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सदर अस्पताल में शिशु वार्ड होता तो बच सकती थी श्रीधर की जान

चार फरवरी को अचानक बुखार बढ़ने के साथ शरीर सफेद पड़ने लगा चाईबासा : चाईबासा सदर अस्पताल में अगर शिशु वार्ड होता तो जगन्नाथपुर के मालुका स्थित जोड़ापोखर निवासी पांच माह के श्रीधर की जान बच सकती थी. स्किन इंफेक्शन, उल्टी-दस्त, बुखार व खून की कमी से बीमार श्रीधर ने अस्पताल के एमटीसी में दम […]

चार फरवरी को अचानक बुखार बढ़ने के साथ शरीर सफेद पड़ने लगा

चाईबासा : चाईबासा सदर अस्पताल में अगर शिशु वार्ड होता तो जगन्नाथपुर के मालुका स्थित जोड़ापोखर निवासी पांच माह के श्रीधर की जान बच सकती थी. स्किन इंफेक्शन, उल्टी-दस्त, बुखार व खून की कमी से बीमार श्रीधर ने अस्पताल के एमटीसी में दम तोड़ दिया. 27 जनवरी को जगन्नाथपुर स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती श्रीधर का दो दिनों तक इलाज चला. वहीं सदर अस्पताल के एमटीसी में सात दिनों तक इलाज चला. स्किन इंफेक्शन, उल्टी ठीक हो गया था. उसकी दस्त ठीक हो गयी. बुखार भी कम होने लगा था. चार फरवरी को बुखार बढ़ने लगी. इसके साथ शरीर सफेद पड़ता गया. जांच में डॉक्टरों ने खून की कमी पायी. उसे एक बोतल खून चढ़ाया गया. पांच जनवरी को फिर खून की कमी पायी गयी. उसे एक और बोतल खून चढ़ाया गया. छह जनवरी की सुबह उसने दम तोड़ दिया.
एसएनसीयू में 28 दिन तक के शिशु का ही इलाज
सदर अस्पताल की एसएनसीयू में सिर्फ 28 दिन तक के बच्चे का इलाज किया जाता है. ऐसे में सदर अस्पताल में शिशु वार्ड खोलना जरूरी है.
एंबुलेंस सरकार देती है, डीजल नहीं
सरकार से अस्पताल प्रबंधन को केवल एंबुलेंस देने का प्रावधान है. एंबुलेंस में तेल की व्यवस्था झारखंड सरकार नहीं करती है. इस संबंध में सरकार एक सर्कुलर जारी कर चुकी है. ऐसे में गरीब व असमर्थ परिवार के समक्ष दिक्कत उत्पन्न होती है. जिले के सरकारी अस्पतालों में लगभग 50 वाहन चलते हैं. इनमें मासिक अनुमानित 37,500 लीटर डीजल का उपयोग होता है. प्रत्येक वाहन में रोजाना 25 लीटर डीजल भरवाया जाता है.
बच्चे की मौत कुपोषण से नहीं हुई : सीएस
पांच माह के श्रीधर केराई की कुपोषण से नहीं बीमारी से मौत हुई है. बच्चा का नेपकिन रैश (चमड़ा में घाव) था. बच्चे का वजन 4.13 किलोग्राम था. कुपोषण की ग्रेडिंग में 1 एसडी था. यह डब्ल्यूएचओ मानदंड के अनुसार सामान्य वजन है. उक्त बातें सिविल सर्जन डॉ हिमांशु भूषण बरवार ने बुधवार को अपनी कार्यालय कक्ष में प्रेस वार्ता में कही. उन्होंने कहा कि उल्टी व दस्त नहीं रूकने पर चिकित्सक ने चाईबासा एमटीसी रेफर कर दिया. यहां उपचार के बाद बच्चा का दस्त नियंत्रण हो गया. चार फरवरी को बच्चे को बुखार फिर से आ गया. उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी. 5 फरवरी की रात में उसे ब्लड भी चढ़ाया गया. 6 फरवरी को पूर्वाहन 6 बजे बच्चा की मृत्यु हो गयी. इस अवसर पर जगन्नाथपुर के डॉ सुशांतो कुमार मांझी, एमटीसी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ जगन्नाथ हेंब्रम, डॉ संदीप बोदरा, डॉ संजय कुजूर उपस्थित थे.

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