जीरादेई : प्रखंड के तितरा टोले बंगरा गांव में स्थित बौद्ध स्थल की उत्खनन में जो अवशेष व भवनावशेष प्राप्त हो रहे है, वे सभी गुप्तकाल के बाद के प्रतीत जो रहे है. यह उत्खनन कार्य भारतीय पुरातत्व विभाग पटना अंचल के द्वारा कराया जा रहा है. प्राप्त अवशेष प्राचीन कुसीनारा के अस्तित्व का बयान कर रहे है. पाली भाषा में वर्णित त्रिपिटक (धार्मिक बौद्ध ग्रंथ) में कुसिनारा का उल्लेख मिलता है. जो वर्तमान में कुशीनगर जहां भगवान बुद्ध का महानिर्वाण स्थल है के नाम से जाना जाता है.
इतिहासकारों के मुताबिक कुसिनारा का संबंध प्रत्यक्ष रूप से सीवान जिले के जीरादेई से जुड़ा हुआ है. चीनी तीर्थयात्री क्रमशः फाहियान प्राचीन कुसीनारा में पांच वीं शताब्दी में चंद्र गुप्त द्वितीय के शासन काल (380-480ई.) के शासन काल, ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी 643 ई. में हर्षवर्धन काल में , इतिसंग 686 ई व ताई सं. आठवीं शताब्दी में 731 ई. में यशोवर्मा के शासन काल में आया था. उक्त चारों ने प्राचीन कुसीनारा को अपनी आंखों से देखा तथा चारों तीर्थ यात्रियों ने वर्णन किया है कि कुसीनारा की अवस्था अच्छी नहीं थी.
नगर में निवासी बहुत थोड़े थे, मुहल्ले उजाड़ व खंडहर हो गए थे. केवल निर्वाण स्थल स्तूप व मुकुटबंधन स्तूप पर व बौद्ध विहार में थोड़े बहुत देश विदेश के बौद्ध भिक्षुक थे. मुकुट बंधन स्तूप 500 सौ फुट चौकोर था. जो मल्ल राजा के किले का प्रतिनिधित्व करता था जिसका केवल ईंट का नींव दिखाई दे रहा था. यह स्तूप नगर के मध्य में था . तीर्थ यात्रियों के वर्णन से स्पष्ट यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन कुसिनारा में राजा अशोक , कुषाण वंश का राजा कनिष्क व गुप्त वंश के राजा श्रीगुप्त , घटोत्कच, चंद्रगुप्त प्रथम के बाद किसी राजा ने प्राचीन कुसीनारा में कुछ नहीं किया है.
भगवान बुद्ध के निर्वाण से रखता है संबंध
केपी जायसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ जगदीश्वर पांडेय ने बताया है कि सीवान का नामकरण भी भगवान बुद्ध के निर्वाण से संबंध रखता है. संस्कृत शब्द शवयान या सवान का विकृत रूप से जो आगे चलकर सीवान हो गया. कहा जाता है कि मल्ल राजाओं ने स्वर्णयान यानि सोने की गाड़ी से उनके शव को हिरण्यवती नदी के पश्चमी किनारे स्थित मल्लों के शालवन से कुसीनारा ले गये.
मल्ल राजाओं ने स्वर्ण यान यानी सोने की गाड़ी से उनके शव को हिरण्यवती नदी के पश्चिमी किनारे स्थित मल्लो के शालवन से कुसीनारा ले गये .
जंक्शन का पहले नाम सवान था, 1970 की मुहर पर है दर्ज
उन्होंने बताया कि सीवान रेलवे स्टेशन का नाम पहले सवान था . लगभग 1970 तक रेलवे का जो मोहर बना था उस पर सवान ही लिखा था. सीवान का दक्षिण टोला, शुक्ल टोली, इस्लामिया हाईस्कूल व शांति बट वृक्ष की एरिया सवान मोहल्ला कहलाता था. भूगर्भ में छिपे ऐतिहासिक अवशेष की संपूर्ण जानकारी के लिए बड़े पैमाने पर उत्खनन की आवश्यकता है. फिलहाल जो भी अवशेष खनन के दौरान प्राप्त हुए है. बुधवार को उत्खनन कार्य बंद हो गया.
विशेषज्ञों की टीम खनन में प्राप्त अवशेषों को लेकर जांच के लिए पटना रवाना हो गयी.
सभी साक्ष्य गुप्त काल व कुषाण काल के पूर्व के मिले
गत मंगलवार को उत्खनन का निरीक्षण करने आये भारतीय पुरातत्व विभाग पटना अंचल के उप अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ बीरी सिंह, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद जेके तिवारी व सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा ने अभी तक मिल रहे पुरातात्विक अवशेषों के अवलोकन के बाद बताया कि यहां गुप्त काल के बाद का कोई साक्ष्य नहीं मिल रहा है.
सभी साक्ष्य गुप्त काल व कुषाण काल के पूर्व के मिल रहे है. प्राचीन कुसीनारा का अध्ययन पुस्तक के लेखक शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि उत्खनन में मिल रहे साक्ष्यों से चीनी तीर्थयात्रियों द्वारा वर्णित प्राचीन कुसीनारा का वास्तविक स्वरूप सीवान के तितिर स्तूप के पास देंखने को मिल रहा है. उन्होंने बताया कि बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक में दो नदी का उल्लेख है जो दोनों नदी ककुत्था यानि दाहा व हिरण्यवती यानी सोना नदी.
वर्तमान दोनों नदियां सीवान में है. उन्होंने बताया कि इन नदियों के नाम की चर्चा सारण डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में भी किया गया है.