो साल तक का समय लग सकता है, इसलिए दवाइयों का लगातार सेवन जरूरी है. दवा का सेवन कम करने या रोक देने से शिकायत फिर शुरू हो जाती है.
जब दवाइयां सही परिणाम देने में विफल हो जाती हैं, तो मरीज को सजर्री की सलाह दी जाती है. सजर्री का लाभ यह होता है कि मिरगी का अटैक कम हो जाता है. यह होनेवाले न्यूरोलॉजिकल नुकसान को रोकता है और कुछ मामलों में तो रोगी जीवनभर के लिए दवा लेने से मुक्त हो सकता है. लोग सोचते हैं कि यह बच्चों की बीमारी है, जबकि ऐसा नहीं है.
जब वही बच्चा युवा होता है, तो बीमारी जीवनभर तक पीछा नहीं छोड़ती. इलाज की अनदेखी से जो लोग ऊंची इमारतों, पानी के निकट काम करते हैं, दौरा पड़ने पर दुर्घटना में उनकी जान जा सकती है. मिरगी को लेकर सामाजिक कलंक को भी हटाया जाना चाहिए.
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