सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग जाने के बीच शिमुलबाड़ी बाजार स्थित वीर बिरसा मुंडा की प्रतिमा के दिन फिरने के आसार दिखने लगे हैं. इसकी हालत बदहाल है और रखरखाव के अभाव में यह नष्ट होने के कगार पर है. इस प्रतिमा की स्थापना वर्ष 2007 में की गयी थी. बाद में गोरखालैंड आंदोलन के दौरान वर्ष 2013 में बदमाशों ने इसमें आग लगा दी थी. तब से लेकर अब तक बिरसा मुंडा की प्रतिमा को ठीक करने की कोशिश नहीं की गयी और न ही सौंदर्यीकरण का काम हुआ. अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर इस प्रतिमा पर पड़ी है. उम्मीद है कि प्रशासन के द्वारा इसके रख-रखाव की व्यवस्था की जायेगी.
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सीएम की पड़ी नजर, बिरसा मुंडा की प्रतिमा के फिरेंगे दिन
सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग जाने के बीच शिमुलबाड़ी बाजार स्थित वीर बिरसा मुंडा की प्रतिमा के दिन फिरने के आसार दिखने लगे हैं. इसकी हालत बदहाल है और रखरखाव के अभाव में यह नष्ट होने के कगार पर है. इस प्रतिमा की स्थापना वर्ष 2007 में की गयी थी. बाद में गोरखालैंड आंदोलन के […]
मुख्यमंत्री मंगलवार को जब अपने काफिले के साथ सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग जा रही थीं, तभी शिमुलबाड़ी बाजार स्थित वीर बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर उनकी नजर पड़ गयी. उन्होंने अपने काफिले को रोका और बिरसा मुंडा की प्रतिमा के निकट गयीं. प्रतिमा पर खादा अर्पित कर उन्होंने पहले बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी और उसके बाद दार्जिलिंग की ओर रवाना हो गयीं. मुख्यमंत्री की इस पहल से पर्वतीय क्षेत्र के आदिवासियों में खुशी की लहर है.
शिमुलबाड़ी इलाके में पांच सौ आदिवासी रहते हैं. इसके अलावा मिरिक, कार्सियांग आदि इलाके में आदिवासियों की संख्या 80 हजार से भी अधिक है. सभी आदिवासियों ने मिलकर बिरसा मुंडा की प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया था. इसके लिए वीर बिरसा मुंडा मूर्ति निर्माण कमेटी का गठन भी किया गया. वर्ष 2007 में 31 दिसंबर को कर्सियांग की तत्कालीन गोरामुमो विधायक शांता छेत्री ने इसका लोकार्पण किया था. प्रतिमा स्थापित करने के बाद प्रांगण की घेराबंदी की गयी और सौंदर्यीकरण का भी काम किया गया. धीरे-धीरे रख रखाव के अभाव में प्रतिमा के साथ ही प्रांगण की स्थिति भी बिगड़ती चली गयी.
गोरखालैंड आंदोलन के दौरान प्रतिमा को किया गया था आग के हवाले
तब से लेकर अब तक किसी ने नहीं दिखाई मरम्मत कराने की हिम्मत
रख-रखाव के अभाव में बिरसा मुंडा की प्रतिमा हो रही है नष्ट
पहाड़ पर आदिवासियों की हो रही है उपेक्षा
विकास बोर्ड बनाने की मांग ने फिर पकड़ा जोर
गोरखालैंड आंदोलन के दौरान प्रतिमा नष्ट करने की कोशिश की गयी
इस संबंध में स्थानीय आदिवासी विकास संगठन के अध्यक्ष गुलशन बारिक ने बताया कि गोरखालैंड आंदोलन के दौरान प्रतिमा को नष्ट करने की कोशिश की गयी. किसी ने प्रतिमा में आग लगा दी थी. उसके बाद किसी ने भी प्रतिमा तथा चार दिवारी निर्माण की हिम्मत नहीं दिखायी. उन्होने यह भी कहा कि इस इलाके के आदिवासी काफी पिछड़े हुए हैं. उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे स्वयं पैसे जुटाकर इसकी मरम्मत करा सकें. उन्होने यह भी बताया कि इस इलाके में हिंदी मिडियम स्कूल भी नहीं है, जिसकी वजह से आदिवासी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई प्रभावित हो रही है.
जीटीए पर दागोपाप की राह पर ही चलने का आरोप
श्री बारिक ने जीटीए पर आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप लगाया. पहले सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में गठित दागोपाप द्वारा आदिवासियों की उपेक्षा की गयी और अब जीटीए द्वारा भी आदिवासियों की उपेक्षा की जा रही है. उन्होंने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से तत्काल आदिवासी विकास बोर्ड बनाने की मांग की. उन्होने कहा कि इससे पहले मुख्यमंत्री से मुलाकात कर बोर्ड बनाने की मांग में आदिवासी एक ज्ञापन भी दे चुके हैं. 14 फरवरी 2017 को कालिम्पोंग में एक जनसभा के दौरान मुख्यमंत्री ने आदिवासी विकास बोर्ड बनाने की घोषणा तो की, लेकिन इसको कारगर नहीं किया गया. बगैर विकास बोर्ड के आदिवासियों का कल्याण संभव नहीं है.
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