नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में होने वाली भैंसों की दौड़ ‘‘कंबाला” के आयोजन पर अंतरिम रोक लगाने से आज इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि पशु अधिकार इकाई ‘‘पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स” (पेटा) की याचिका पर 12 मार्च को अंतिम सुनवाई की जायेगी. पेटा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि कंबाला को अनुमति देने वाले राज्य के अध्यादेश की अवधि समाप्त हो गई है और वर्तमान में भैंसों की दौड़ की कोई कानूनी मंजूरी नहीं है.
त्योहार के लिए रास्ता बनाने की खातिर राज्य के मंत्रिमंडल ने पिछले साल 28 जनवरी को पशुओं पर क्रूरता की रोकथाम कानून (1960 का केंद्रीय कानून 59) में संशोधन का निर्णय किया था उत्तर कर्नाटक और उडूपी तथा दक्षिण कन्नड़ के तटीय जिलों में भैंसा गाड़ी दौड़ होती है. इसे कंबाला दौड़ कहा जाता है. इसका आयोजन नवंबर से मार्च के बीच किया जाता है. इसमें दो भैंसों को एक हल के साथ बांध दिया जाता है और एक व्यक्ति उनको हांकता है.
प्रतियोगिता में इन भैंसा गाड़ियों को समानांतार ट्रैक पर दौड़ाया जाता है और सबसे तेज दौड़ने वाली भैंसा गाड़ी विजेता होती है. माना जाता है कि इस दौड़ के माध्यम से अच्छी फसल के लिए ईश्वर को प्रसन्न किया जाता है. पेटा ने पशुओं के साथ क्रूरता का हवाला देते हुए आगामी कंबाला आयोजन का विरोध किया है.
इस खेल पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध करते हुए पेटा ने कहा है कि आंदोलनकारी जल्लीकट्टू समर्थकों की देखादेखी ऐसा कर रहे हैं. पूर्व में, एक अन्य पशु अधिकार निकाय ‘‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एनीमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन्स” (एफआईएपीओ) ने सुप्रीम कोर्ट न्यायालय में याचिका दायर कर उस विधेयक को चुनौती दी थी जिसमें कर्नाटक में परंपरागत भैंसा दौड़ को कानूनी रूप दिये जाने का प्रावधान है.