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एचइसी का निजीकरण क्यों

एचइसी को मदर कंपनी के नाम से भी जाना जाता है. एचइसी ने कई दशकों से देश के निर्माण में अपना अतुलनीय सहयोग किया है. केंद्रीय मंत्री का यह संकेत कि एचइसी को निजी हाथों में देने की तैयारी चल रही है, सरकारी तंत्र की अक्षमता दर्शाता है और सरकार के निजीकरण की मानसिकता का […]

एचइसी को मदर कंपनी के नाम से भी जाना जाता है. एचइसी ने कई दशकों से देश के निर्माण में अपना अतुलनीय सहयोग किया है. केंद्रीय मंत्री का यह संकेत कि एचइसी को निजी हाथों में देने की तैयारी चल रही है, सरकारी तंत्र की अक्षमता दर्शाता है और सरकार के निजीकरण की मानसिकता का विस्तार है.
जरा गौर करें कि देश के उत्कृष्ट अस्पताल, अंतरिक्ष अनुसंधान या प्रौद्योगिकी संस्थानों की बात करें, तो क्रमश: एम्स, इसरो और आइआइटी ध्यान में आते हैं, जो सरकारी हैं और अपने आप में उत्कृष्ट हैं. फिर बाकी के बिगड़ते संस्थानों के तंत्र को ठीक करने के बजाय उनका निजीकरण ही क्यों? सरकार अपने आप को अक्षम क्यों बतलाती है? निजी कंपनियों के पास ऐसी कौन सी घुट्टी है, जो सरकार के पास नहीं? सरकार भी अनेक मुद्दों पर जब विफल साबित होती है, तो उनका निजीकरण क्यों नहीं किया जाता? ऐसा लगता है कि सरकार एचइसी की जमीनों पर कब्जा कर वहां होने वाले निर्माण कार्यों का ठेका निजी कंपनियों को बांटना चाहती है, जैसा कि स्मार्ट सिटी के नाम पर यह जारी है.
कृष्णा मोहन, धुर्वा, रांची

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